Posted on 14 May 2018 by admin
’तेरा अहसास ही मेरी खामोशी है अगर, तेरे होने से ही मेरा होना है अगर, फिर क्या तू, फिर क्या मैं, सिर्फ हम दोनों हैं।’ पर त्रिपुरा में इस बार हम दोनों यानी वहां के मुख्यमंत्री बिप्लब देव और वहां के प्रमुख भगवा रणनीतिकार सुनील देवधर के बीच तलवारें खिंच गई है और यह लड़ाई इतनी बेकाबू हो गई कि तलवारों की टंकारें सोषल मीडिया पर भी सुनाई देने लगीं। जाने-अनजाने देवधर हर ऐसे कमेंट्स को लाइक करने लग गए थे जहां सरकार की खिंचाई हो रही थी। सबसे पहले अमित शाह ने देवधर को दिल्ली तलब कर डपटा-’यह क्या उल्टी गंगा बहा रहे हैं?’ फिर त्रिपुरा लौट कर देवधर ने अपने अकाऊंट के माध्यम से पिछले दो महीनों में सरकार ने जो अच्छे कार्य किए हैं उसकी जानकारी सोशल मीडिया पर शेयर की। वैसे ही जब सीएम कांफ्रेंस में बिप्लब दिल्ली आए तो पीएम ने उनके ऊट पटांग बयानों को आड़े हाथों लेते हुए उनकी खूब क्लास लगाई। दरअसल, बिप्लब के मन का दर्द है कि देवधर उनकी जगह राज्य के स्वास्थ्य मंत्री सुदीप राय बर्मन को त्रिपुरा का सीएम बनवाना चाहते थे पर संघ इसके लिए तैयार नहीं हुआ, संघ का साफ कहना था कि बिप्लब हमारा आदमी है और सुदीप कांग्रेस से आए हैं। संघ को लगता था असम में एक बार यह गलती हो चुकी है जब एजीपी से आए सोनोवाल को भाजपा ने असम का मुख्यमंत्री बना दिया।
Posted on 14 May 2018 by admin
पिछले दिनों जब पार्टी हाईकमान के बुलावे पर राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया दिल्ली पधारी थीं और यहां दिल्ली में उन्हें हाईकमान के तेवर और उनकी मंशाओं का पता चला तो वह अपनी रणनीतियां बदलने को मजबूर हो गईं। सूत्र बताते हैं कि दिल्ली में उनकी मुलाकात स्वनामधन्य एक बड़े अंग्रेजी पत्रकार से हुईं, जो इन दिनों अपनी अखबार की संपादकी से बेदखल कर दिए गए हैं और यहीं दिल्ली से अपना एक न्यूज पोर्टल चलाते हैं, कहते हैं वसुंधरा ने इस पत्रकार को जयपुर बुलाया और अपना मीडिया मैनेजमेंट संभालने को कहा। वसुंधरा का मीडिया मैनेजमेंट अब परवान चढ़ने लगा है और उनको लेकर रोज़ एक बड़ी खबर प्लांट होने लगी हैं कि कैसे वह भाजपा हाईकमान के समक्ष नहीं झुकीं, उनके खास विधायक भी अब खुलकर कहने लगे हैं कि अगर वसुंधरा की इच्छा के विपरीत किसी नेता या विधायक को प्रदेश भाजपा की बागडोर सौंपी गई तो राजस्थान के भगवा खेमे में बगावत की चिंगारी फूट सकती है। कभी वसुंधरा जो कहती या करती थीं मीडिया उसे छापता या दिखाता था, आज मीडिया के एक खास ग्रुप के कहने व बताने पर महारानी अपने अभिनय का जौहर बिखेर रही हैं।
Posted on 14 May 2018 by admin
शहर में चिल चिलाती धूप और कहर बरपाती गर्मी का डेरा है, ऐसे में बड़े सियासतदानों का ठंडे यूरोप की सैर पर जाने की रवायत पुरानी है। अब मध्य प्रदेश का ताजा मामला ही ले लें, यह राज्य पूरी तरह से चुनावी मोड में आ चुका है, पर सपत्नीक छह महीने की 3,500 किलोमीटर लंबी नर्मदा यात्रा पूर्ण करने के बाद कांग्रेसी दिग्गज दिग्विजय सिंह अपनी पत्नी अमृता के साथ यूरोप की लंबी यात्रा पर जा रहे हैं। वहां की चुनाव अभियान समिति के संयोजक ज्योतिरादित्य सिंधिया भी बहुत जल्द सपरिवार यूरोप यात्रा पर रवाना होने वाले हैं। राहुल गांधी भी कैलाश मानसरोवर यात्रा पर जाने की तैयारी कर रहे हैं, ले-देकर बच गए कमलनाथ, वे अकेले भला कितनी चुनावी गर्मी पैदा कर लेंगे। (एनटीआई-gossipguru.in)
Posted on 14 May 2018 by admin
