मोदी दरबार में मीडिया

September 21 2014


2002 के गुजरात दंगों पर नरेंद्र मोदी को लगातार सवालों के कटघरे में खड़ा करने वाले इस पति-पत्नी द्वय ने अंग्रेजी के टीवी पत्रकारिता में एक नई धारा शुरू करने का प्रयास किया, एक खास सियासी दल को लेकर इनका अनुराग कभी छुपा नहीं, और न ही अपने टॉक-शो या टीवी एंकरिंग में इन दोनों ने कांग्रेस से अपनी निकटता से कभी पल्ला झाड़ा। सो, मोदी समर्थक माने जाने वाले देश के सबसे बड़े उद्योगपति ने जब इस चैनल समूह को अधिग्रहित किया, तो कांग्रेस राग अलापने वाले इस दंपत्ति की उस चैनल से छुट्टी हो गई। काफी दिनों तक बेराोजगारी का दंश झेलने के बाद पति को अभी हाल में ही एक तेज चैनल में जगह मिल गई है, रही बात पत्नी की, तो उन्होंने दिल्ली के एक प्रमुख अंग्रेजी अखबार में बतौर एडिटर-एट-लार्ज का जिम्मा संभाल लिया है। सूत्र बताते हैं कि एक दिन पीएमओ से इस अंग्रेजी अखबार के मालिक को फोन गया और उन्हें इत्तला कर दी गई कि इस महिला पत्रकार को नौकरी देने में आपने जो जल्दबाजी दिखाई है उससे ‘बॉस’ खुश नहीं है। वहीं जब दिल्ली के एक अन्य बहु प्रसारित अखबार समूह की मालकिन पीएमओ के एक उच्च अधिकारी से मिलने पहुंची, तो उनसे कहा गया कि ‘कांग्रेसनीत यूपीए के शासनकाल में तो आप अपने अंग्रेजी व हिंदी अखबारों के संपादक दस जनपथ के कहने पर रखा करती थीं, अब वक्त आ गया है कि आप इस आदत से मुक्त हो जाइए।’ वहीं जब एक प्रमुख राजनैतिक चिंतक व स्तंभकार ने पीएम से मिलने का समय मांगा तो उन्हें प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह के पास भेज दिया गया और उनसे कहा गया कि ‘आपने मोदी के विरोध में कोई छह दर्जन से ज्यादा कॉलम लिखे हैं, जब इस व्यक्ति से आपका इतना ही विरोध है तो आप उनसे मिल कर क्या करेंगे?’ जाहिर है, दोस्त और दुश्मन की परख करने में और उन रिश्तों को निबाहने में मोदी कभी चूकते नहीं।

 
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  1. Saurav Jha Says:

    Interesting post sir. But who is the columnist being refereed here..?

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