Posted on 15 August 2020 by admin
बहुत शोर था कि ज्योतिरादित्य सिंधिया जल्द ही मोदी कैबिनेट में जगह लेंगे और वे देश के नए शिक्षा मंत्री होंगे, पर फिलहाल इन कयासों की हवा निकलती दिख रही है। अभी पिछले दिनों ही सिंधिया को शिक्षा मंत्रालय के संसदीय कमेटी का मेंबर नियुक्त किया गया है, अब सवाल उठता है कि अगर भाजपा शीर्ष को उन्हें केंद्र में मंत्री बनाना ही था तो फिर पार्लियामेंट्री कमिटी में उन्हें लेकर आने की क्या जरूरत थी, क्योंकि केंद्रीय मंत्री कभी किसी संसदीय समिति का सदस्य नहीं होता है। यह भी संकेत मिल रहे हैं कि मोदी निकट भविष्य में अपने मंत्रिमंडल का विस्तार नहीं करने जा रहे, इसके लिए वे बिहार चुनाव के नतीजों का इंतजार कर सकते हैं। एक अहम बात और कि भाजपा ने सिंधिया को राज्यसभा देने के साथ उनके 14 समर्थक विधायकों को शिवराज सरकार में मंत्री भी बना दिए हैं। अब सिंधिया को आने वाले उप चुनाव में अपने 22 समर्थक विधायकों की जीत पक्की करनी है। इसके अलावा भाजपा ने सिंधिया को यह अहम जिम्मेदारी सौंपी हुई है कि वे राहुल ब्रिगेड के ज्यादा से ज्यादा युवा नेताओं को तोड़ कर उनके सियासी मंतव्यों को भगवा रंग में रंगने की कोशिश करें। यानी केंद्र में मंत्री पद का सपना देखने के लिए सिंधिया को अभी कई और अग्नि परीक्षाएं देनी होंगी।
Posted on 15 August 2020 by admin
राजस्थान में गहलोत सरकार को चैन की नई सांस मिल गई है। सूत्रों की मानें तो 14 अगस्त से शुरू हो रहे राज्य के विधानसभा सत्र में वहां की प्रमुख विपक्षी दल भाजपा अविश्वास प्रस्ताव लाने के हक में नहीं है। भाजपा इसके लिए सही समय का इंतजार करना चाहती है पर प्रदेश के मुख्यमंत्री गहलोत स्वयं अपने समर्थक विधायकों की सही संख्या ठोक-बजा कर देख लेना चाहते हैं। कांग्रेस के जुड़े सूत्रों की मानें तो उस सत्र में गहलोत कोई ऐसा विधेयक लेकर आ सकते हैं, जिसके समर्थन में वोटिंग के लिए कांग्रेस अपने समर्थक विधायकों के लिए ‘व्हिप’ जारी कर सकती है, जिससे गहलोत को अपने समर्थक विधायकों की सही गिनती का इल्म हो सके। इसके अलावा कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व और स्वयं गहलोत पायलट कैंप के भी उन डेढ़ दर्जन विधायकों के मन टोलने का यत्न कर रहे हैं कि क्या अपनी घर वापसी के लिए वे अब भी तैयार हैं? सूत्र बताते हैं कि बागी सचिन पायलट को मनाने के लिए स्वयं सोनिया गांधी ने पिछले दिनों उनसे बात की थी, इसके बाद से ही पायलट के तेवर किंचित नरम पड़े हैं। जब कांग्रेस ने राजस्थान में अपने नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति की तो पायलट ने उन्हें बकायदा बधाई दी। विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी को भी उनके जन्मदिन की बधाई देने के लिए पायलट आगे आए, पिछला सब भूलभाल कर।
Posted on 15 August 2020 by admin
जीएसटी से प्राप्त राजस्व की शेयरिंग को लेकर केंद्र और राज्य सरकारों में एक बड़ा घमासान छिड़ने वाला है, वह भी एक ऐसे वक्त जब कोरोना काल में सरकारों के तमाम राजस्व प्राप्ति में भयंकर गिरावट दर्ज हुई है। इस मंगलवार को केंद्रीय वित्त सचिव ने वित्त मंत्रालय की स्थायी समिति की बैठक में खुलेआम ऐलान कर दिया कि केंद्र राज्यों को राजस्व बंटवारे के तय फार्मूले के मुताबिक मुआवजा देने में सक्षम नहीं है, क्योंकि जीएसटी वसूली में 40 फीसदी तक की गिरावट आ गई है। सनद रहे कि केंद्र को राज्यों को 4 लाख 10 हजार करोड़ रुपयों से ज्यादा का मुआवजा देना था। जीएसटी काऊंसिल में एक-चौथाई वोट केंद्र के पास है और तीन-चौथाई वोट राज्यों के पास और किसी प्रस्ताव को पास