Archive | February, 2021

क्या मुंबई महाराष्ट्र से अलग होगा?

Posted on 26 February 2021 by admin

क्या भारत की औद्योगिक राजधानी मुंबई नए सियासी दांव-पेंच के पेंचोखम में उलझ गई है? अब यह मांग जोरों से उठने लगी है कि मुंबई को महाराष्ट्र से अलग कर उसे केंद्र शासित प्रदेश यानी यूटी का दर्जा दे दिया जाए। इस पूरे बवाल की शुरूआत महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के उस बयान से शुरू हुई जिसमें उन्होंने कहा था कि ’बेलागवी’ पर जब तक सुप्रीम कोर्ट का कोई निर्णय नहीं आता है उसको यूटी यानी केंद्र शासित प्रदेश घोषित कर दिया जाए, जिससे न उस पर कर्नाटक अपना दावा कर सकेगा और न ही महाराष्ट्र। ठाकरे के इस बयान के बाद कर्नाटक उबल पड़ा, कर्नाटक के उप मुख्यमंत्री लक्ष्मण सवाडी ने सबसे पहले मुंबई को कर्नाटक का हिस्सा घोषित करने की मांग उठाई, कर्नाटक के येदुरप्पा सरकार के दो अन्य मंत्रियों रमेश जर्की होली और शशिकला जोले ने भी सवाडी के सुर में अपने सुर मिला दिए। सनद रहे कि कर्नाटक बेलागवी क्षेत्र के कारबार, नियाणी जैसे कई हिस्सों में कन्नड़ से ज्यादा मराठी भाषा बोली जाती है, इनको मद्देनजर रखते ही उद्धव ने अपना इमोशनल कार्ड खेला था पर यह दांव उन्हें ही उल्टा पड़ गया। कालांतर में बंबई यानी आज के मुंबई का बांबे प्रेसीडेंसी एस्टेट का दर्जा हुआ करता था, जिसके कुछ हिस्सों को अलग कर कर्नाटक, गुजरात और महाराष्ट्र जैसे राज्यों की नींव पड़ी थी। सनद रहे कि सन् 1960 में महाराष्ट्र आंदोलन के बाद बंबई को नवनिर्मित महाराष्ट्र राज्य की राजधानी घोषित किया गया था। हालांकि अभी कर्नाटक में भाजपा की सरकार है, पर पार्टी ने इस मुद्दे पर खामोशी ओढ़ रखी है, भाजपा जानती है कि मुंबई को छेड़ने से महाराष्ट्र में बवाल बढ़ सकता है, उस महाराष्ट्र में जहां की विधानसभा में अभी भाजपा के पास 105 विधायक हैं।

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बिहार में नई भाजपा

Posted on 26 February 2021 by admin

बिहार में भाजपा को नया चेहरा-मोहरा देने की कवायद जारी है, वहां पुराने खांटी नेताओं को दरकिनार कर अपेक्षाकृत नए और युवा चेहरों को महत्व दिया जा रहा है। नीतीश कुमार के मौजूदा कैबिनेट में भाजपा कोटे से 16 मंत्री बनें हैं जिनमें से 12 चेहरे एकदम नए हैं। नंद किशोर यादव, प्रेम कुमार, विनोद नारायण झा जैसे पुराने मंत्रियों को नए कैबिनेट में जगह नहीं मिली है। नीतीश कुमार के समक्ष भी अब भाजपा बड़े भाई की तरह एक्ट कर रही है, 2015 के विधानसभा चुनाव में नीतीश के जदयू की 71 और भाजपा की 54 सीटें आई थीं, 2017 में जब नीतीश ने भाजपा से फिर हाथ मिलाया तो उनके कैबिनेट में भाजपा मंत्रियों की कोई पूछ नहीं थी, यहां तक कि उन मंत्रियों के सचिव भी नीतीश अपनी इच्छानुसार नियुक्त करते थे, पर 2020 के चुनाव के बाद मौसम बदल गया है, इस दफे भाजपा ने 74 और नीतीश की जदयू ने मात्र 44 सीटें जीती है, सो भाजपा के मुकाबले जदयू कोटे से मंत्री कम बने हैं, नीतीश के मौजूदा कैबिनेट में भाजपा के 16 और जदयू के 13 मंत्री हैं। जो शाहनवाज हुसैन नीतीश कुमार और सुशील मोदी को फूटी आंखों नहीं सुहाते थे आज वे बिहार सरकार में उद्योग मंत्री हैं। भाजपा हाईकमान ने उन्हें
अपनी ’चेक एंड बैलेंस’ की रणनीति के तहत यह जिम्मेदारी सौंपी हैं। पार्टी नेतृत्व ने शाहनवाज हुसैन को जम्मू-कश्मीर के डीडीसी यानी डिस्ट्रिक्ट डेवलपमेंट काऊंसिल चुनाव में भाजपा का परचम लहराने के लिए उन्हें इनाम स्वरूप यह मंत्री पद दिया है। पीएम मोदी का कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद के राज्यसभा से रिटायर होने पर उनका भावुक भाषण भी भाजपा के लिए संभावनाओं के नए द्वार खोलता है, इससे पहले भाजपा जफर इस्लाम को राज्यसभा में भी लेकर आई है, कहीं न कहीं ये सारे उपक्रम बंगाल और असम के आगामी विधानसभा चुनाव में मुस्लिम वोटों को साधने के भी हो सकते हैं, वैसे भी मोदी-शाह को ऐसी रणनीति बुनने में महारथ हासिल है।

