Posted on 21 April 2021 by admin
पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव खत्म होते ही मोदी सरकार को एक और बड़ी मशक्कत करनी पड़ सकती है वह है खाली पड़े राजभवनों में नए गवर्नर की नियुक्तियां। अभी भी 7-8 राजभवन खाली पड़े हैं और कई गवर्नर दोहरी जिम्मेदारियों का निर्वहन कर रहे हैं, कई गवर्नर 75 साल से ऊपर के हो गए हैं। सूत्र बताते हैं कि केंद्र सरकार में इस बात को लेकर मंथन चल रहा था कि राजभवन की जिम्मेदारी रिटायर्ड नौकरशाह ठीक से निभाते हैं या मंझे राजनेता। जम्मू-कश्मीर में मनोज सिन्हा की नियुक्ति और उसके बाद के हालात से सरकार खुश बताई जाती है, वहीं एक सत्यपाल मलिक भी हैं जिन्होंने केंद्र सरकार की नाक में दम कर रखा है। फिर भी सरकार को लगता है कि रिटायर्ड नौकरशाह के बजाए मंझे राजनेताओं पर ही दांव लगाना ठीक रहेगा। जब से यह खबर बाहर निकली है
सियासी वनवास झेल रहे राजनेताओं ने अपनी संघ परिक्रमा तेज कर दी है।
Posted on 21 April 2021 by admin
ममता बनर्जी ने भी बंगाल चुनाव में अपनी पार्टी के लिए संसाधनों की कमी नहीं होने दी है और भाजपा के मुकाबले ममता भी बढ़-चढ़ कर इस चुनाव में पैसे झोंक रही हैं। भाजपा का दावा है कि बंगाल चुनावों में अर्द्धसैनिक बलों की व्यापक नियुक्ति से ममता की पोल खुली है। एक तो अवैध रूप से बड़ी तादाद में बांग्लादेसी
नागरिक आकर चुनाव में पोलिंग बूथ पर कब्जा कर लेते थे। वहीं अब एक बदले परिदृश्य में ममता अपने जमीनी स्तर के कैडर तक ठीक से रूपए नहीं पहुंचा पा रही। भाजपा का दावा है कि तृणमूल के 250 करोड़ रूपयों से ज्यादा की नकदी अर्द्धसैनिक बलों ने जब्त किए हैं। वहीं तृणमूल को भरोसा है कि इस बार भी खींचतान कर राज्य में ममता की ही सरकार बन जाएगी, क्योंकि टीएमसी को राज्य के 29 फीसदी मुसलमानों के एकमुश्त वोट मिल रहे हैं। भद्रलोक और महिलाओं ने भी खुल कर ममता का साथ दिया है। सो, पार्टी नेताओं का दावा है कि तृणमूल डेढ़ सौ का आंकड़ा पार कर जाएगी। वहीं भाजपा सौ-सवा सौ पर सिमट सकती है।
Posted on 21 April 2021 by admin
लखनऊ में भी कोरोना महामारी भयंकर रूप दिखा रही है, इत्तफाक से यह केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का संसदीय क्षेत्र भी है, अपने संसदीय क्षेत्र को लेकर राजनाथ वैसे भी कहीं ज्यादा संवदेनषील हैं। जब उनके पास सुबह से शाम तक लखनऊ से कोविड मरीजों के रिश्तेदार व शुभचिंतकों के फोन आने लगे कि गंभीर मरीजों को भी अस्पताल में बेड नहीं मिल रहे हैं तो राजनाथ के ऑफिस ने लखनऊ के तमाम अस्पतालों को फोन खटखटाने शुरू कर दिए। पर दिक्कत यह थी कि अस्पतालों के बेड पर भी वीआईपी लोगों ने पहले से कब्जा जमा रखा था। खास कर वैसे राज्य में जहां के मुख्यमंत्री, डीजीपी से लेकर एडिशनल चीफ सेक्रेटरी तक संक्रमण की जद में हों वहां फरियाद की भी जाए तो किससे? ऐसे में राजनाथ के एक नजदीकी व्यक्ति ने सलाह दी कि चूंकि डीआरडीओ उनके मंत्रालय के अधीनस्थ है सो वे इसके उच्च अधिकारियों से बात कर आनन-फानन में वहां एक अस्थायी कोविड अस्पताल बनवा सकते हैं, और ऐसे यह 1000 बेड के कोविड अस्पताल की अवधारणा को मूर्त रूप मिल पाया।
