Posted on 21 May 2018 by admin
बड़े बोल वचनों के लिए मशहूर स्मृति ईरानी से जब इस दफे सूचना प्रसारण मंत्रालय का अतिरिक्त कार्यभार वापिस लेकर उन्हें कपड़ा मंत्रालय तक ही सीमित कर दिया गया तो राजनैतिक पर्यवेक्षकों की भवें तन गईं कि स्मृति को इतनी बड़ी सजा क्या सिर्फ फेक न्यूज मामले में दी गई है या प्रसार भारती के सीईओ सूर्यप्रकाश से उनकी इतनी लंबी तनातनी को किंचित संघ के शीर्ष नेतृत्व ने पसंद नहीं किया। सूत्र बताते हैं कि सबसे ताज़ा मामला राष्ट्रीय पुरस्कार वितरण में राष्ट्रपति की किरकिरी को लेकर था, सूत्र यह भी स्पष्ट करते हैं कि इस मामले को लेकर राष्ट्रपति ने कहीं न कहीं पीएम के समक्ष अपनी नाराज़गी दर्ज कराई थी। दरअसल, राष्ट्रीय पुरस्कारों के लिए राष्ट्रपति को आमंत्रित करने में स्मृति ने अपने ऑफिशिएल चैनल का सहारा लिया था, उनके विभाग की ओर से राष्ट्रपति को अधिकारिक तौर पर निमंत्रण देने के लिए चिट्ठी लिखी गई थी, पर स्वयं स्मृति ने माननीय राष्ट्रपति से जाकर मिलने और उन्हें न्यौतने की अनौपचारिक पहल नहीं की, जबकि अब तक कि मान्य परंपराओं में सूचना प्रसारण मंत्री राष्ट्रपति से निजी मुलाकात कर उनसे अनौपचारिक आग्रह भी करता आया है। शायद यही वजह रही कि राष्ट्रपति की ओर से राष्ट्रीय पुरस्कार वितरण समारोह के लिए राष्ट्रपति के शामिल रहने के लिए एक घंटे का वक्त मुकर्रर कर दिया गया था और सारा बवाल यहीं से मचा।
Posted on 21 May 2018 by admin
संघ दुलारे और उत्तराखंड के सीधे-साधे मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत मीडिया से हर मुमकिन दूरी बना कर रखने की कोशिश करते हैं। पर बावजूद इसके सुर्खियों की उल्टी बयार कहीं न कहीं उन्हें छू ही लेती है। पिछले साल जब सुप्रीम कोर्ट का एक बड़ा फैसला आया कि नेशनल हाईवे से 500 मीटर के दायरे में कोई शराब की दुकान नहीं होगी तो कहते हैं रावत सरकार ने इन शराब की दुकानों को स्टेट हाईवे पर शिफ्ट करा दिया। अब तो यह आलम है कि वहां परचून की दुकानों पर भी मदिरा उपलब्ध है, अब इस बात को लेकर उत्तराखंड के विपक्षी दल हाय-तौबा मचा रहे हैं और रावत पर यह आरोप लगाने से बाज नहीं आ रहे हैं कि मुख्यमंत्री के जो 7 भाई हैं उनका कोई न कोई कनेक्शन इन शराब माफियाओं से है। आरोप बड़ा है, इसको नज़रअंदाज कर पाना दिल्ली के निजाम के लिए भी आसान न होगा।
Posted on 21 May 2018 by admin
विदेश राज्य मंत्री जनरल वीके सिंह की हालिया उत्तर कोरिया यात्रा को लेकर हंगामा बरपा है और वे विपक्षी हमलों के निशाने पर हैं। हालांकि सरकार ने भी पहले वीके सिंह की इस उत्तर कोरिया की यात्रा पर मौन साध रखा था, पर जब वहां की एक प्रमुख न्यूज एजेंसी ने भारतीय मंत्री की उत्तर कोरिया के अधिकारियों और त्योंगयांग स्थित भारतीय राजदूत की साथ वाली फोटो रिलीज कर दी तो भारत को भी कहना पड़ गया कि सिंह वहां भारत की योग पद्दति और यहां की परंपरागत औषधियों की बात करने त्योंगयांग गए थे। पर राजनैतिक पर्यवेक्षक बताते हैं कि ऐसे वक्त में सिंह उत्तर कोरिया दौरे में कई सियासी निहितार्थ छुपे हैं, क्योंकि इस 12 जून को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उत्तर कोरिया के शासन प्रमुख किम जोंग के बीच एक निर्णायक मुलाकात होने वाली है, और इस मुलाकात से ऐन पहले दोनों देशों के चीफ की ओर से सुलगते-भड़कते बयान आने लगे हैं, ऐसे में क्या भारत अपने मित्र देश अमेरिका की मदद करना चाहता है क्योंकि उत्तर कोरिया से उसके रिश्ते कभी खराब नहीं रहे हैं। सनद रहे कि 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार में तत्कालीन सूचना प्रसारण राज्य मंत्री मुख्तार अब्वास नकवी भी एक फिल्म समारोह में हिस्सा लेने उत्तर कोरिया गए थे।
