तृणमूल सांसद महुआ मोइत्रा के पर कुतरने की तैयारी में है दिल्ली, ’कैश फॉर क्वेरी’ मामले में एथिक्स कमेटी ने लोकसभा स्पीकर को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है, इस रिपोर्ट को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने के लिए महुआ ने भी कमर कस रखी है। इसकी काट में सरकार समर्थकों का कहना है कि ’संविधान के अनुच्छेद 122 में यह साफ-साफ वर्णित है कि न्यायालय संसद की कार्यवाही की जांच नहीं कर सकता, यहां हुई कार्यवाहियों को आप अदालत में चुनौती नहीं दे सकते।’ पर पिछले कुछ समय में इन मान्य परंपराओं का खुल कर उल्लंघन हुआ है। महाराष्ट्र विधानसभा में स्पीकर के फैसले को कोर्ट में चुनौती दी गई है, शीघ्र ही अदालत इस मामले में अपना फैसला सुनाने वाला है। सो, महुआ ने भी लगभग तय कर रखा है कि ’उनके मामले में स्पीकर का फैसला यदि प्रतिकूल आता है तो वह सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगी।’ वैसे भी एथिक्स कमेटी में शामिल रहे विपक्षी दलों के नेताओं का दावा है कि मात्र ढाई मिनट में रिपोर्ट अप्रूव हो गई, कमेटी के सदस्यों को तो सुना ही नहीं गया। इस रिपोर्ट में महुआ के लिए समय-समय पर कैश और गिफ्ट लेने की बात कही गई है, ऐसा सूत्रों का दावा है, महुआ पर यह आरोप लगाने वाले उद्योगपति दर्शन हीरानंदानी कमेटी के समक्ष पेश ही नहीं हुए, उनकी जगह उनका शपथ पत्र लेकर गोड्डा के भाजपा सांसद निशिकांत दुबे कमेटी के समक्ष पेश हुए और उनकी ओर से जवाब दिया। वैसे कायदे से यह दर्शन को बताना चाहिए था कि उन्होंने महुआ को कब व कहां ये पैसे दिए। स्पीकर जब आर्डर करेंगे तो सीबीआई और ईडी महुआ पर पिल पड़ेंगे यानी सबूत बाद में पहले महुआ को सदन से बाहर तो निकालने की तैयारी है।
लोकसभा स्पीकर ओम बिरला यूं कायदे से राजस्थान के इन हालिया विधानसभा चुनावों में कोई सक्रिय रोल अदा नहीं कर सकते, चूंकि स्पीकर का पद राजनैतिक निरपेक्ष पद है। पर वे पिछले काफी समय से अपनी पूरी टीम के साथ अपने संसदीय क्षेत्र कोटा में ही जमे हुए हैं। उनकी टीम में उनके सहायकों व सुरक्षाकर्मियों के अलावा फोटोग्राफर व वीडियोग्राफर शामिल हैं, उनके लिए प्रेस रिलीज तैयार करने वाले पत्रकार हैं, उनके सोशल मीडिया को संचालित करने वाले लोग हैं। इनकी गाड़ियों का काफिला भी बड़ा है और उतने ही बड़े हैं इनके इंतजाम के होटल के बिल। स्पीकर महोदय सुबह सवेरे नियम से गांवों के दौरों पर निकल जाते हैं अपनी पूरी टीम के साथ, मान्य परंपराओं के मुताबिक वे किसी चुनावी सभा को संबोधित नहीं कर सकते, पर अपने क्षेत्र के लोगों से बेसाख्ता मिल तो सकते हैं, सो वे उनसे मिलते हैं और बात करते हैं। दरअसल, राजस्थान के भगवा नेताओं में पीएम की उस बात से ही होड़ मची है जब पीएम ने कह दिया था कि ’जो नेता अपने यहां से जितनी ज्यादा सीटें जितवाएंगे सीएम पद के उम्मीदवार के लिए उनका दावा उतना ही मजबूत होगा।’ बिरला यादव के क्षेत्र में विधानसभा की 6 सीटें आती हैं, पिछले चुनाव में भाजपा ने इनमें से 3 सीटें जीत ली थीं, इस बार स्पीकर महोदय इन सभी 6 सीटों पर भगवा परचम लहराना चाहते हैं।