Posted on 21 April 2021 by admin
कांग्रेसी नेता राहुल गांधी को ‘पप्पू’ करार देने में भाजपा और मोदी सरकार कभी पीछे नहीं रहती। पर राहुल जो मांग रखते हैं घुमा-फिरा कर सरकार उसे मान लेती है, कोरोना की रफ्तार बेतहाशा बढ़ी तो राहुल ने कहा-’लॉकडाउन लगाओ।’ ये लग गया, राहुल ने कहा-’भारत आने वाली अंतरराष्ट्रीय उड़ानों पर पाबंदी लगे,’ पाबंदी लग गई। जब देशभर में कोरोना वैक्सीन की किल्लत को देखते हुए राहुल गांधी ने सरकार से मांग की थी कि ’विदेशी वैक्सीन को अप्रूवल देने की प्रक्रिया को तेज किया जाए’ तो इस पर 9 अप्रैल को एक ट्वीट कर केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने राहुल पर तंज कसा-’बतौर पार्ट टाइम राजनेता असफल रहने के बाद अब क्या राहुल गांधी फुल टाइम लॉबिस्ट बनना चाहते हैं?’ लेकिन विडंबना देखिए कि पिछले बुधवार को ही मोदी सरकार ने एक अहम फैसला लिया कि विदेश में बनी कई कोविड वैक्सीन को इमरजेंसी अप्रूवल दिया जाएगा। इसके बाद प्रसाद लगातार सोशल मीडिया पर ट्रोल होते रहे।
Posted on 21 April 2021 by admin
कोरोना महामारी जिस रफ्तार से इतना विकराल रूप अख्तियार कर रही है, उसने बहुराष्ट्रीय दवा निर्माता कंपनियों को पंख पसार कर उड़ने के लिए एक बड़ा आसमां मुहैया करा दिया है। एक रिपोर्ट के मुताबिक आने वाले 2024 तक कोरोना वैक्सीन का बाजार 25 बिलियन यूएस डॉलर से भी बड़ा हो जाएगा, यानी जितना बड़ा डर, उतना ही बड़ा बाजार। 10 बड़ी फार्मा कंपनियों ने इस बाजार पर अभी से अपना अधिपत्य जमा लिया है और वे वैक्सीन के ‘मोनो वेलेंट’ (एकल) या ‘मल्टी वेलेंट कैटेगरी’ (एक से ज्यादा वेरियंट के लिए) को बाजार में लेकर आने लगी है। इन 10 बड़ी कंपनियों में फाईजर, मोर्डना, जॉनसन एंड जॉनसन, एस्ट्राजनिका और डेची सेक्यो जैसी कंपनियां शामिल हैं। फाईजर ने तो एक नया शिगूफा उछाला है कि कोरोना वैक्सीन की डोज लोगों को हर साल लेनी पड़ सकती है। वहीं अन्य कंपनियां इसके ‘कॉकटेल’ और ‘बूस्टर’ डोज जैसी अवधारणाओं को मूर्त रूप देने में जुटी है, पर डब्ल्यूएचओ ने इन आइडियाज को अभी हरी झंडी नहीं दिखाई है। अब तो लगे हाथ रूसी और चीनी कंपनियां भी मैदान में कूद गई है। चीनी दवा कंपनियों के वैक्सीन की प्रभावोत्पादकता तो विश्व स्वास्थ्य संगठन की मानकों पर
भी खरा नहीं उतर पा रही हैं फिर भी इन्हें बाजार कब्जाने की जल्दबाजी है। चीन की दो बड़ी कंपनियां सीनो फॉर्म और सीनो वैक ने कोरोना वैक्सीन का निर्माण किया है। इनके द्वारा तैयार किए गए वैक्सीन डब्ल्यूएचओ के 50 फीसदी प्रभावोत्पादकता मानक पर भी खरे नहीं उतर पा रहे हैं। सीनो फॉर्म ने तो अब तलक अपना डाटा ही नहीं बताया है और अपने चार कोरोना वैक्सीन इंजेक्शन के बाद अपने पांचवें इंजेक्शन को भी बाजार में लाने की तैयारी कर रही है, ये चीनी कंपनियां अपने 3 बिलियन डोज का उत्पादन तो इसी वर्ष कर रही है। यानी कोरोना का डर जितना बड़ा होगा ये कंपनियां उसी रफ्तार में फलेंगी-फूलेंगी।