Posted on 21 May 2018 by admin
कर्नाटक की हार पर कांग्रेस में आत्ममंथन का दौर शुरू हो चुका है और वहां के पूर्व मुख्यमंत्री सिद्दारमैया को भी ठंडे बस्ते में डालने की कवायद शुरू हो चुकी है। सूत्र बताते हैं कि टिकट वितरण में भी सिद्दारमैया ने कई बार पार्टी हाईकमान की सलाह पर कान नहीं धरे शायद यही वजह रही कि राहुल गांधी के चाहने पर भी मैसूर के केआर नगर सीट से सिद्दारमैया ने राहुल की पसंद की युवा उम्मीदवार ऐश्वर्या महादेव को टिकट नहीं दिया। ऐश्वर्या के पिता एम महादेव वहां के एक जनप्रिय नेता थे और कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीतते रहे थे। उनके निधन के बाद उनकी पुत्री ऐश्वर्या ने राजनीति में पांव रखे। ऐश्वर्या अमेरिका के पेनसिल्वेनिया युनिवर्सिटी से कंप्यूटर साइंस इंजीनियर हैं, और इस दफे राहुल की तमाम प्रेस कांफ्रेंस और रैलियों में इस चेहरे को देखा और पहचाना गया। एक कयास यह भी लगाए गए कि यही वह चेहरा है जो कांग्रेस की सोशल मीडिया हेड दिव्या स्पंदना को रिप्लेस कर सकता है। क्योंकि दिव्या पर मीडिया के एक वर्ग द्वारा तीखा हमला किया जा रहा था। और जब दिव्या रमैया नाम से कन्नड़ फिल्मों की एक प्रमुख हीरोइन थीं तो उनकी शराब कारोबारी विजय माल्या से नजदीकियों के किस्से हर ओर सुने जा रहे थे। मीडिया ने इस बात को भी जोर-शोर से उछाला कि 2010 में स्पंदना विजय माल्या के साथ हांगकांग छुट्टियां बिताने भी गई थीं। हालांकि इस बात से दिव्या स्पंदना ने भी कभी मना नहीं किया कि माल्या उसके अच्छे दोस्त थे। सिद्दारमैया ने इस दफे केआर नगर से ऐश्वर्या की जगह जिस रविषंकर को टिकट दिया, वह पिछला चुनाव भी यहीं से हारे थे। और इस सीट से जेडीएस के एसआर महेश ने लगातार तीसरी जीत दर्ज कर हैट्रिक बना ली। अब सुना जा रहा है कि राहुल गांधी अपनी डिजिटल टीम में ऐश्वर्या महादेव को एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपने जा रहे हैं।
Posted on 21 May 2018 by admin
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू इस बात का डंका जोर-शोर से पीट रहे हैं कि आंध्र के लोगों की नाराजगी की वजह से इस दफे कर्नाटक में भाजपा को अपनी दर्जन भर सीटें गंवानी पड़ी है। सनद रहे कि एनडीए से नाता तोड़ने के बाद चंद्रबाबू ने कर्नाटक में रह रहे लाखों आंध्र के लोगों से आह्वान किया था कि वे भाजपा को उनके प्रदेश से छल का स्वाद जरूर चखाएं। कर्नाटक की कम से कम 46 सीटें ऐसी है जहां 50 हजार से ज्यादा आंध्र के लोग वोटर हैं। इस दफे इन 46 सीटों में से मात्र 5 पर ही भाजपा अपनी जीत दर्ज करा पाई है, जबकि कांग्रेस ने इनमें से 32 सीटें जीत ली और 9 जेडीएस के हिस्से गई।
Posted on 21 May 2018 by admin
शरद यादव अपनी नई राजनैतिक पार्टी की गठन की तैयारियों में जोर-शोर से जुटे हैं, सूत्र बताते हैं कि इस पार्टी का नाम लोकतांत्रिक जनता दल हो सकता है, इस पार्टी से नीतीश से नाराज व बागी नेताओं का एक बड़ा वर्ग जुड़ने को तैयार बताया जाता है। इसके अलावा शरद की पार्टी को केरल के राज्यसभा सांसद एमपी वीरेंद्र कुमार और गुजरात के एक विधायक छोटू भाई बसावा का भी समर्थन मिल सकता है। सूत्र बताते हैं कि यादव की इस पार्टी को अंदरखाने से आम आदमी पार्टी का भी समर्थन मिल रहा है और कहा यह भी जा रहा है कि आप प्रमुख अरविंद केजरीवाल लगातार षरद के संपर्क में हैं।
