Archive | March, 2018

…और अंत में

Posted on 12 March 2018 by admin

सपा के कई बड़े नेता हालिया दिनों में भाजपा का रुख कर सकते हैं। राज्यसभा नहीं मिलने की नाराज़गी अब नरेश अग्रवाल के चेहरे से भी दिखने लगी है, सूत्र बताते हैं कि पिछले दिनों उनकी नृपेंद्र मिश्र से एक लंबी बातचीत हुई है और उनके भाजपा में शामिल होने का मार्ग प्रशस्त हो गया है। (एनटीआई-gossipguru.in)

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रूस या फ्रांस, कौन होगा जैतापुर का विजेता?

Posted on 12 March 2018 by admin

फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रान भारत दौरे पर हैं, उनके साथ 40 बड़े फ्रेंच उद्योगपतियों का एक दल भी भारत आया है जो अलग-अलग क्षेत्रों मसलन रेल, स्मार्टसिटीज, सोलर एनर्जी, सिविल न्यूक्लीयर कॉरपोरेशन में बड़े निवेश का इरादा रखता है। सूत्र बताते हैं कि फ्रेंच राष्ट्रपति मैक्रान के एजेंडे में महाराष्ट्र में स्थित जैतापुर न्यूक्लीयर प्लांट भी प्रमुखता से जगह बनाए हुए हैं, इस बारे में वे पीएम मोदी से वन-टू-वन वार्ता के इच्छुक हैं। सनद रहे कि यूपीए-II के शासनकाल में 2009 में भारत सरकार में एक फ्रेंच कंपनी अरेवा एसए ने 6 ग्रिड प्लांट के लिए निविदा दी थी, 2010 में भारत सरकार के साथ इस फ्रेंच कंपनी का एग्रीमेंट भी हो गया जिसके तहत अरेवा एसए को जैतापुर में दो न्यूक्लियर प्लांट लगाने थे। वक्त गुज़रा और भारत और फ्रांस दोनों जगह सरकारें बदल गईं और 2011 में जापान के फुकोसीमा न्यूक्लीयर प्लांट में रिसाव की वजह से सुनामी आने और भारी तबाही मचने से वैश्विक स्तर पर ऐसे न्यूक्लीयर प्लांट लगाने की सर्वत्र आलोचना होनी शुरू हो गई, कई स्वयंसेवी संगठनों ने इन प्लांट के विरूद्ध मोर्चा खोल दिया, इतने घोर उथल-पुथल के बीच एरेना एसए कंपनी भी भयानक आर्थिक मुसीबतों से घिर गई और इस कंपनी को एक अन्य फ्रांसीसी कंपनी ’इलेक्ट्रिीसाइट डी फ्रांस’ ने खरीद लिया और जैतापुर न्यूक्लीयर पॉवर प्लांट के ऊपर अनिश्चितता के बादल मंडराने लगे। कई स्वयंसेवी संस्थाओं ने प्रस्तावित जैतापुर प्लांट के खिलाफ अभियान की शुरूआत कर दी। पर अब फ्रेंच राष्ट्रपति मैक्रान इस प्लांट को शुरू करवाने में खासी दिलचस्पी दिखा रहे हैं।

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जैतापुर पर पुतिन की नज़र

Posted on 12 March 2018 by admin

इस बीच इस पूरे मामले में एक दिलचस्प मोड़ आया जब रूस की एक प्रमुख कंपनी रोस एटम (जेएससी रोस एटम इंटरनेशनल) ने जैतापुर न्यूक्लीयर पॉवर प्लांट को लेकर अपनी दिलचस्पी दिखानी शुरू कर दी। रोस एटम कंपनी के डिप्टी चीफ ने पिछले दिनों अपने दल बल के साथ भारत यात्रा की और उन्होंने प्रमुख रूप से राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवल से भी मुलाकात की। कहते हैं इस मुलाकात के तुरंत बाद इस बारे में रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने अपने भारतीय काउंटर पार्ट नरेंद्र मोदी से सीधी बातचीत की। सनद रहे कि इस कंपनी के संस्थापकों में ब्लादिमीर पुतिन और मेहसिन निशिर का नाम लिया जाता है। इससे पूर्व भी 10 अगस्त 2016 को भारतीय प्रधानमंत्री मोदी और तमिलनाडु की तत्कालीन मुख्यमंत्री जे.जयललिता की मौजूदगी में रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने वीडियो कांफ्रेसिंग की मदद से तमिलनाडु स्थित कुडनकुलम न्यूक्लियर पॉवर प्लांट यूनिट-प् का शुभारंभ किया था। कुडनकुलम प्लांट की उत्पादन अवधि 60 वर्ष की है जिसे और 20 वर्षों के लिए बढ़ाया जा सकता है, और इससे उत्पादित बिजली की कीमत 3.89 रुपए प्रति यूनिट आ रही है, रूस का दावा है कि फ्रांस द्वारा निवेदा में भेजी रकम बाजार कीमत से कहीं ज्यादा है और अगर खुदा न खास्ते जैतापुर का काम फ्रांस की कंपनी को मिल जाता है तो इसका हश्र भी राफेल डील की तरह हो सकता है जिसमें विपक्षी दलों को हो हल्ला मचाने का मौका मिल सकता है।