Posted on 21 April 2021 by admin
बदलते वक्त की तासीर को भांपते झारखंड के मुख्यमंत्री और झारखंड मुक्ति मोर्चा सुप्रीमो हेमंत सोरेन ने भाजपा से नजदीकियां बढ़ानी शुरू कर दी है। उन्हें लगातार इस बात का डर सता रहा है कि भाजपा जब चाहे झारखंड में खेल बदल सकती है, क्योंकि उनकी सरकार में शामिल कांग्रेस के 10 विधायक यकीनन भाजपा के संपर्क में हैं। वे कभी भी पाला बदल कर भगवा रंग में रंग सकते हैं। यही वजह है कि हेमंत जब पिछली बार दिल्ली आए तो वे राहुल गांधी से भी मिले और अमित शाह से भी। पिछले दिनों जब वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से हेमंत केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी से जुड़े तो गडकरी ने हेमंत और झारखंड के लिए अपना दिल खोल कर रख दिया। गडकरी ने सोरेन से कहा कि ’अगर वे जमीन अधिग्रहण तथा वन व पर्यावरण मंत्रालय की मंजूरी कराएं और उन्हें
अच्छे अधिकारी दें तो वे झारखंड की सड़कों को तीन वर्षों में पचिश्मी यूरोप और अमेरिका की तरह बना देंगे।’ गडकरी ने यह भी कहा कि ’केंद्र सरकार राज्य के सड़क निर्माण विभाग को पांच हजार करोड़ रूपए देने को तैयार है।’ गडकरी की इस मेहरबानी में दूरगामी संकेतों की रवानी छुपी है, जो कहीं न कहीं इस बात का ऐलान है कि अगर हेमंत सोरेन भाजपा की शरण में आ जाते हैं तो वे मुख्यमंत्री बने रह सकते हैं। यही खेल भाजपा महाराष्ट्र और राजस्थान जैसे गैर भाजपाई राज्यों में खेलने को भी बेकरार बताई जाती है।
Posted on 21 April 2021 by admin
असम के चुनावी नतीजे चाहे जो हो, पर वहां आमने-सामने की लड़ाई दिलचस्प हो गई है, यह लड़ाई भाजपा बनाम कांग्रेस गठबंधन के दरम्यान है। भले ही चुनावी नतीजे 2 मई को आने हों पर भाजपा अभी से सरकार बनाने की प्रयासों में जुट गई लगती है, निषाने पर कांग्रेस गठबंधन के वे उम्मीदवार हैं जो जीतने का दंभ दिखा रहे हैं। अपने उम्मीदवारों के पाला बदल की आहटों को भांपते कांग्रेस गठबंधन ने अपने 20 उम्मीदवारों को अपनी सुरक्षा में लेकर जयपुर एक रिसॉर्टस में भेज दिया है, यहां तक कि उनके मोबाइल फोन भी उनके नहीं रह गए हैं। ये जीत की संभावनाओं वाले उम्मीदवार हैं, जिनमें बदरूद्दीन अजमल की एआईयूडीएफ के उम्मीदवारों की संख्या कहीं ज्यादा है। गठबंधन के अन्य उम्मीदवारों के जयपुर पहुंचने का सिलसिला भी जारी रह सकता है, क्योंकि कांगे्रस गठबंधन को खरीद-फरोख्त की आषंका सता रही है। भाजपा से जुड़े सूत्र साफ करते हैं कि भगवा पार्टी राज्य में अपने बड़े नेता हेमंता बिस्वा सरमा के आचरण को लेकर चिंता में हैं, जिन्हें साफ तौर पर ऐसा लगता है कि राज्य में अगर एक बार फिर से भाजपा को पूर्ण बहुमत प्राप्त हुआ तो उनके सीएम पद की दावेदारी को दरकिनार कर दिया