राहुल गांधी ने भले ही सार्वजनिक मंचों या सार्वजनिक तौर पर अपनी आईटी सेल की पुरोधा और कांग्रेस के सोशल मीडिया को एक नई ऊंचाई पर ले जाने वालीं दिव्या स्पंदना से एक सुविचारित दूरी बना रखी हो, पर सूत्र बताते हैं कि आज भी राहुल का दिव्या पर उतना ही भरोसा है और वे दिव्या की किसी बात को, अनुरोध को या मनुहार को टालते नहीं। विश्वस्त सूत्र बताते हैं कि कर्नाटक चुनाव से यह सप्ताह भर पहले की बात है जब वहां के एक बड़े उद्योगपति जिनका शराब का भी एक बड़ा कारोबार है, वे कांग्रेस को पार्टी फंड में एक बड़ी रकम देना चाहते थे। किसी ने उनकी मुलाकात दिव्या से करवा दी। उस कारोबारी ने दिव्या से कहा कि ये पैसे वे सिद्दारमैया को नहीं देना चाहते क्योंकि वे किसी की सुनते नहीं। उनकी इच्छा यह पैसा अहमद पटेल के मार्फत सोनिया गांधी तक पहुंचाने की है। सूत्र बताते हैं कि दिव्या ने उस उद्योगपति से कथित तौर पर यह कहा कि वे इतना लंबा रूट क्यों लेना चाहते हैं, वे कांग्रेस के पार्टी फंड में ये पैसा सीधे राहुल गांधी के मार्फत भी पहुंचवा सकते हैं। उद्योगपति मान गया। उस रात राहुल बेंगलुरू के एक होटल में रूके हुए थे और दिव्या बगैर किसी रोक टोक के जींस व टी-शर्ट में लैस उस उद्योगपति को साथ लिए राहुल के पास जा पहुंचीं, तब राहुल टीवी पर कोई न्यूज चैनल देख रहे थे। लब पे आया तो जुबां कटने लगी, रिश्ते तो बस कांच के मानिंद होते हैं, खनक व चटक में बेहद मामूली सा फर्क होता है।
Posted on 14 May 2018 by admin
सियासी चौसर पर रात दिन कौडि़यों की तरह बेची-खरीदी जा रही हैं आवाजें, हर हर्फ़ का जैसे सौदा हुआ है, हर जु़बान पर जैसे ताले जड़े हों। 2018 आते न आते 18 राज्यों में कमल खिल उठा है और कुमुदिनी मुस्कान लिए भाजपा के दोनों सिरमौर कर्नाटक विजय की उद्घोष में 2019 का चुनावी बिगुल फूंकने को बेकरार हैं, भगवा पार्टी ने अपनी ओर से सरकार बनाने की क़वायद शुरू कर दी है। सूत्रों की माने तो कर्नाटक में मतदान के चंद रोज पहले सुप्रीम कोर्ट के एक वकील जेडीएस नेता कुमारस्वामी को लेकर यूं अचानक मुंबई पहुंचे, सूत्रों के अनुसार वहां कांदिवली स्थित एक अपार्टमेंट में (जिस फ्लैट को अमित शाह का बताया जाता है) भाजपा सिरमौर शाह के साथ जेडीएस नेता की एक सारगर्भित बातचीत हुई। और उसमें तय हुआ कि कर्नाटक में जहां-जहां भाजपा कमजोर है वहां अंदरखाने से जेडीएस को मजबूत किया जाएगा, जैसे ओल्ड मैसूर के इलाके हासन, चमराजनगर आदि। जो मुस्लिम बहुल, दलित बहुल इलाके हैं वहां भी जेडीएस की मदद होगी और चुनावी नतीजों के बाद जेडीएस को भाजपा का यह कर्ज उतारना होगा, अंदर या बाहर से सरकार बनाने के लिए अपना समर्थन देकर। भगवा चाणक्य ने अपनी रणनीतियों को दुधारी बना दिया है, चित्त या पट दोनों ही सूरत में कमल के प्रस्फुटन की संभावनाओं को सिंचित किया जा चुका है।
Posted on 14 May 2018 by admin
वक्त है जो किसी किताब के मिसरों में कैद नहीं होता, वक्त है जो किसी इतिहास के दरवाजे की सांकल नहीं बनता और ये वक्त ही है जो सीली-सीली हवाओं के संग बह कर भी कभी भीगता नहीं, और मोदी राज में जब से मंत्रियों को यह फरमान सुनाया गया है कि वे अपने संबंधित मंत्रालयों की उपलब्धियों के बखान के लिए पत्रकारों को चारा डालें, उन्हें ज्ञान दें और सूचनाएं भी, जरूरत पड़े तो उन्हें घुमाइए-फिराइए खुश रखिए। तब से किंचित सरकार के बड़े मंत्रियों की भी भंगिमाएं बदल गई है। षुरूआत