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सरकार और संगठन दोनों में होगा फेरबदल

Posted on 26 February 2021 by admin

संसद के बजट का पहला चरण जो 15 फरवरी को खत्म होने वाला था उस पर 13 फरवरी को ही ब्रेक लग गया, मौजूदा बजट सत्र को यूं तो 8 अप्रैल की मियाद पर खत्म होना है पर देश के सियासी मौसम का जो हालचाल है उससे इस बात के संकेत मिल रहे हैं कि शायद बजट सत्र अपनी तय मियाद को भी पूरी नहीं कर पाएगा। सूत्रों की मानें तो पीएम मोदी अपने मंत्रिमंडल के चिर प्रतीक्षित फेरबदल को अंतिम रूप देने में जुटे हैं। इस बाबत वे सहयोगी दलों से भी निर्णायक बातचीत को अंतिम रूप दे रहे हैं। कहते हैं कि पीएम के बुलावे पर नीतीश कुमार मंगलवार की शाम दिल्ली पहुंचे थे, पर मोदी से उनकी मुलाकात गुरूवार को हो पाई, सूत्र बताते हैं कि पीएम ने नीतीश की पार्टी से केंद्र में मंत्री बनाने के लिए जदयू सांसदों के नाम मांगे थे पर नीतीश का रवैया टालमटोल वाला रहा। जदयू से जुड़े सूत्र खुलासा करते हैं कि इस बार शायद लल्लन सिंह का नंबर लग सकता है, क्योंकि नीतीश के खास वफादार आरसीपी सिंह को उन्होंने जदयू का राष्ट्रीय अध्यक्ष नियुक्त करवा रखा हैा। एक नाम नालंदा से तीन बार के सांसद कौशलेंद्र कुमार का भी चल रहा है, ये भी नीतीश के बेहद करीबी हैं, पर सूत्रों की मानें तो नीतीश व्यक्तिगत रूप से नहीं चाहते कि उनकी पार्टी के किसी भी सांसद को मोदी कैबिनेट में रहनुमाई मिले। वे दिल्ली में अपनी पार्टी का कोई पॉवर सेंटर नहीं बनाना चाहते हैं। बहुत हद तक ऐसी ही भावना नवीन पटनायक और जगन मोहन रेड्डी जैसे क्षेत्रीय क्षत्रपों की भी है, इन दोनों ने भी पीएम से साफ कर दिया है कि वे नीतिगत मसलों पर मोदी सरकार को अपना पूरा समर्थन देते रहेंगे, पर इनके दल के सांसद केंद्र सरकार को ज्वॉइन नहीं करेंगे। यहां तक कि नवीन पटनायक ने तो अपनी पार्टी के भतृहरि महताब को लोकसभा उपाध्यक्ष बनाने के पीएम के प्रस्ताव को भी सिरे से नकार दिया था। सूत्र बताते हैं कि पिछले दफे आरसीपी सिंह सिर्फ इसीलिए केंद्र में मंत्री बनने से चूक गए थे चूंकि उन्हें पीएमओ से सीधा फोन चला गया था, नीतीश ने इसे अपने लिए खतरे की घंटी मान ली थी। सो, मुमकिन है कि मोदी मंत्रिमंडल के आने वाले फेरबदल में सिर्फ भाजपा के लोगों को ही जगह मिले।