गोदी मीडिया के एक सबसे बड़े चेहरे को अब अपने लिए एक नई नौकरी की दरकार है, डीएनए जांच से श्वेत-श्याम छवि गढ़ने वाले एंकर को उनके मौजूदा चैनल ने बाय-बाय कहने का मन बना लिया है, क्योंकि चैनल का टीआरपी धड़ाम से गिरा है और समूह के शेयर के भाव भी बाजार में औंधे मुंह लुढ़के हैं। उनके लिए सरकार के कर्णधारों ने एक दैनिक हिंदी अखबार में संपादक की नौकरी ढूंढ़ निकाली, पर एंकर महोदय ने इसके लिए मना कर दिया है, वे टीवी में ही बने रहना चाहते हैं, एक बड़े उद्योगपति के चैनल समूह के एडिटर इन चीफ ने भी उनके नाम को मना कर दिया है, सरकार उनके लिए नौकरी ढूंढने के प्रयास में अब तक जुटी है।
कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों की नज़रें जहां आने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों पर अटकी है, वहीं भारतीय राजनीति को एक नया चेहरा-मोहरा देने की जद्दोजहद में जुटे चतुर सुजान मोदी आने वाले तीन दशकों की राजनीति को ’शेप’ देने में जुटे हैं। इस बार यह सपनों का सौदागर अपने जादुई पिटारे में ’30 ट्रिलियन इकॉनोमी’ की मृगतृष्णा लेकर आया है। पीएम मोदी की एक कोर टीम 2024 लोकसभा चुनावों से पहले मतदाताओं को लुभाने के लिए एक ’पॉलिसी प्लेबुक’ तैयार करने में जुटी है, यह प्लेबुक यह कहने को तैयार है कि ’अगर भारत देश पीएम मोदी के विजन के अनुरूप चला तो आजादी के 100 वर्षों के सफर तक यानी आने वाले 2047 तक भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार 30 ट्रिलियन का हो जाएगा।’ मोदी के कोर टीम के नेतृत्व में ’इंडिया @विजय 2047’ नामक श्वेत पत्र पर काम जारी है। सूत्र बताते हैं कि इस रोड मैप को तैयार करने का जिम्मा विश्व बैंक के अध्यक्ष अजय बंगा को सौंपा गया है, बंगा की टीम में एप्पल कंपनी के मालिक टिम कुक और देश के एक नामचीन उद्योगपति भी शामिल हैं, इस पूरे कार्य को नीति आयोग के दिशा निर्देश में पूरा किया जा रहा है। अजय बंगा तो आपके जेहन में ताजा ही होंगे, उन्हें पीएम मोदी का बेहद करीबी माना जाता है, और भारत में हालिया दिनों संपन्न हुए जी20 शिखर सम्मेलन में उन्होंने अपनी खास उपस्थिति दर्ज कराई थी। इस ’पॉलिसी प्लेबुक’ को दो अध्यायों में बांटा गया है, पहले अध्याय में 2030 तक की प्लॉनिंग है और इसके अगले अध्याय में आगे के 17 सालों की। इस पूरी कार्य योजना की बुनावट भारत के मिडिल क्लास को केंद्र में रख कर की गई है। और इसके उद्घोष में ’फार्म से फैक्ट्री’ तक की भावना निहित है यानी आने वाले 34 सालों में भारत सरकार का फोकस खेती-किसानी पर नहीं अपितु फैक्ट्री यानी मैनुफैक्चरिंग सेक्टर पर रहने वाला है। अब स्कूली बच्चों को भी एक नए सिरे से निबंध लिखने की प्रैक्टिस कर लेनी चाहिए कि ’भारत एक कृषि प्रधान देश ‘नहीं’ है।’ सब मोदी जी के विजन के अनुरूप चला तो आने वाले कुछ दशकों में भारत भी सिंगापुर जैसे देशों में कंधे से कंधा मिला कर आगे बढ़ सकेगा।
