Archive | October, 2017

भगवा शीर्ष पर सुलग रही है असंतोष की चिंगारी

Posted on 15 October 2017 by admin

अपनी केरल यात्रा को बीच में छोड़ कर यूं अचानक जब अमित शाह को दिल्ली लौटना पड़ा तो कयासों के बाजार गर्म थे, लेकिन इसके बाद सरकार की आर्थिक नीतियों के प्रभाव को लेकर जब प्रधानमंत्री मोदी, वित्त मंत्री जेटली और अमित शाह के बीच जीएसटी के प्रावधानों को लेकर एक मैराथन बैठक हुई। सूत्र बताते हैं कि शाह ने जेटली को बताया कि गुजरात से जो जमीनी रिपोर्ट आ रही है, वह परेशान करने वाली है। खासकर अहमदाबाद, सूरत और वडोदरा के व्यापारी खुलकर अपना विरोध जता रहे हैं। सूत्र बताते हैं कि एक वक्त ऐसा भी आया जब पीएम के समक्ष ही शाह व जेटली की वाणी आपस में उलझ गई। खैर, इस बैठक का लब्बोलुआब यह निकला कि इसमें इस बात पर इन त्रिमूर्त्तियों में सहमति बनी कि 28-29 उत्पादों पर जीएसटी की दरें कम की जाएंगी और पेट्रोल व डीजल पर से भी वैट कम किया जाएगा। शायद यह गुजरात के आसन्न विधानसभा चुनावों की ही धमक थी जिसकी वजह से खाखड़ा, आम पापड़ जैसे गुजरातियों के नियमित खाद्य पदार्थों से जीएसटी सीधे 18 से घटाकर 5 पर ले आई गई। सूरत के कपड़ा उद्योग के मद्देनजर कपड़ों के जरी पर भी जीएसटी 5 कर दिया गया, धागे पर 18 फीसदी की जीएसटी को 12 पर ले आया गया। सरकार इन त्वरित कदमों की प्रतिक्रियाओं के इंतजार में है, शायद यही वजह हो कि गुजरात चुनावों की तारीखों के ऐलान में देरी हो रही है और जीएसटी को लेकर भाजपा के अपने शत्रुघ्न सिन्हा ने भोजपुरी में इसकी एक नई परिभाषा दी है, शत्रु कहते हैं जीएसटी का मतलब है ’गईल सरकार तोहार’।

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राजा व राजे में तनातनी

Posted on 15 October 2017 by admin

क्या राजस्थान की महारानी वसुंधरा राजे और दिल्ली के निज़ाम के बीच सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है? शायद यही वजह थी कि जब पिछले दिनों राजस्थान के उदयपुर में 15 हजार करोड़ का रोड प्रोजेक्ट गिफ्ट करने प्रधानमंत्री वहां पहुंचे तो उन्हें एयरपोर्ट पर रिसीव करने के वास्ते स्वयं मुख्यमंत्री भी मौजूद थी, पर मोदी ने वसुंधरा को ज्यादा तवज्जो न देकर उनके साथ खड़े घनश्याम तिवाड़ी से बातचीत शुरू कर दी। इस तल्खी के दीदार मंच पर भी हुए, जब मोदी मंच पर विराजमान होकर पूरे समय तिवाड़ी से ही बतियाते रहे, दरअसल इस योजना के असल लाभार्थी भी वही थे, क्योंकि इस योजना का ज्यादा से ज्यादा लाभ उनके ही क्षेत्र को मिलने जा रहा था। जब मंच से मुख्यमंत्री का भाषण चल रहा था तो पीएम उचाट मन से किसी पत्रिका के पृष्ठों को पलटने में मसरूफ थे, आगे और क्या कुछ पलटा जा सकता है यह पीएम से बेहतर और कौन जान सकता है।

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गुजरात में बदली भगवा रणनीति

Posted on 08 October 2017 by admin

गुजरात विधानसभा चुनावों को लेकर भाजपा अपनी रणनीति बदलने पर मजबूर हुई है, 2002 के बाद शायद पहली बार गुजरात में चुनाव प्रचार के लिए भाजपा में स्टार प्रचारकों की शिनाख्त की जा रही है। दिल्ली के कई मंत्रियों ने गांधी नगर में अपना डेरा जमा लिया है। मसलन केंद्रीय मंत्री महेश शर्मा अपना हर शनिवार, रविवार गुजरात में लगा रहे हैं। केंद्रीय नेत्री सुषमा स्वराज और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कई चुनावी सभाएं गुजरात में लगाई जा रही है। नए स्टार प्रचारकों को ठोक-बजाकर परखा जा रहा है। नहीं तो 2002 से लेकर सन 2014 तक बस नमो ही पार्टी के एकमात्र स्टार प्रचारक थे, यहां तक कि पार्टी के सबसे कद्दावर लाल कृष्ण आडवानी की भी वहां चुनाव प्रचार में कोई खास भूमिका नहीं होती थी। पर इस दफे वहां 15 साल विकास का नारा कसौटी पर है, सोशल मीडिया में इसका मजाक बनाया जा रहा है, अमित शाह की गुजरात गौरव यात्रा भी वह समां नहीं बांध पा रही, चुनांचे भाजपा एक बदली रणनीति के तहत गुजरात के चुनावी रण में कुछ अलग, कुछ नए चेहरों को उतारने के लिए कृतसंकल्प जान पड़ती है।