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दलित व आदिवासियों की चिंता में संघ के नियंता

Posted on 06 March 2018 by admin

संघ का नया दलित प्रेम हिलौरे मार रहा है, इसकी झलक पिछले दिनों मेरठ में संपन्न हुए ’राष्ट्रोदय समागम’ में देखने को मिली। शहर भर में लगे होर्डिंग्स में दलित चेतना को उभारने की कोशिश हो रही थी, अपने चाल, चरित्र से दीगर संघ दलित प्रेम का एक नया राग अलाप रहा था, होर्डिंग्स की भाषा पर एक विहंगम दृष्टि डालिए और संघ के मन में क्या है, जान जाइए-’ हिंदू धर्म की जैसी प्रतिष्ठा वशिष्ठ जैसे ब्राह्मण, कृष्ण जैसे क्षत्रिय, हर्ष जैसे वैश्य और तुकाराम जैसे शुद्र ने की है, वैसे ही वाल्मिकी, चोखमेला और रविदास जैसे अस्पृश्यों ने भी की है।’ इस दलित प्रेम के पीछे संघ की असली चिंता धर्मांतरण को लेकर है, क्योंकि बीते कुछ वर्षों में बड़ी संख्या में दलित, जाटव और अहिरवार बौद्ध धर्म अपना रहे हैं। संघ के इस समागम में पश्चिमी यूपी के 14 जिलों से एक लाख से ज्यादा संघ के कार्यकर्ताओं ने हिस्सा लिया। संघ की परंपरा में एक नए अध्याय का सूत्रपात हुआ है कि संघ के कार्यकर्ता ज्यादा से ज्यादा संख्या में दलित के साथ भोजन करें, स्वयं संघ प्रमुख मोहन भागवत इस आशय का श्रीगणेश कर चुके हैं। संघ की एक और चिंता आदिवासियों को लेकर भी है जो एक बार पुनः कांग्रेस की ओर रुख कर रहे हैं। 2008 से पहले आदिवासी वोटरों का झुकाव कांग्रेस की ओर था, नई उम्मीद को टकटकी लगाए फिर उन्होंने भाजपा की ओर कदम बढ़ाए, वहां से निराश होने के बाद उनका झुकाव एक बार फिर से कांग्रेस व क्षेत्रीय दलों की तरफ हो रहा है। हालिया दिनों में संपन्न हुए गोंडवाना सम्मेलन में 50 हजार से ज्यादा आदिवासियों की भीड़ जुटी, जिसके तुरंत बाद मोहन भागवत का एक अहम बयान सामने आया कि क्षेत्रीय दलों से सावधान रहने की जरूरत है।

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जेटली की नई दिशा है विदिशा

Posted on 06 March 2018 by admin

जब से केंद्रीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने अपने गिरते स्वास्थ्य का हवाला देते हुए 2019 में विदिशा से अगला लोकसभा चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया है, तब से विदिशा को लेकर पार्टी दिग्गजों में धकमपेल का आलम है। मध्य प्रदेश की विदिशा सीट पर संघ का काफी पुराना दबदबा है, चुनांचे यह न सिर्फ भाजपा का गढ़ है, बल्कि अपेक्षाकृत यह एक आसान व सुरक्षित सीट मानी जाती है। सूत्रों की मानें तो आने वाले लोकसभा चुनाव में यहां से भाजपा के दिग्गज अरूण जेटली अपनी किस्मत आजमा सकते हैं, पिछले दिनों जेटली के करीबी माने जाने वाले कुछ नेतागण विदिशा पहुंचे थे और उन्होंने स्थानीय नेताओं व कार्यकर्ताओं के समक्ष जेटली का नाम उद्घाटित कर, यहां से उनके चुनाव लड़ने की संभावनाओं के प्रस्फुटन का आकलन किया। सनद रहे कि जेटली अब तक लोकसभा का कोई चुनाव नहीं जीत पाए हैं, और लोकसभा पहुंचने की उनकी अदम्य इच्छा की परिणति विदिशा हो सकती है।