एनटीआई &gossipguru.in
Posted on 21 May 2018 by admin
सियासी हवाओं के रुख भांपने में सिद्दहस्त प्रशांत किशोर भले ही इन दिनों आंध्र के युवा नेता जगन मोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस के लिए काम कर रहे हों, पर उनके बाजार भाव में किंचित बड़ी गिरावट दर्ज बताई जाती है। पीके ने बड़े गाजे-बाजे व शोर-शराबे के साथ जगन का काम देखना शुरू किया था। सूत्र बताते हैं कि काम शुरू करते ही विजयवाड़ा और तिरूपति में पीके ने आनन-फानन में अपना ऑफिस भी खोल दिया और अपने लोगों को काम में लगा दिया। सूत्रों की मानें तो अपने काम के पहले चरण में पीके ने आंध्र की विधानसभा सीटों का एक व्यापक सर्वेक्षण करवाया और एक पूरी लिस्ट तैयार कर जगन के पास पहुंचे कि किस सीट से किस व्यक्ति को टिकट देने से चुनाव में पार्टी की संभावनाएं सबसे बेहतर रहेगी। और साथ ही एक लंबा-चौड़ा बिल भी जगन को ठोक दिया। कहते हैं पीके की इस अदा पर जगन चिढ़ गए बोले टिकट के लिए व्यक्ति तय करना आपका काम नहीं, आप सिर्फ जमीनी सर्वे कर चुनावी मुद्दों की पड़ताल करें, रणनीति बनाएं, बाकी काम हमारे पार्टी संगठन पर छोड़ दें। कहते हैं जगन व पीके के बीच काम को लेकर एक साल तक का समझौता हुआ है जिसके लिए पीके ने तीन डिजिट में अपना बजट दिया था, जगन इस बजट को एक डिजिट में समेट देना चाहते हैं, पीके को अपने साथ यह धोखा लग रहा है। सूत्रों का कहना है कि पीके के साथ काम कर लोगों को दो महीने से वेतन नहीं मिला है और जगन हैं कि फंड ही रिलीज नहीं कर रहे हैं, पीके इतना तो समझ ही चुके हैं कि उनके पूर्ववर्ती बॉस मोदी, नीतीश, राहुल, अखिलेश की तरह देने के मामले में जगन इतने दरियादिल नहीं, वे तो बस काम के बदले पैसा देना चाहते हैं।
Posted on 21 May 2018 by admin
कर्नाटक में क्या खूब सियासी ड्रामा घटित हुआ, येदुरप्पा को जाना पड़ा और संयुक्त विपक्षी सुर ने कुछ ऐसा हंगामा मचाया हुआ है कि लगता है कि जैसे दक्षिण में एकबारगी लोकतंत्र की बहाली हो गई हो। सनद रहे कि कर्नाटक के चुनावी नतीजे आने के बाद भाजपाध्यक्ष अमित शाह का फौरी बयान आया था कि यह साऊथ में हमारी ’एंट्री’ है, पर येदुरप्पा के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद क्या यह माना जाएगा कि दक्षिण में भगवा पार्टी की डगर किंचित मुश्किल है, क्योंकि भाजपा विधायकों को अपनी सरजमीं पर बिठाने या छुपा कर रखने के लिए दक्षिण का कोई राज्य तैयार नहीं हुआ। सवाल इस पर भी उठ रहे हैं कि येदुरप्पा को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करने का कर्नाटक के गवर्नर का फैसला संवैधानिक मान्यताओं पर कितना खरा उतरता है। तो इस संदर्भ में हम अपने पूर्व राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा के स्टैंड को उद्दृत कर सकते हैं जब उन्होंने एक दफे ब्रिटिश संवैधानिक परंपराओं का हवाला देते हुए कहा था कि ’सिंगल लार्जेस्ट पार्टी को ही सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया जाना चाहिए।’ डॉ. शर्मा संविधान के अच्छे जानकारों में शुमार होते थे उन्होंने कैंब्रिज से एलएलएम किया था और हावर्ड से पीएचडी। पर फिर भी न्यायालय को येदुरप्पा को बहुमत सिद्ध करने के लिए 15 दिन दिया जाना न्यायोचित नहीं लग रहा था। सुप्रीम कोर्ट के जिन तीन जजों जस्टिस सिकरी, जस्टिस बोबडे और जस्टिस भूषण की बेंच ने येदुरप्पा मामले में फैसला सुनाया, वह पहले चीफ जस्टिस के खिलाफ एक याचिका को निरस्त कर चुकी थी, सो बेंच का चुनाव सत्ताधारी दल के नजरिए से भले ही मुफीद लग रहा हो, पर इनका फैसला लोकतंत्र को मजबूती देने वाला था। कानूनी लड़ाई में भी भाजपा कहीं पिछड़ गई लगती है, कांग्रेस के पास कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी,सलमान खुर्शीद, पी.चिदबंरम से लेकर कई काबिल वकीलों की फौज खड़ी थी, वहीं भाजपा के पास ले-देकर मुकुल रोहतगी और तुषार मेहता जैसे चेहरे थे, जो फीस लेकर काम करने वाले वकील हैं, इस हार से भाजपा को कई बड़े सबक लेने की जरूरत लगती है, क्योंकि जब आप सत्ता के शीर्ष पर होते हो तो बड़ी चुनौतियां भी छोटी दिखती हैं, पर जब इन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है तो यह आपको आपकी जमीन भी दिखा देती है।
Posted on 14 May 2018 by admin
मायावती ने नए सियासी सबक कंठस्थ कर लिए हैं, अब उनकी राजनीति और उनका दिल पहले की तरह तंगेहाल नहीं, खुलेपन का यह दस्तूर भले नया हो, पर इस दफे इसकी आहट कर्नाटक चुनाव में भी देखने को मिली और जेडीएस के संग गठबंधन में भी माया ने अपनी फराखदिली का परिचय दिया है। इस दफे भी जब कैराना और नूरपुर में सपा और लोकदल के बीच बातचीत पटरी से उतर रही थी और पहले अखिलेश इस बात पर अड़े रहे कि कैराना से सपा अपना उम्मीदवार उतारेगा तो नूरपुर से लोकदल अपना उम्मीदवार उतार ले, पर जब जयंत चौधरी इस बात के लिए नहीं माने तो अखिलेश ने एक नया खटराग अलापना शुरू कर दिया कि अगर वाकई लोकदल को कैराना सीट चाहिए तो वह अपना विलय सपा में कर दें। जब इस खटराग की खबर बहिनजी को लगी तो उन्होंने सीधे अखिलेश को फोन लगाया और कहा कि ’आप कैराना लोकदल को दे दो, चुनाव चिन्ह उनका रहेगा पर उम्मीदवार सपा का। नहीं तो कैराना में अगर सपा अपने चुनाव चिन्ह पर उम्मीदवार उतारती है और किसी वजह से वह चुनाव हार जाती है तो गोरखपुर और फूलपुर का मोमेंटम हम खो देंगे, क्योंकि कैराना में इस दफे पूरी सरकारी मशीनरी चुनाव लड़ेगी। ऐसे में लोकदल को लड़ने दो, जीते तो 2019 में हमारे गठबंधन के वे साथी होंगे और हार गए तो फिर उनका नसीब। 19 में वे हम से ज्यादा मांग नहीं पाएंगे।’ बात अखिलेश की समझ में आ गई, वे ये भी समझ पाए कि बहिनजी अब ’कम बैक’ करने को आतुर हैं।
Posted on 14 May 2018 by admin
सूत्रों की माने तो दिग्गज भगवा नेता अरूण जेटली को एक महिला डोनर मिल चुकी हैं और आने वाले कुछ दिनों में उनकी किडनी का प्रत्यारोपण मुमकिन है, पिछले दिनों जब उनकी अस्पताल से वापसी हुई थी तो उनके सम्मान में उनके एक परम मित्र और दिल्ली के एक बड़े वकील ने अपने घर चुनींदा लोगों का एक डिनर रखा था। इस डिनर को भी शाम के 7 बजे से शुरू होकर रात्रि के 9 बजे तक खत्म हो जाना था। सूत्र बताते हैं कि इस डिनर में मध्य प्रदेश के एक प्रभावशाली नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी आमंत्रित किया गया था, सूत्रों की मानें तो जब डिनर अपने शबाब पर था तो मजाक-मजाक में एक पूर्व सॉलिसीटर जनरल ने युवा सिंधिया से पूछा-’आप मध्य प्रदेश के सीएम कब बन रहे हों’ ’जल्दी ही जब राहुल जी देश का पीएम बनेंगे’ उधर से जवाब आया। इस पर वहां मौजूद एक पत्रकार ने सिंधिया से पूछा-’क्या आपको वाकई लगता है कि राहुल इस बार देश के पीएम बनेंगे?’ सिंधिया ने हौले से चुटकी लेते हुए कहा-इस बात का जवाब तो अरूण अंकल के पास होगा।’