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बिहार कांग्रेस को नया अध्यक्ष

Posted on 08 October 2017 by admin

बिहार कांग्रेस के नए अध्यक्ष को लेकर धकमपेल मची है। बिहार के कांग्रेस प्रभारी सीपी जोशी एक ऐसे नाम की पैरवी कर रहे हैं जिसको लेकर राहुल गांधी खुश नहीं बताए जाते हैं। सीपी जोशी अखिलेश सिंह की पैरवी कर रहे हैं, जो भूमिहार जाति से ताल्लुक रखते हैं, अखिलेश सिंह 2004 के लालू लहर में लोकसभा का चुनाव जीत गए थे और लालू की कृपा से वे यूपीए-I सरकार में मंत्री भी बन गए थे। पर अखिलेश ने 2009 में लालू का साथ छोड़ कांग्रेस का दामन थाम लिया। इसके बाद हुए जितने भी चुनाव में उन्होंने हिस्सा लिया, वे कोई भी चुनाव जीत नहीं पाए, यहां तक कि इस बार का विधानसभा चुनाव भी वे हार गए। अब इनके विरोधी कह रहे हैं कि एक हारा हुआ नेता कैसे पार्टी को राज्य में जीत का स्वाद चखा सकता है। दूसरा नाम श्याम सुंदर सिंह धीरज का चल रहा है, जो 17 साल तक यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष रहे और कभी सीताराम केसरी के खासमखास में शुमार होते थे, केसरी के जमाने में ही इन्होंने सोनिया को पार्टी अध्यक्ष बनाने की वकालत कर दी थी, नाराज़ होकर केसरी ने इन्हें ठंडे बस्ते में डाल दिया था। यह पिछड़ी जाति से ताल्लुक रखते हैं, राहुल भी इनके नाम को आगे बढ़ाने के पक्षधर दिखते हैं। एक और नाम प्रेमचंद्र मिश्र का है जो छात्र राजनीति से आगे आए हैं, पर चुनाव जीतने के मामले में इनका रिकार्ड भी सिफर है। एक और नाम मदन मोहन झा का चल रहा है जो इस बार का चुनाव जीते हैं। बिहार में कांग्रेस के लिए संभावनाओं की जमीन काफी ऊर्वरा है, क्योंकि फिलवक्त लालू कमजोर विकेट पर खेल रहे हैं, कांग्रेस को इस बात का फायदा मिल सकता है।

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ऐसे उड़ी जेटली के इस्तीफे की ख़बर

Posted on 08 October 2017 by admin

मीडिया में इस बात की पड़ताल शुरू हो गई है कि आखिरकार मोदी सरकार के सर्वशक्तिमान अरुण जेटली की इस्तीफे की अफवाह उड़ी कैसे? कांग्रेस परस्त एक अखबार ने तो बकायदा इसकी ख़बर छाप भी दी थी। विश्वस्त सूत्र बताते हैं कि जीएसटी काऊंसिल की बैठक से पूर्व 2 अक्टूबर की शाम को इस पर ब्रीफिंग के लिए प्रधानमंत्री ने अमित शाह और अरुण जेटली को अपने पास तलब किया था। जिसमें सरकार का पक्ष जेटली रख रहे थे तो पार्टी व जनता का पक्ष सामने रखने की जिम्मेदारी शाह को सौंपी गई थी। शाह के बेहद भरोसेमंद भूपेंद्र यादव पिछले काफी समय से छोटे व्यापारियों से मिलकर जीएसटी पर उनकी परेशानियां जान रहे थे। भूपेंद्र यादव की मदद से शाह ने जीएसटी को लेकर छोटे व्यापारियों की चिंताए और उनकी अपेक्षाओं को लेकर एक डॉसियर तैयार किया था, जिसे लेकर वे पीएम के पास गए थे। ऐसे में किसी ने अफवाह उड़ा दी कि पीएम जेटली से इस्तीफा ले रहे हैं। यह ख़बर तेजी से फैली, उस रोज राजनाथ सिंह लखनऊ में थे, जहां उनके कई कार्यक्रम लगे थे। सूत्र बताते हैं कि राजनाथ ने भी अपने तमाम पूर्व निर्धारित कार्यक्रम रद्द कर दिए और किसी अनहोनी की आशंका से भागे-भागे दिल्ली आ पहुंचे। सोशल मीडिया पर इस्तीफे की ख़बर छाई हुई थी और पीएम से मीटिंग के बाद निर्विकार भाव से जेटली व शाह उनके घर से बाहर निकल रहे थे।