कराने के लिए कम से कम तीन-चौथाई वोट प्रस्ताव के हक में होने चाहिए। केंद्र अपने भाजपा शासित राज्यों के समर्थन को मिला लें तो भी वह जरूरी बहुमत के पास नहीं पहुंच सकता, क्योंकि अभी भी अनेक राज्यों में गैर भाजपा सरकारें हैं, यहां तक कि भाजपा के समर्थन से बिहार में सरकार चला रहे नीतीश कुमार भी इस मुआवजे की राशि को छोड़ने को तैयार नहीं। ऐसे में केंद्र सरकार के पास एक ही विकल्प बचता है कि वह इस मुद्दे को लेकर सर्वोच्च अदालत का रूख करें जहां आमतौर पर उनकी बातों को वजन मिलता है। केंद्र सरकार को कोरोना संकट आने से पहले ही देश की अर्थव्यवस्था के लड़खड़ाने का अहसास हो गया था, शायद इसीलिए मार्च में ही केंद्र सरकार ने अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल से इस मुद्दे पर राय मांग ली थी, अब वेणुगोपाल की भी राय सामने आ गई है, इनके मुताबिक केंद्र सरकार राज्यों को मुआवजा देने से मना कर सकती है, यानी अब राज्यों के पास भी अदालत जाने का ही विकल्प बचेगा। आमतौर पर केंद्र को जीएसटी के मद में हर माह एक हजार करोड़ रूपए का कलेक्शन होता है, जुलाई में यह मात्र 65 हजार करोड़ रूपए हुआ है, वह भी तब जबकि कोराना काल में मिली छूट का लाभ उठाते हुए कंपनियों ने अपने पुराने बकाए भी अब जमा कराए हैं। सनद रहे कि 2017 में मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में ’एक देश, एक कर’ नीति का ऐलान आधी रात के विशेष संसद सत्र में किया था, इस ठसक के साथ कि राज्य अभी अपना जितना कर वसूल रहे हैं, केंद्र उसमें 14 फीसदी का अतिरिक्त राजस्व प्रदान करेगा और अगर राज्यों को तय वसूली से कम का राजस्व आया तो फिर केंद्र राज्यों को मुआवजा भी देगा, मुआवजे की राशि राज्यों को हर पांच साल में मिलनी है यानी 2017 से भी यह सीमा 2022 में पूरी होती है। कोरोना काल में राज्यों की माली हालत पहले से ही खस्ता है, कई राज्यों के पास तो अपने कर्मचारियों को वेतन देने के पैसे भी नहीं बचे हैं। ऐसे में मुआवजा उनका एक बड़ा सहरा हो सकता है।
Posted on 15 August 2020 by admin
उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्यों की राज्यपाल आनंदी बेन पटेल की लाडली बेटी अनार पटेल को सुर्खियों की सवारी गांठना हमेशा से पसंद रहा है। सूत्रों की मानें तो 2022 के आने वाले गुजरात विधानसभा चुनाव में वह अपनी मां की परंपरागत सीट पाटन या घाटलोडिया से चुनाव लड़ सकती हैं। कहा जाता है कि इन दिनों अनार अपना ज्यादा से ज्यादा वक्त जमीनीं कार्यों में लगा रही हैं। सूत्रों की मानें तो छत्तीसगढ़ के कांग्रेसी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल अनार के कार्यों से इस कदर प्रभावित हुए कि उन्होंने बकायदा उन्हें रायपुर आमंत्रित कर वहां एक फिल्म सिटी बनाने में सहयोग देने को कहा है। अनार ने वंदना अग्रवाल के साथ मिल कर ‘ग्रामश्री’ संस्था का गठन किया था, यह वही दौर था जब राज्य की बागडोर उनकी मां के हाथों में थी। अनार की संस्था क्राफ्ट मेनशिप को जिंदा रखने का प्रयास करती है, उनकी संस्था परंपरागत शिल्प कला की विरासत बचाए रखने का उपक्रम भी करती हैं। जब आनंदीबेन पटेल ने सक्रिय राजनीति को अलविदा कहा तो वह चाहती थीं कि उनकी परंपरागत घाटलोडिया सीट अनार को मिल जाए, अब यह सीट गांधीनगर लोकसभा सीट के अंतर्गत आती है, 2017 विधानसभा चुनाव में यह सीट भूपेंद्र पटेल को दे दी गई थी, जो वहां से विधायक निर्वाचित हुए थे। सो, इस बार अनार अपने लिए पाटन सीट पर भी विचार कर सकती है।
Posted on 15 August 2020 by admin