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कुर्सी के लिए कुछ भी करेगा

Posted on 08 February 2021 by admin

क्या सरकारी उपक्रमों के मुखियाओं के लिए सरकार कोई नई पॉलिसी लाने का इरादा रखती है? क्या इसके प्रमुखों के कार्यकाल की मियाद इस भरोसे के साथ तय की जा सकती है कि इन्हें बार-बार सेवा विस्तार नहीं मिलेगा। ताजा मामला जल शक्ति मंत्रालय से जुड़ा है, मंत्रालय से संबद्द उसका सार्वजनिक उपक्रम है ‘वेबकॉस’ यानी ‘वॉटर एंड पॉवर कंसलटेंसी कॉरपोरेशन’, सन् 2010 में आर के गुप्ता वेबकॉस के सीएमडी नियुक्त किए गए 5 वर्षों के लिए, जिन्हें फिर से 3 वर्षों का एक्सटेंशन दे दिया गया, सेवा विस्तार की मंजूरी एसीसी से मिली और इनकी सेवा अवधि 2018 तक के लिए बढ़ा दी गई, जिसे गुप्ता ने अपने शुभचिंतकों की मदद से बढ़ा कर 2020 तक करा लिया। इतना ही नहीं गुप्ता ने वेबकॉस के साथ एक और सरकारी मिनी रत्न ‘एनपीसीसी’ के सीएमडी का अतिरिक्त प्रभार भी एक वर्ष के लिए संभाला। 2020 के सितंबर महीने में जब गुप्ता अपने पद से सेवा निवृत्त हुए तब भी उन्होंने हार नहीं मानी और उन्होंने नई दिल्ली के कनॉट प्लेस में अपनी एक कंसलटेंसी फर्म खोल ली और परोक्ष-अपरोक्ष तौर पर वेबकॉस से जुड़ी सेवाओं के लिए अन्य कंपनियों को अपनी दक्षता का लाभ देने लगे। गुप्ता के भतीजे प्रशांत गुप्ता ने भी नई दिल्ली के रोहिणी में ‘ग्रो ईवर इंफ्रा कंपनी’ की शुरूआत की जो चाचा की दक्षताओं को ही नए आयाम मुहैया करा रही है। भले ही जल शक्ति मंत्रालय की अतिरिक्त सचिव देवाश्री मुखर्जी को वेबकॉस का नया सीएमडी नियुक्त किया गया हो, पर आर के गुप्ता की अब भी वहां उतनी ही तूती बोलती है। आर के गुप्ता इस मामले में कोई अकेले लाभार्थी नहीं है, बल्कि दर्जनों सार्वजनिक उपक्रमों की बस यही कहानी है। ऐसी ही एक कहानी एनबीसीसी की सहायक कंपनी ‘एचएससीसी’ की भी है, जहां के सीएमडी ज्ञानेष पांडेय वहां सन् 2012 से ही अपने पद पर काबिज हैं, उन्हें इस पद पर डटे 9 वर्ष हो गए हैं, इस साल जुलाई में वे रिटायर होने वाले हैं, पर वे भी अपने एक्सटेंशन के लिए पूरा जोर लगा रहे हैं, उनके भी सियासी रसूख को देखते हुए अगर उन्हें एक और सेवा विस्तार मिल जाए तो किसी को ज्यादा आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