रेल मंत्री पीयूश गोयल की तरफ से हुई जब पत्रकारों के एक बड़े दल को आनन-फानन में नार्थ ईस्ट की यात्रा पर भेज दिया गया। अब गडकरी कहां पीछे रहने वाले थे, तुरंत-फुरंत एक्शन में आ गए। अपनी नेपाल यात्रा के फौरन बाद पीएम को 19 मई को लद्दाख में जो जिला सुरंग का उद्घाटन करने जाना है, तो नितिन गडकरी को लगा कि यह मौका भी है और दस्तूर भी, पत्रकारों को उपकृत कर देते हैं और उन्हें पीएम के साथ भेज देते हैं। सो, गडकरी की ओर से पीएमओ को कहा गया है कि ये पत्रकारों के जाने का इंतजाम कर दें। फौरन पीएमओ से जवाब आ गया-’ये पीएम के प्रोग्राम में नहीं है, उनके साथ केवल एएनआई और सरकारी मीडिया ही रहेगा।’ यानी पीएम ने अभी भी पत्रकारों से दूरी बना
Posted on 07 May 2018 by admin
मोदी सरकार के मंत्री जैसे एक शफ्फाफ कांच के दरिया में कलाबाजी दिखा रहे हों, इनकी सीरत और फितरत दोनों ही जैसे अग्नि परीक्षा की कसौटी पर हों, संतुलन साधने की बाजीगरी इतनी हो कि किनारे भी छू न सकें, वरना खनक दूर तक सुनी जाएगी। चुनावी वर्ष ने दस्तक देनी शुरू कर दी है, चुनांचे पीएमओ सरकार के मंत्रियों और उनके संबंधित मंत्रालयों के काम-काज की समीक्षा और रिपोर्ट कार्ड तैयार करने में जुट गया है। पीएमओ से जुड़े विश्वसनीय सूत्र स्पष्ट करते हैं कि परफॉरमेंस की कसौटी पर पहले चरण में जिन मंत्रालयों ने पीएम की विशेष शाबासी हासिल की है उसमें गडकरी का रोड ट्रांसपोर्ट, नरेंद्र सिंह तोमर का रूरल डेवलपमेंट और मुख्तार अब्बास नकवी का अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय शामिल है। वैसे भी नकवी का मंत्रालय इन दिनों यूपीएससी के ताजा नतीजों को लेकर चर्चा में है, 2017 के यूपीएससी के नतीजों में आजादी के बाद पहली बार अल्पसंख्यक उम्मीदवारों के सफलता का आंकड़ा नई ऊंचाइयों को छू गया। इस दफे के नतीजों में जहां देशभर में 990 सफल उम्मीदवारों में अकेले 131 उम्मीदवार अल्पसंख्यक समुदाय के हैं, इसमें से 51 मुस्लिम हैं। टॉप 100 सफल उम्मीदवारों की लिस्ट में 6 मुस्लिम शामिल हैं, इसमें से 3 लड़कियां हैं। मंत्रालय का दावा है कि ऐसा उसकी स्कीम नई उड़ान-नया सवेरा की वजह से मुमकिन हो पाया है, जिसके तहत अल्पसंख्यक समुदाय के जरूरतमंद बच्चों को यूपीएससी एक्जाम की तैयारियों के लिए न सिर्फ मार्गदर्शन दिया जाता है, अपितु उन्हें 50 हजार से 1 लाख रुपयों तक की आर्थिक मदद भी दी जाती है। मंत्रालय की ओर से जारी आंकड़ों में मोदी सरकार के 48 महीनों बनाम अन्य सरकारों के 48 वर्ष का तुलनात्मक डाटा पेश किया गया है, जिसमें बताया गया है कि इन चार सालों में छात्रवृत्ति समेत अन्य शैक्षिक सशक्तिकरण योजनाओं के मद में मंत्रालय ने 2 करोड़ 66 लाख बच्चों की मदद की है, मंत्रालय की सीखो और कमाओ, उस्ताद, नई मंजिल, गरीबनवाज कौशल विकास योजना के तहत 5 लाख 43 हजार 594 अल्पसंख्यक युवाओं की मदद की गई है, 2014 से पहले ऐसे लाभार्थी युवाओं की संख्या महज 20 हजार 164 थी। महिला सशक्तिकरण योजनाओं के तहत 121 लाख अल्पसंख्यक बालिकाओं की मदद की गई है। अल्पसंख्यक बहुल इलाकों में 340 से ज्यादा सदभाव मंडप बहुउद्देश्यी कम्युनिटी सेंटर की स्थापना हुई। और इस सरकार ने भले ही हज सब्सिडी खत्म कर दी हो पर पहली बार बिना महरम के मुस्लिम महिलाएं हज पर जा रही हैं। मोदी सरकार में उपलब्धियां भले ही आंकड़ो की शक्ल पा रही हो पर कौम के चेहरे की शिकन है जिसकी कहीं सुनवाई नहीं हो रही है।