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गुलाम नबी और नाग देवता

Posted on 06 March 2018 by admin

देश का मिजाज़ बदल रहा है, इसकी गंगा जमुनी सीरत को फिर किसी की नज़र लग गई है, सो मंदिर-मस्जिद मुद्दा फिर से गर्म हो रहा है, जिसकी चिंगारियां किसी भी पल सियासत को भड़का सकती हैं, ऐसे में कांग्रेसी नेता गुलाम नबी आजाद के लिए एक नाग देवता की सुरक्षा करना बेहद चुनौतीपूर्ण होती जा रही है। पिछले कोई 25 वर्षों से गुलाम नबी नई दिल्ली के लुटियंस जोन के 3 सफदरजंग लेन पर रहते आए हैं, उनके लॉन में एक वर्षों पुराना वृक्ष है, मान्यता है कि इसी पेड़ में एक मणिधारी नाग भी काफी समय से रह रहा है। कहते हैं एक रात आस-पास के लोगों को इस पेड़ के पास चमकदार रोशनी दिखी, तो श्रद्धापूर्वक लोग दूध का कटोरा हाथ में लिए उस पेड़ के आसपास जमा होने लगे, भीड़-भाड़ बढ़ने लगी और इस बात की चर्चाएं भी, गुलाम नबी लोगों को पेड़ तक आने से रोक नहीं पा रहे थे, क्योंकि इससे एक संप्रदाय विशेष की धार्मिक मान्यताएं जुड़ी हुई थीं। तब उन्होंने अपने माली से कहकर उस पेड़ के इर्द गिर्द वृताकार आकार में फूलों के गमले रखवा दिए ताकि कोई नाग देवता तक पहुंच न सके और नाग का बाल बांका न हो सके।

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जमीन पर पत्रकार

Posted on 06 March 2018 by admin

नई दिल्ली के दीनदयाल अवस्थित भाजपा का शानदार हाइटेक मुख्यालय चालू हो चुका है पर भाजपा बीट कवर करने वाले पत्रकारों की बोलती बंद है, क्योंकि उनकी एंट्री को केवल ग्राउंड फ्लोर तक ही सीमित कर दिया गया है। दूसरे शब्दों में कहें तो भाजपा ने पत्रकारों को जमीन दिखा दी है, उनकी एंट्री भूतल तक सीमित कर। ऊपरी मंजिलों पर जहां पार्टी के पदाधिकारीगण विराजमान होते हैं, उनसे मिलना है तो एंट्री के लिए पास बनवाना जरूरी है। यहां तक कि पार्टी के महासचिवों से भी मिलना हो तो पास चाहिए, यानी खबर निकले कहां से? ऑफ द् रिकार्ड ब्रीफिंग हो कहां से? उपलब्ध हैं तो पार्टी के मीडिया प्रभारी अनिल बलूनी, जिनसे आप सहजता से मिल सकते हैं, पर उनसे मिलकर होगा क्या? खबर देने वाले तो ऊपरवाला है।

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एमपी के 13 विधायकों पर लटक रही है संघ की तलवार

Posted on 06 March 2018 by admin

मध्य प्रदेश में संपन्न हुए हालिया उप चुनावों में मिली करारी शिकस्त के बाद वहां के मुख्यमंत्री शिवराज का राज किंचित संकट में दिखने लगा है, जहां राज्य में प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस शिवराज सरकार को जोर-शोर से घेरने की तैयारियों में जुटी है, वहीं भगवा राज के अपने भी शिवराज को बख्शने के मूड में नहीं दिखते। शिवराज के भविष्य को लेकर भाजपा व संघ में गंभीर मंत्रणाओं के दौर जारी हैं। संघ से जुड़े सूत्रों से मिली जानकारियों के मुताबिक अभी पिछले दिनों संघ ने एक एजेंसी से राज्यव्यापी जनमत सर्वेक्षण करवाया है, और इस सर्वेक्षण के नतीजों ने संघ की चिंताएं और बढ़ा दी हैं, यह सर्वेक्षण बताता है कि अगर अभी मध्य प्रदेश में विधानसभा के चुनाव हो गए तो 230 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा की निगती 100 से भी कम रह सकती है। सनद रहे कि पिछले चुनाव में राज्य की 230 में से 165 सीटें भाजपा के खाते में आई थी। राज्य में इस नवंबर-दिसंबर माह में चुनाव हो सकते हैं, इसको देखते हुए संघ ने ऐसे 73 निवर्तमान भाजपा विधायकों को चिन्हित किया है, जिनके काम-काज को लेकर जनता में काफी रोष है, चुनांचे अब संघ की यह राय है कि इन 73 विधायकों के टिकट काटकर यहां से नए चेहरों को मैदान में उतारा जाए। माना जा रहा है कि संघ के इस डैमेज कंट्रोल प्लॉन को भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की भी हरी झंडी है, बिचारे शिवराज की मुश्किल यह है कि इन 73 में से ज्यादातर विधायक उनके लाडले हैं, पर अपना टिकट कटवाने से बेहतर है, दूसरों के कट रहे टिकटों पर चुप्पी साध ली जाए, सियासत में चुप्पी अस्त्र भी है और कवच भी, शिवराज से बेहतर इस बात को और कौन जान सकता है?