आपको चुनाव विश्लेषक सुनील कानूगोलू याद हैं न? कभी ये प्रशांत किशोर के साथ हुआ करते थे, फिर उनसे टूट कर राहुल गांधी से सीधे जुड़ गए। कांग्रेस के कर्नाटक फतह में उनकी एक प्रमुख भूमिका बताई जाती है। कांग्रेस हाईकमान कानूगोलू के परफॉरमेंस से इतना खुश हुआ कि जब कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार बनी तो उन्हें वहां मंत्री का दर्जा मिल गया। इन पांच राज्यों के चुनावों में भी कांग्रेस शीर्ष ने कानूगोलू के ऊपर यह जिम्मेदारी सौंपी थी कि ’वे कर्नाटक चुनाव के तर्ज पर इन राज्यों में भी जमीनी सर्वेक्षण कर प्रत्याशियों के चयन में पार्टी की मदद करें।’ मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलांगना व मिजोरम में तो कानूगोलू की राय को तरजीह दी गई और प्रत्याशियों की घोषणा से पहले उनके लिस्ट से मिलान भी कर लिया गया। पर राजस्थान में कानूगोलू की एक न चली। सुनील की राय थी कि ’कर्नाटक की तर्ज पर ही राजस्थान में भी पचास फीसदी निवर्तमान विधायकों के टिकट काट दिए जाएं और उनकी जगह नए चेहरों को मैदान में उतारा जाए।’ यहां तक तो कानूगोलू की बात ठीक थी, एक कदम आगे बढ़ कर कानूगोलू ने यह राय दे डाली कि ’अशोक गहलोत की जगह पार्टी को अपना कोई नया व फ्रेश सीएम फेस आगे करना चाहिए,’ जाहिर सी बात है कि सुनील की इस राय पर अशोक बेतरह उखड़ गए, इस मामले ने कुछ इस हद तक तूल पकड़ा कि कानूगोलू को जयपुर से बेंगलुरू की फ्लाइट लेनी पड़ गई। हाईकमान का कोई हस्तक्षेप भी काम नहीं आया, गहलोत ने किसी की एक न सुनी।
’रोशनी के कितने शफ्फाक धागों से मिल कर बना है तेरा ये चेहरा
अंधेरों से महफूज हैं तेरे ये किरदार पर इन पर तेरा अक्स है गहरा’कोई 10 महीनों की कड़ी मशक्कत के बाद आखिरकार कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे अपनी नई टीम की घोषणा करने में सफल रहे, कांग्रेस की नीति निर्धारक कमेटी सीडब्ल्यूसी का आकार भी 23 से बढ़ा कर 39 कर दिया गया, इसके बावजूद खड़गे पर यह आरोप चस्पां हो रहा है कि ’उनकी टीम पर सोनिया गांधी की चाहतों की छाप है।’ इन 39 में से 11 ऐसे सदस्य हैं जिन्होंने पिछले दस सालों से ज्यादा वक्त से कोई चुनाव नहीं लड़ा है, वे बस राज्यसभा के सहारे ही कांग्रेस में अपनी दुकान चला रहे हैं। इस टीम में चुनाव हार चुके नेताओं का भी खासा दबदबा है, इस कड़ी में अजय माकन, जगदीश ठाकोर, गुलाम अहमद मीर, सलमान खुर्शीद, दिग्विजय सिंह, तारिक अनवर, मीरा कुमार, भवर जितेंद्र सिंह, मुकुल वासनिक व दीपा दास मुंशी के नाम शामिल हैं। इस नई टीम में कांग्रेस के असंतुष्ट गुट जी-23 का भी दबदबा दिखता है, चाहे वह मनीष तिवारी हों, शशि