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वडेट्टीवार का सियासी वार

Posted on 08 October 2017 by admin

विजय वडेट्टीवार का नाम ध्यान होगा आपको, जनाब शिवसेना छोड़ कर कांग्रेस में आए हैं। पर जब इस दफे राष्ट्रपति पद के चुनाव में वोटिंग हुई तो विपक्षी उम्मीदवार मीरा कुमार ने बकायदा शिकायत दर्ज कराई थी कि वडेट्टीवार ने 10 वोटों के साथ एनडीए उम्मीदवार कोंविद के पक्ष में क्रॉस वोटिंग की है। पर वडेट्टीवार की सफलताओं का कारवां बस आगे बढ़ता गया। पहले वे महाराष्ट्र में विपक्ष के डिप्टी लीडर बनाए गए, हालांकि यह कोई संवैधानिक पद नहीं है, बावजूद इसके इन्हें राज्य मंत्री का दर्जा दे दिया गया। शायद इस पद पर रह कर राज्य मंत्री का दर्जा हासिल करने वाले ये देश के पहले नेता होंगे। ये मोहन प्रकाश के खासमखास में शुमार होते हैं। पर जब से सिंचाई घोटाले में इनका नाम आया है, जांच एजेंसियों, खासकर वे ईडी के निशाने पर आ गए हैं। पर वडेट्टीवार को अपनी पार्टी लाइन से इतर रिश्तों पर खूब भरोसा है कि कोई उनका बाल बांका नहीं कर सकता।

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…और अंत में

Posted on 08 October 2017 by admin

अब ’इंदिरा गांधी नेशनल सेंटर ऑफ आर्टस’ जैसे संस्थान भी केसरिया रंग में रंगे नज़र आ रहे हैं। अभी पिछले दिनों इस संस्थान के प्रांगण में दीवाली मेले का आयोजन था, जिसका उद्घाटन संघ प्रमुख मोहन भागवत के कर कमलों से हुआ। सनद रहे कि इस संस्थान की बागडोर जब से संघ के चिंतन में डूबे वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय को मिली है, यहां अब संघियों का जमावड़ा जुटने लगा है। चुनांचे जब मोहन भागवत यहां पधारे तो उन्होंने संघ और भाजपा के छोटे-छोटे कार्यकर्त्ताओं को भी अलग से मिलने का 5 मिनट का समय दिया और प्रत्येक की बातों को ध्यानपूर्वक सुना। संघ प्रमुख को जमीनी फीड बैक मिल गया, तो कार्यकर्त्ताओं को उनका खोया हुआ सम्मान! (एनटीआई-gossipguru.in)

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गडकरी के डिनर पर क्यों उबले मोदी और भागवत?

Posted on 08 October 2017 by admin

देश के मिजाज में हिंदुत्व के प्रस्फुटन और इसकी तासीर में केसरिया ताने-बाने के आगाज़ के बावजूद ऐसा क्या है जो सत्ता के हिंडोलों पर सवार भाजपा और सातवें आसमान की सवारी गांठते राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बीच सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है। पिछले पखवाड़े इसकी बानगी केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के घर आहूत रात्रि भोजन पर दिखी, विश्वस्त सूत्र बताते हैं कि इस डिनर में मोदी, शाह, मोहन भागवत, भैय्याजी जोशी समेत 7 प्रमुख नेता शामिल थे। सूत्र बताते हैं कि इस बैठक का मुख्य उद्देश्य मोदी सरकार व संघ के संबंधों में समन्वय बनाने को लेकर था। सूत्रों का दावा है कि जब संघ प्रमुख मोहन भागवत ने सरकार की आर्थिक नीतियों को लेकर किंचित सख्त भाषा का इस्तेमाल किया तो सत्ता के शीर्ष द्वय ने इसका बुरा माना। दरअसल, भागवत की चिंता कमोबेश उसी लाइन पर थी, जो चिंता आज अरुण शौरी या यशवंत सिन्हा जता रहे हैं, भागवत की असल चिंता देश में घटती नौकरियों को लेकर थी। सूत्रों के मुताबिक भागवत की इस चिंता का मोदी ने भी अपने तरीके से जवाब दिया, उनके कहने का लब्बो-लुआब यह था कि वे देश के प्रधानमंत्री हैं और किंचित कड़े फैसले लेने का हक उनके पास है। इस कहा-सुनी में मामला इतना असहज हो गया कि भागवत भोजन की थाली बीच में ही छोड़ कर अन्य कमरे में चले गए। नाराज भागवत को बमुश्किल मना कर वापिस खाने की टेबुल पर लाया जा सका। पर इस तनातनी की अनुगूंज संघ के आनुशांगिक संगठनों के काम-काज से भी झलकने लगी है, भारतीय किसान मजदूर संघ ने मोदी की आर्थिक नीतियों को लेकर उसी शैली में विरोध की आवाज़ उठाई है, जिस शैली के प्रवर्त्तक संघ प्रमुख रहे हैं।