जाएगा। हेमंता को लगता है कि ‘हंग असेंबली’ आने पर उनका मुख्यमंत्री बनने का सपना पूरा हो सकता है। हरियाणा में भी जब एक दफे भजनलाल वहां के प्रदेश अध्यक्ष थे और प्रदेश का चुनाव उनके नेतृत्व में लड़ा गया था तो पार्टी सुप्रीमो सोनिया गांधी ने उनकी जगह भूपेंद्र सिंह हुड्डा को राज्य की कमान सौंप दी थी। विरोधी दलों को यह डर सिर्फ असम में ही नहीं सता रहा जहां चुनाव के अधबीच ही कांग्रेस गठबंधन का एक उम्मीदवार पाला बदल कर भाजपा में आ गया। जबकि विपक्षी दलों को केरल और बंगाल में भी यही डर सता रहा है, जहां भाजपा रणनीतिकारों को यूडीएफ और टीएमसी की उन कमजोर कड़ियों का भली-भांति इल्म है जो जीत के बाद भी पाला बदल सकते हैं।
Posted on 21 April 2021 by admin
पांच राज्यों के इन विधानसभा चुनावों में प्रियंका गांधी कांग्रेस की सबसे बड़ी स्टार प्रचारक के तौर पर सामने आ रही थीं, असम और केरल जैसे राज्यों में उनकी सभाओं में अच्छी-खासी भीड़ जुट रही थी, एक तरह से लोगों में उनका करिश्मा चलने लगा था कि अचानक से उन्हें कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्षा यानी उनकी मां सोनिया गांधी की ओर से यह आदेश प्राप्त हुआ कि वे अपना फोकस यूपी तक ही सीमित रखें। कांग्रेस से जुड़े सूत्रों का दावा है कि दरअसल सोनिया गांधी चाहती हैं कि अगर केरल, असम और तमिलनाडु में कांग्रेस बेहतर प्रदर्शन करती है तो इसका एकमात्र श्रेय राहुल गांधी को ही मिलना चाहिए, जो इन राज्यों में काफी पहले से जी-तोड़ मेहनत कर रहे हैं। सो, जब चुनाव प्रचार में दो दिन का समय शेष रह गया था तो प्रियंका ने स्वयं को पीछे कर लिया, कारण बताया गया कि उनके पति रॉबर्ट वाड्रा की कोविड रिपोर्ट पॉजिटिव आई है। जबकि प्रियंका की स्वयं की रिपोर्ट निगेटिव आई थी। सो, अब एक बदले परिदृश्य में प्रियंका ने अपना फोकस यूपी पर कर लिया है। जहां आने वाले 15,19,26 और 29 अप्रैल को पंचायत चुनाव होने हैं, इन चुनावों के नतीजे भी 2 मई को ही आने हैं। एक तरह से पंचायत चुनाव यूपी की भाजपा सरकार के लिए अग्नि परीक्षा साबित होंगे, खास कर पचिश्मी यूपी में कि किसानों का आंदोलन भाजपा को कितना नुकसान पहुंचा रहा है। वैसे भी यूपी विधानसभा चुनावों में भी अब कुछ महीनों का ही समय बचा है। यूपी के संभावित विधानसभा चुनावों को देखते हुए प्रियंका ने वहां 8 टीमें गठित की हैं। विधानसभा चुनावों के लिए कांग्रेस सूत्रों की मानें तो प्रियंका ने इन संभावित उम्मीदवारों से कहा है कि ’निकाय चुनावों में कांग्रेस समर्थित उम्मीदवारों को लड़ाने और जिताने की जवाबदेही आपकी है,’ वैसे भी इस वक्त कांग्रेस पार्टी फंड के कमी से जूझ रही है सो इन संभावित दावेदारों से यह भी कहा गया है कि ’निकाय चुनाव में अपने क्षेत्रों के उम्मीदवारों का खर्च भी वे स्वयं वहन करें।’ यानी एक तरह से दस जनपथ ने प्रियंका गांधी से साफ कर दिया है कि देश के नेता तो राहुल गांधी ही रहेंगे, वे अपने आपको सिर्फ यूपी तक ही सीमित रखें।
Posted on 21 April 2021 by admin