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…और अंत में

Posted on 07 February 2021 by admin

बीते कुछ समय में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला एक नए अवतार में संसद में नज़र आ रहे थे। वे शांत, संयमी और मृदुभाषी होने का परिचय दे रहे थे, पिछले कुछ वक्त में उन्होंने विरोधी दलों के सांसदों से भी अपने निजी ताल्लुकात बनाए हैं, यहां तक कि सदन में भी वे विरोधी दलों के सांसदों को बोलने का भरपूर मौका देते हैं। पर पिछले दिनों उन्होंने अपनी इस नई चमकदार छवि को एक झटके में दरका दिया, जब पंजाब के आप सांसद भगवंत मान कुछ बोलने को खड़े हुए तो स्पीकर महोदय तिलमिला के अपनी जगह पर खड़े होकर तेज आवाज में चिल्लाए-’चोप्प।’ सदन हक्का-बक्का रह गया। बाद में पता चला कि भगवंत मान सदन में पहले कृषि बिल का विरोध करते स्पीकर के सामने ’वेल’ में आ गए थे, स्पीकर महोदय को इस बात का बहुत बुरा लगा था।

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कौन कितना किसान हितैषी

Posted on 07 February 2021 by admin

देश में किसान आंदोलन के शोर के बीच यह सवाल लगातार सिर उठा रहा है कि दुनिया के बाकी देशों में सरकारों का किसानों के प्रति क्या रूख है, वे खेती-किसानी की कितनी फिक्र करते हैं और सरकारी खजाने से अपने देश के किसानों पर कितना पैसा खर्च करते हैं। ‘सेंटर फॉर डब्ल्यूटीओ स्ट्डीज’ की एक रिपोर्ट के अनुसार नार्वे को किसान हितैषी देशों की सूची में शीर्ष पर रखा जा सकता है, वहां एक किसान पर सरकार का प्रतिवर्ष 22,509 डॉलर खर्च होता है, इस सूची में शामिल कुछ अन्य प्रमुख देशों पर नज़र दौड़ाई जाए स्विट्जरलैंड 9,716 डॉलर प्रति किसान, कनाडा 7,414 डॉलर, अमेरिका 7,253 डॉलर, यूरोपियन यूनियन 1,068 डॉलर, रूस 855 डॉलर, ब्राजील 134 डॉलर, चीन 109 डॉलर और अंत में भारत की भी बात कर ली जाए जहां एक भारतीय किसान सब्सिडी के तौर पर
सरकार से मात्र 49 डॉलर यानी कोई साढ़े 3 हजार रूपए प्राप्त करता है।

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आवाज़ें हिरासत में मौन है

Posted on 07 February 2021 by admin

नए दौर का यह दस्तूर नया है, अब लोगों के लिए विरोध प्रदर्शनों में शामिल रह कर आवाज उठाना आसान नहीं रह गया है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जो खुद जेपी आंदोलन की उपज हैं, अब असहमत स्वरों को पचा नहीं पा रहे हैं। बिहार पुलिस मुख्यालय की ओर से जारी एक नोटिस में कहा गया है कि अब आंदोलन और प्रदर्शनों में शामिल होने वालों को सरकारी नौकरी नहीं मिलेगी। उत्तराखंड सरकार ने भी ऐसा ही एक तुगलकी फरमान जारी करते हुए साफ किया है कि ऐसे विरोध प्रदर्शनों में शामिल होने वाले लोगों को पासपोर्ट जारी नहीं किया जाएगा। अन्ना आंदोलन की कोख से उपजी आम आदमी पार्टी आज दिल्ली की सरकार पर काबिज है, दिल्ली में भी एक अनोखे फरमान की बात सुनने को मिल रही है कि विरोध प्रदर्शनों में शामिल रहे लोगों के लिए अपना ड्राईविंग लाइसेंस बनवाना आसान नहीं रह जाएगा। बिहार में सरकार की ओर से जारी नोटिस में कहा गया है कि आंदोलन और प्रदर्शन के दौरान हिरासत में लिए गए लोगों के चरित्र प्रमाण पत्र में पुलिस इस बात का शिद्दत से जिक्र करेगी, फिर ऐसे लोगों को सरकारी नौकरी नहीं मिलेगी। इससे कुछ रोज पूर्व भी बिहार सरकार ने एक नोटिस जारी
किया था जिसमें कहा गया था कि सोशल मीडिया में मुख्यमंत्री, राज्य सरकार के मंत्रियों और अधिकारियों के बारे में आपत्तिजनक बातें लिखने वालों पर कार्रवाई होगी। इसका क्या आशय निकाला जाए कि लोकतंत्र का आगाज़ क्या बस पोलिंग बूथ पर ही खत्म हो जाता है।

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मुनाफे वाली कंपनियां क्यों बिक रही हैं?