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सियासत के शाह की वाह

Posted on 08 October 2017 by admin

बदलते वक्त के साथ अकबर इलाहाबादी का यह तर्क बेमतलब होता जा रहा है कि ’जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो’ आज नए दौर के अखबार और उनके मालिक गण इन सच्चाईयों पर भगवा पेंट करने में सिद्दहस्त हो गए हैं। यूपी के एक प्रमुख दैनिक अखबार के सवाल-जवाब की गोष्ठी में जब भाजपा अध्यक्ष अमित शाह पहुंचे तो उनके समक्ष टेबुल पर एक टेप रिकार्डर ऑन करके रख दिया गया। अखबार के तमाम बड़े पत्रकारों व विभिन्न संपादकों ने शाह को अपना परिचय पेश किया, इसके बाद शुरू हुआ सवाल-जवाब का सिलसिला। जैसे ही कुछ अप्रिय सवाल आने शुरू हुए, सूत्र बताते हैं कि शाह ने टेप रिकार्डर बंद कर उसे अपने पास रख लिया। अखबार के कई उत्साही पत्रकारों ने जब अपने तीखे सवालों के बाऊंसर शाह की ओर उछाले तो शाह ने उसे ’डक’ करते हुए बेतकत्लुफी से कहा-’आपके वरिष्ठ संपादकों को मालूम है कि क्या छापना है और क्या नहीं।’ एक सवाल एक वरिष्ठ संपादक की ओर से दन्न से आया जो कि गो-वध को लेकर था। शाह ने सपाट लहजे में कहा-’देखिए यह प्रधानमंत्री पहले ही कह चुके हैं कि गाय के नाम पर किसी को सताया नहीं जा सकता और मैं भी यही राय रखता हूं।’ फिर अखबार प्रबंधन ने इस पूरे सेशन की रिपोर्टिंग पेज बनाकर बकायदा अनुमोदन के लिए सियासत के शाह के पास भेजा। जरूरी अनुमोदन के बाद अगले रोज अखबार छप कर पाठकों के बीच आ गया।

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शाह की क्लास में प्रवेश

Posted on 05 October 2017 by admin

प्रवेश साहिब सिंह वर्मा भी इन दिनों अपनी पार्टी हाईकमान के रवैए से दुखी हैं, वे दुखी हैं कि बवाना उप चुनाव में पार्टी उम्मीदवार की हार के बाद उन्हें कायदे से डपटा गया है। दरअसल बवाना उप चुनाव का प्रभारी प्रवेश वर्मा को सिर्फ इसीलिए बनाया गया था कि बवाना एक जाट बहुल सीट है। आम आदमी पार्टी के सिटिंग विधायक वेद प्रकाश अपनी पार्टी और विधायकी से इस्तीफा देकर, भाजपा के टिकट पर वहां से चुनाव लड़ रहे थे। चुनांचे यह भाजपा और आप पार्टी के दरम्यान मूंछों की लड़ाई थी। पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने भी बड़ी उम्मीदों के साथ बवाना उपचुनाव की बागडोर प्रवेश के हाथों में सौंपी थी, कहते हैं भाजपा के प्रति जाटों का गुस्सा देखते हुए चुनाव प्रभारी होने के बावजूद डेंगू होने का बहाना बना प्रवेश घर से बाहर ही नहीं निकले और इस चुनाव में भाजपा के इस अधिकृत उम्मीदवार को बड़े अंतर से मुंह की खानी पड़ी। चुनाव का रिजल्ट आने के बाद अमित शाह ने प्रवेश वर्मा और उस क्षेत्र के भाजपा सांसद उदित राज को अपने दफ्तर तलब किया। इन दोनों को बाहर बैठकर घंटों इंतजार करना पड़ा, जबकि बवाना से भाजपा के टिकट पर चुनाव हार गए वेद प्रकाश वहां देर से पहुंचे और सीधे अमित शाह के कमरे के अंदर चले गए। जहां उन्हें आश्वासन प्राप्त हुआ कि शीघ्र ही उन्हें पार्टी में एडजस्ट किया जाएगा। सूत्र बताते हैं कि इसके बाद प्रवेश और उदित राज को अंदर बुलाकर उनकी क्लास लगाई गई।

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