सियासत जब रंग बदलती है तो बड़े सियासी सूरमाओं के रंग भी उड़ जाते हैं, सूत्रों की मानें तो आने वाले कुछ समय में चिराग पासवान अपनी पार्टी का विलय भाजपा में कर सकते हैं। पिछले दिनों बिहार में चिराग की लोक जनशक्ति पार्टी के एकमात्र विधायक राजकुमार सिंह ने नीतीश के जदयू का दामन थाम लिया है। राजकुमार से पहले भी लोक जनशक्ति पार्टी के कोई 200 से ज्यादा नेताओं ने नीतीश की शरण ले ली है। यहां तक कि चिराग की पार्टी के कई सांसद भी नीतीश के संपर्क में बताए जाते हैं, इनमें से एक नाम सूरजभान सिंह के भाई चंदन सिंह का भी है। यहां तक कि चिराग के अपने चाचा पशुपति पारस भी नीतीश के प्रति सॉफ्ट कॉर्नर रखते हैं, क्योंकि कालांतर में नीतीश ने उन्हें बिना विधायक रहते अपनी सरकार में मंत्री बना दिया था। इसे देखते हुए चिराग की पार्टी और उनके परिवार में टूट का खतरा लगातार बना हुआ है। विधानसभा चुनाव से पहले बिहार भाजपा के कई बागी नेता लोजपा में शामिल हुए थे, जिसमें रामेश्वर चौरसिया से लेकर राजेंद्र सिंह तक के नाम लिए जा सकते हैं, चिराग ने बकायदा इन बागियों को लोजपा का टिकट भी दे दिया था, पर ये तमाम नेतागण चुनाव हार गए थे, अब ये भी अपने पुराने घर भाजपा में लौटने को बेकारार बताए जाते हैं। चिराग के समक्ष एक और रास्ता बचता है कि वे अपने मित्र तेजस्वी का हाथ थाम लें और राजद से गठबंधन कर लें। पर पूर्व में लोजपा का यह प्रयोग बिहार में पूरी तरह धराशायी हो गया था, जब 2004 के लोकसभा चुनावों में रामविलास पासवान ने लालू का हाथ थाम लिया था, तब पासवान की लोजपा महज़ चार सीट ही जीत पाई थी। सो, नीतीश ने इस दफे चिराग को अब तलक अपने निशाने पर रखा हुआ है, उनके रहते लोजपा का एनडीए गठबंधन में पुनर्वापसी मुमकिन नहीं, सो भाजपा के बड़े रणनीतिकारों ने चिराग को सलाह दी है कि ’वे अपनी पार्टी लोजपा का विलय भाजपा में कर दें, ताकि उन्हें केंद्र में मंत्री बन सकने से नीतीश चाह कर भी न रोक पाए।’ चिराग के पास अभी उम्र का साथ है, उन्हें लंबी राजनैतिक पारी खेलनी है, सो वे भाजपा के इस प्रस्ताव पर गंभीरता से मनन कर रहे हैं।
Posted on 07 April 2021 by admin
ममता बनर्जी ने खुद घायल होकर बंगाल में भाजपा की उम्मीदों को गहरा आघात लगाया है, व्हील चैयर पर पैरों में प्लास्टर लगाए बैठी ममता अपने इसी नए नैरेटिव के साथ अब गांव-गांव प्रचार कर रही हैं, तृणमूल कैडर को पक्का भरोसा है कि अब ममता की ’बेचारगी’ की वजह से गरीब-गुरबों और महिलाओं के वोट छप्पर फाड़ कर बरसेंगे। ‘लोकल’ और ‘बाहरी’ के मुद्दे को भी एक नया परवाज़ मिलेगा, ममता को ललकार कर शुभेंदु अधिकारी अब नंदीग्राम में फंस गए हैं। भले ही वे ’पारा ब्यॉय’ यानी वहां के लोकल हैं, पर ममता ने भी खम्म ठोंककर कह दिया है कि ’वह नंदीग्राम की बेटी हैं।’ यानी 25 वर्षों तक अपने शागिर्द रहे शुभेंदु को ममता ने एक नया सियासी ककहरा कंठस्थ करा दिया है। इस लड़ाई के लिए ममता ने नंदीग्राम के चार कोनों पर चार घर किराए पर लिए हैं। वैसे भी ममता को अपने पुराने विधानसभा क्षेत्र भवानीपुर को छोड़ना ही था, क्योंकि भवानीपुर में गैर बंगाली मतदाताओं की एक बड़ी तादाद है और दीदी ने इस बार के चुनाव को ’बाहरी बनाम बंगाली’ बना दिया है। 24 तारीख को नंदीग्राम में पीएम की रैली है उनका नंदीग्राम के लिए ’शुभेंदु पारा’ का जुमला भले ही चल निकला हो, पर ममता के बुने नए नैरेटिव में भाजपा वहां फंस गई लगती है।