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किसानों से किनारा, महिलाओं का आसरा

Posted on 06 March 2018 by admin

चुनावी नतीजों की तपिश ने शिवराज को भी पैंतरे बदलने पर मजबूर कर दिया है, वैसे भी पिछले कई महीनों से शिवराज अपनी किसान हितैषी छवि से बाहर आने की कोशिश में जुटे थे, शिवराज इन दिनों ’राग नारी’ गाने में जुट गए हैं। पुरूशों के मुकाबले राज्य में महिलाओं का लिंग अनुपात 49 फीसदी के आसपास है, इतिहास गवाह है कि यहां की महिलाओं के वोट भी एकतरफा थोकभाव में पड़ते हैं, जो किसी सरकार को गिराने या बनाने में अहम भूमिका निभाते हैं। सो, इस बात को भांपते हुए कि महिलाएं किंचित धार्मिक प्रवृत्ति की होती हैं, शिवराज पिछले कुछ समय से धर्म-कर्म की बातें ज्यादा करने लगे हैं। धार्मिक अनुष्ठानों में पहले भी वे बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे, पर अब तो जैसे शिवराज ने रामनामी दुशाला ही ओढ़ ली है। किसानों से अपना दामन बचाने के पीछे शिवराज का यह तर्क हो सकता है कि जब से केंद्र ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना लागू कर दी है तब से किसानों की फसल क्षतिपूर्ति व ऋण माफी का मसला भी राज्य सरकार के अधीन न रहकर अब सीधा केंद्र के पास चला गया है। वैसे भी शिवराज सरकार के ऊपर किसानों का पिछला ही करीब 2600 करोड़ रुपयों का बकाया है, और किसानों को देने के लिए राज्य सरकार का खजाना खाली है, एपेक्स बैंक के पास पैसा नहीं है, सिर्फ वर्ष 2016 की ही बात करें तो इस साल तकरीबन 18 लाख किसानों का फसल बीमा योजना के अंतर्गत बीमा हुआ था, त्रासद रहा कि फसल क्षतिपूर्ति की किसानों को उतनी रकम भी नहीं मिल पाईं, जितनी की उन्होंने अपनी बीमा की प्रीमियम राशि अदा की थी, अब किसानों की नाराज़गी का ठीकरा शिवराज पर फूट पड़ा है, सो अब वे महिलाओं की शरण में चले गए हैं, शायद यह भी भूल गए हैं कि किसान परिवारों में भी महिला वोटरों की अच्छी खासी तादाद होती है।

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मुश्किल में शिवराज

Posted on 06 March 2018 by admin

पिछले 5 महीनों से शिवराज सिंह चौहान काफी तनाव से गुजर रहे हैं, सूत्र बताते हैं कि तनाव के इसी आलम की वजह से उन्हें डायबिटीज भी हो गई है, मंगलवार की कैबिनेट बैठक में भी अब कई असंतोष के स्वर उभरने लगे हैं। वैसे भी जब से आनंदीबेन पटेल ने राज्य की गवर्नर का दायित्व संभाला है, सूत्र बताते हैं कि वह तमाम विभागों के सेक्रेटरी को तलब कर उनसे सीधा प्रेजेटेंशन लेने लगी हैं। व्यापम का मामला भी अभी भी पूरी तरह से ठंडे बस्ते के हवाले नहीं हुआ है। सूत्रों का तो यहां तक दावा है कि व्यापम की आंच में कई सियासी महत्वाकांक्षाएं सुलग गई है, उमा भारती का भी अगला चुनाव न लड़ने का ऐलान भी इसी बात की ओर इशारा कर रहा है। वह तो भला हो एक हैवीवेट केंद्रीय मंत्री का जिनके एक नजदीकी रिश्तेदार जज ने इस मामले में शिवराज को क्लीन चिट दे दी। इस केंद्रीय मंत्री की नज़र 19 में पीएम पद पर है और अब कायदे से शिवराज को भी उनका साथ देना पड़ सकता है।

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