राहुल का तुगलकी फरमान

January 11 2015


एक ओर जहां भाजपा और ‘आप’ जैसी पार्टियों ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में एड़ी-चोटी का जोर लगा रखा है, रोज-बरोज़ चुनावी रणनीतियां बुनी जा रही हैं, सियासत में नई संभावनाओं को खंगाला जा रहा है, वहीं कांग्रेस के युग-पुरुष राहुल गांधी मोदी की दिल्ली रैली से 3 दिन पहले तक विदेश में नए साल की छुट्टिïयां मना रहे थे। एक ओर जहां कांग्रेस के चारण वृंद राहुल को पार्टी अध्यक्ष बनाने की मांग कर रहे हैं, (उम्मीद तो यह भी जताई जा रही है कि मंगलवार को आहूत कांग्रेस कार्य समिति की बैठक में इस मांग पर सोनिया की सहमति की मुहर भी लग सकती है और मार्च में इसका ऐलान भी हो सकता है) तो वहीं कहीं नाराज कांग्रेसियों का एक बड़ा वर्ग खुलकर अब पार्टी फोरम पर अपनी बात रख रहा है। कुछ तो यहां तक कह रहे हैं कि तुगलक लेन में रहते हुए राहुल की सोच भी कहीं न कहीं तुगलकी हो गई, यही वजह है कि पार्टी नेताओं को अक्सर वे अपना तुगलकी फर्मान सुना जाते हैं। राहुल पर यह भी आरोप लग रहे हैं कि वे कांग्रेस को एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की तरह चला रहे हैं, और पार्टी के बड़े नेताओं से भी रूखाई से पेश आते हैं। अब राहुल दिल्ली विधानसभा चुनाव की पूर्व बेला में अपने पसंदीदा और नफीस अंग्रेजी बोलने वाले पीसी चाको को दिल्ली का प्रभारी और ए.के.एंटोनी को स्क्रीनिंग कमेटी का अध्यक्ष बना खुद क्रिसमस और नया साल मनाने विदेश चले गए, अब हिंदी भाषी दिल्ली में कांग्रेस का टिकट चाहने वाले अभ्यर्थियों की सबसे बड़ी मुश्किल यही रही कि चाको व एंटोनी से संवाद कैसे स्थापित हो, क्योंकि ये दोनों नेता सिर्फ अंग्रेजी बोलते व समझते हैं। वैसे भी इन दिनों राहुल की कोर टीम का चेहरा-मोहरा बदल गया है, दिग्विजय सिंह और कनिष्क सिंह किनारे लगा दिए गए हैं, जयराम रमेश का भी कमोबेश यही हाल है। जयराम और मोहन गोपाल में 36 का आंकड़ा है, राहुल दरबार में इन दिनों शंकर, सचिन राव, मोहन गोपाल, मधुसूदन मिस्त्री और भंवर जितेंद्र सिंह की तूती बोलती है। मोहन गोपाल की थ्योरी है कि जब मोदी ‘अनपॉपुलर’ होंगे तो आप से आप राहुल का ‘ग्राफ’ चढ़ जाएगा, शायद यही वजह है कि राहुल हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं।

 
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  1. Rajeev Ranjan Tiwari Says:

    बेहतरीन। अच्छी जानकारी दी गई है।

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