Posted on 07 February 2021 by admin

Leider ist der Eintrag nur auf English verfügbar.

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जब सदन में भिड़ गए सांसद

Posted on 07 February 2021 by admin

शुक्रवार को शुरू हुए संसद के बजट सत्र में कुछ अजीबो-गरीब नज़ारे देखने को मिले, जब 18 विपक्षी पार्टियां राष्ट्रपति के अभिभाषण का बहिष्कार कर रही थीं, वहीं राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के नागौर से सांसद हनुमान बेनीवाल संसद के अंदर ही तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने के लिए नारेबाजी करने लगे और अपने मोबाइल से वीडियो भी बनाने लगे, बाद में उन्होंने अपना यह वीडियो मीडिया में भी जारी कर दिया। जब कि नियम के मुताबिक सदन में किसी भी प्रकार की फोटोग्राफी पर पाबंदी है, केवल राज्यसभा या लोकसभा टीवी ही अपने कैमरों का परिचालन सदन में कर सकता है। यह भी पहली बार दिखा कि राष्ट्रपति के अभिभाषण के दौरान भी सांसदों की आवाजाही जारी रही। गाजीपुर बॉर्डर पर जो कुछ हो रहा था उसको लेकर जाट सांसदों में पार्टी लाइन से इतर एक तरह की एकजुटता नज़र आई, वहीं हनुमान बेनीवाल पश्चिमी यूपी से भाजपा सांसद संजीव बालियान से भिड़ गए और उन दोनों के बीच तू-तू मैं-मैं का माहौल भी दिखा।

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राहुल की ताजपोशी में विलंब क्यों?

Posted on 07 February 2021 by admin

सूत्रों की मानें तो राहुल गांधी इस बात को लेकर खासे खफा हैं कि पार्टी के सीनियर नेतागण अब भी उनको यथोचित गंभीरता से नहीं ले रहे हैं, यही बात है जो राहुल को खाए जा रही है, जब तक अहमद पटेल जीवित थे तो वे सीनीयर नेताओं और राहुल के बीच एक संवादसेतु का काम करते थे, क्योंकि सीनीयर नेताओं की राहुल से एक आम शिकायत रहती है कि राहुल उन्हें मिलने का वक्त नहीं देते हैं, उन्हें राहुल से मिलने के लिए अलंकार सवाई और कौशल विद्यार्थी की चिरौरी करनी पड़ती है। जब तक अहमद पटेल जीवित थे तो वे कायदे से उनकी बातों को सुनते थे और उसके सार राहुल तक पहुंचा देते थे, पटेल की गैर मौजूदगी सीनियर नेताओं को खूब खल रही है। कहते हैं जब पिछले दिनों सोनिया ने इस बाबत राहुल को समझाने का यत्न किया तो राहुल रूठ कर अचानक से इटली चले गए। सीनियर नेताओं की यह भी शिकायत रहती है कि पार्टी के नीतिगत फैसलों में उन्हें शामिल नहीं किया जाता, किसान आंदोलन के दौरान भी सिर्फ राहुल और प्रियंका ने आपस में विचार-विमर्श कर यह तय कर लिया कि राहुल राष्ट्रपति को ज्ञापन देने जाएंगे और प्रियंका गिरफ्तारी देगीं। कई सीनियर नेताओं की शिकायत है कि राहुल भरी मीटिंग में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से अभद्र टोन में बात करते हैं। राहुल भी सीनियर नेताओं के व्यवहार को लेकर कहीं गहरे आहत हैं, उन्हें लगता है कि सीनियर्र अपने को तुर्रम खां समझते हैं, पार्टी के युवा नेताओं मसलन सचिन, जितिन, मिलिंद आदि को लेकर राहुल के मन में शक बना रहता है कि ये बीजेपी के टच में रहते हैं। सो, राहुल को कहीं न कहीं अपना अकेलापन सालता है, सो उनका यह बयान कि ’भले ही अकेला रह जाऊं, मैं सच बोलूंगा, मुझे परवाह नहीं, मेरे पास कुछ छिपाने को नहीं,’ उनके इसी दर्द को आवाज देता है।

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