अपने ’सुपर थर्टी’ के लिए मशहूर बिहार के आनंद कुमार जिनके जीवन पर पिछले दिनों ’सुपर थर्टी’ फिल्म भी बनी और यह फिल्म खासी सफल भी रही। अब आनंद कुमार बिहार विधानसभा चुनाव में अपनी नई भूमिका तलाश रहे हैं। एक वक्त आनंद भाजपा-संघ के करीबियों में शुमार होते थे, 2018 के दौर में भाजपा ने उनसे राज्यसभा देने का भी वायदा कर लिया था, पर तब तक सुपर थर्टी को लेकर एक बड़ी कंट्रोवर्सी हो गई, कहते हैं आनंद ने दावा कर दिया कि उक्त वर्ष के आईआईटी में उनके 30 में से 26 बच्चे चुन लिए गए हैं, बाद में पता चला कि आईआईटी में आने वाले सही बच्चों की संख्या मात्र 3 ही थी। उस फिल्म के हीरो रितिक रोशन ने भी तब ट्वीट कर उन 26 सफल बच्चों को मुंबई बुला कर उन्हें पार्टी देने की बात कर दी थी, जब स्थितियां उलझ गईं तो अभिनेता को भी अपना वह ट्वीट डिलीट करना पड़ा। कंट्रोवर्सी को देखते हुए भाजपा अपने वादे से पीछे हट गई, तब आनंद नीतीश कुमार के करीबी हो गए। नीतीश ने आनंद को एमएलसी बनाने का प्रस्ताव दिया, पर आनंद राज्यसभा से कम पर राजी नहीं हुए, सो दोनों के दरम्यान तल्लखियां आनी शुरू हो गई। अब आनंद अपने छोटे भाई प्रणव कुमार को राजद के टिकट पर औरंगाबाद या अलवर से आगामी विधानसभा चुनाव लड़वाना चाहते हैं, आनंद कुमार जाति से चंद्रवंशी कहार हैं, उनकी जाति का एक बड़ा वोट बैंक इन दोनों विधानसभा क्षेत्रों में है। सूत्रों की मानें तो अभी हाल में ही आनंद कुमार ने हॉलीवुड के एक बड़े निर्देशक से संपर्क साधा है कि उनकी जिंदगी पर हॉलीवुड में भी एक फिल्म बने, इस फिल्म में कुछ पैसे वे स्वयं भी लगाने को तैयार हैं।
Posted on 15 August 2020 by admin
’धूप के नाज़ हमने भी उठाए थे उम्र भर
सवेरा हुआ तो हमारे हिस्से में अंधेरा रहा’
राम मंदिर आंदोलन में अपने को झोंक देने वाली उमा भारती को भी 5 अगस्त जैसी किसी पावन तिथि का मुद्दतों से इंतजार था, वह शुभ घड़ी आई तो उन्हें बुलावे का इंतजार ही रह गया, बच्चों के मानिंद रूठ जाना वैसे भी उनकी आदतों में शुमार है, सो उन्होंने भी ऐलान कर दिया कि वह उस पूरे समय तक अयोध्या के सरयू तट यानी राम की पैड़ी पर ही बनी रहेंगी जब तक पीएम मोदी राम जन्म मंदिर शिलान्यास कर वहां से चले नहीं जाते। क्योंकि तब तक उन्हें शिलान्यास कार्यक्रम का न्यौता नहीं भेजा गया था। कार्यक्रम स्थल पर सिर्फ एएनआई और दूरदर्शन को जाने की अनुमति थी, बाकी मीडिया का पूरा रेला कार्यक्रम स्थल से कोई 30 किलोमीटर दूर राम की पैड़ी पर डेरा डंडा जमाए बैठा था। उमा के भी मीडिया में पुराने ताल्लुकात हैं, सो चंपत राय को लगा कि मीडिया उनसे कुछ और न कहलवा लें सो, आनन-फानन में उन्हें न्यौता भेजा गया और फिर उमा को शिलान्यास कार्यक्रम में बैठने की जगह दी गई, जो पहली पंक्ति में बैठे थे उनका मंदिर आंदोलन से क्या लेना-देना है, सवाल ये भी पूछे गए, मसलन पहली पंक्ति में विराजमान बाबा रामदेव, महामंडलेश्वर अवधेशानंद गिरि या फिर स्वामी चिदानंद के योगदान के बारे में किसी को कुछ पता नहीं था। मोदी सरकार के एकमात्र मंत्री महेंद्र पांडेय जो कार सेवा में भी शामिल थे, मंदिर आंदोलन की वजह से जेल भी गए, न्यौता उन्हें भी नहीं मिला। विनय कटियार की उम्र अभी 75 पार नहीं हुई है, उन्हें भी नहीं बुलाया गया। साध्वी ऋतंभरा की तरह अपने ओजपूर्ण भाषणों से समां बांधने वाले आचार्य धर्मेंद्र भी 5वीं या छठी पंक्ति में बैठे दिखे। राम मंदिर पर मध्यस्थतता की बात करने वाले श्री-श्री रविशंकर परिदृश्य से ओझल थे, सो मंच, नेपथ्य और समारोह पर उनका कब्जा था जिनका अतीत में राम मंदिर से कोई लेना-देना नहीं था, जिन्होंने ना कभी धूप के नाज़ उठाए थे और न ही कभी सूरज से बतकहियां की थीं।