Posted on 07 May 2018 by admin
कर्नाटक के लिंगायत नेता बीएस येदुरप्पा को भले ही मोदी व शाह ने अपना मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर रखा हो पर यह यक्ष प्रश्न अब भी लगातार बना हुआ है कि भाजपा के राज्य में चुनाव जीतने की सूरत में क्या वाकई सीएम की कुर्सी येदुरप्पा को मिलेगी? बिचारे येदुरप्पा ने अब तक सिर्फ एकदफा पीएम के साथ चुनावी स्टेज षेयर किया है, कहा जाता है कि फिर उन्हें मना हो गया है कि उन्हें पीएम के स्टेज पर सार्वजनिक रूप से नहीं दिखना है, ऐसी ही अघोषित आचार संहिता येदुरप्पा को अमित शाह ने भी सुना दी है कि उन्हें भाजपा अध्यक्ष के साथ मंच शेयर नहीं करना है, ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि जिस नेता के साथ पीएम और पार्टी प्रेसिडेंट स्टेज शेयर करने से भी कतरा रहे हैं, अगर ऐसे में भाजपा को राज्य में जीत भी मिलती है तो क्या ये दोनों येदुरप्पा को सेंटर स्टेज पर बिठाएंगे? भाजपा के इतिहास में ऐसा पहले भी हो चुका है जब हिमाचल में सीएम पद के उम्मीदवार धूमल अपना ही चुनाव हार गए और उनके एक अनजाने से चेले को राज्य का मुख्यमंत्री बना दिया गया, झारखंड में अर्जुन मुंडा सीएम पद के उम्मीदवार थे, पर वे भी चुनाव हार गए और राज्य में कमान मिली एक अनजाने से रघुवर दास को।
Posted on 07 May 2018 by admin
अब लाख टके का सवाल यह है कि अगर येदुरप्पा को भाजपा हाईकमान अंगूठा दिखाती है तो जीत की सूरत में सीएम की कुर्सी किसे मिलेगी? भाजपा से जुड़े विश्वस्त सूत्र बताते हैं कि वैसी सूरत में दो नामों पर गंभीरतापूर्वक विचार हो सकता है, इसमें से एक संघ के बेहद करीबी माने जाने वाले बीएल संतोष हैं, जिन्हें मोदी का भी उतना ही करीबी माना जाता है। दूसरा नाम दलित नेता श्रीरामल्लू का है, जो वाल्मीकि समाज से आते हैं और इस दफे दो विधानसभाओं से चुनाव लड़ रहे हैं। श्रीरामल्लू ने सिद्दारमैया को उनके गढ़ में चुनौती दी है और उनके खिलाफ चुनावी मैदान में डटे हैं। श्रीरामल्लू दलित होने के बावजूद रिजर्व सीट के बजाए सामान्य सीट से चुनाव लड़ रहे हैं, 4 जिलों में उनका अच्छा असर है, और इन चुनावों में पार्टी से पैसा लेने के बजाए अपने पैसे चुनाव में झोंक रहे हैं। पार्टी विद् ए डिफरेंस का खटराग अलापने वाली भाजपा ने श्रीरामल्लू और रेड्डी बंधुओं से एकवक्त हर मुमकिन दूरी बना रखी थी, वक्त का तकाजा देखिए आज ये दोनों ही कर्नाटक में भगवा पार्टी के तारणहार बने हुए हैं। सियासत में वक्त से बड़ा सरताज कोई और नहीं हो सकता।
Posted on 07 May 2018 by admin
राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया भले ही फिलवक्त राहत की सांस ले रही हों, पर भाजपा शीर्ष के साथ उनकी तनातनी अब भी बनी हुई है, यही कारण है कि पार्टी की राज्य इकाई से एक-एक कर वसुंधरा-वफादारों की छुट्टी की जा रही है, हालिया दिनों में वसुंधरा विरोध के नारे भी उग्र होने लगे हैं-’मोदी तुझसे बैर नहीं, पर रानी तेरी खैर नहीं।’ हालिया उप चुनावों के नतीजे भी इस बात की चुगली खाते हैं कि भाजपा इस दफे एक नए चेहरे के साथ चुनावी मैदान में जा सकती है। सूत्रों के मुताबिक केंद्रीय मंत्री राज्यवर्द्धन सिंह राठौर को कैंपेन कमेटी की जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है, पर भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री पद का चेहरा कौन होगा, इस बारे में अभी पक्के तौर पर कुछ कहा नहीं जा सकता।