थरूर, आनंद शर्मा या फिर मुकुल वासनिक, खड़गे ने इन्हें अपनी नई टीम में जगह दी है। सूत्रों की मानें तो इन 39 में से बस दो लोग ऐसे हैं जिन्हें आप खड़गे भरोसेमंद मान सकते हैं, ये हैं गुरदीप सप्पल और राज्यसभा सदस्य नासिर हुसैन। सप्पल को दिल्ली से लाया गया है, जहां कांग्रेस का कोई खास वजूद बचा नहीं है, सबसे खास बात तो यह कि सप्पल को अपनी टीम में लेने के लिए खड़गे ने दिल्ली के पुराने नेता जयप्रकाश अग्रवाल की भी अनदेखी कर दी, हालिया दिनों में जेपी अग्रवाल से मध्य प्रदेश का प्रभार भी ले लिया गया है और उनकी जगह वहां रणदीप सुरजेवाला को भोपाल भेजा गया है। कांग्रेस के कोषाध्यक्ष पवन कुमार बंसल के भी पर कुतरे गए हैं, अब तक पार्टी की मान्य परंपराओं के मुताबिक कोषाध्यक्ष को सीडब्ल्यूसी के स्थाई सदस्यों में जगह मिलती रही है, पर बंसल को ‘परमानेंट इन्वाइटी’ करार दिया गया है, पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव के दौरान बंसल ने भी चुनाव लड़ने के लिए एक फॉर्म खरीदा था, क्या इस बात को खड़गे अब भी भूले नहीं हैं? वहीं अपने खिलाफ चुनाव लड़े जी-23 के एक अहम सदस्य शशि थरूर को उन्होंने अपनी टीम में जगह दे दी है। वैसे तो राहुल दुलारे इमरान प्रतापगढ़ी की उपेक्षा भी हैरान करने वाली है, शायद अतीक अहमद प्रकरण की वजह से उनका नाम लिस्ट से कट गया और उनकी जगह नासिर हुसैन को प्राथमिकता दी गई। सोनिया के वरदहस्त की वजह से एके एंटोनी को नई टीम में जगह मिल गई, जबकि उनके पुत्र अनिल एंटोनी भाजपा में शामिल होकर भगवा पार्टी के पक्ष में अलख जगा रहे हैं।
मोदी सरकार के पास हर मर्ज की एक अचूक दवा है। सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद जब ईडी प्रमुख संजय मिश्रा की रिटायरमेंट अवधि 15 सितंबर तक सीमित हो गई तो सरकार ने इसकी भी एक काट ढूंढ निकाली। हालांकि सुप्रीम कोर्ट के दखल से पहले ईडी प्रमुख को दो अहम सेवा विस्तार पहले ही दिए जा चुके थे। सूत्रों की मानें तो केंद्र सरकार ने सीडीएस यानी ‘चीफ ऑफ डिफेंस सर्विसेस’ की तर्ज पर सीआईओ यानी ’चीफ ऑफ इंवेस्टिगेशन ऑफिसर ऑफ इंडिया’ का नया पद सृजित करने का मन बना लिया है। अगर संजय मिश्रा इस नवसृजित पद के पहले दावेदार हैं तो फिर देश की दो अहम जांच एजेंसियां यानी सीबीआई और ईडी के मुखिया उन्हें रिपोर्ट करेंगे। यह नवसृजित पद भारत सरकार के सचिव के रैंक का होगा और सीआईओ सीधे पीएम को रिपोर्ट करेगा। 2018 से ही संजय मिश्रा ईडी प्रमुख पद पर काबिज हैं। कभी वे अहमद पटेल, पी.चिदंबरम और प्रणब मुखर्जी जैसे नेताओं के बेहद भरोसेमंद नौकरशाहों में शुमार होते थे, दिल्ली का निज़ाम बदला तो उनके भी रंग बदल गए। कहते हैं संजय मिश्रा बेहद सादगी से जीवन जीने के कायल हैं, पिछले दिनों उन्होंने अपने घर के सारे एसी उतरवा दिए, उनका यह संन्यासीपन वाला बिंदास अंदाज पीएम मोदी को भी खूब रास आता है। पर विपक्षी दल मिलजुल कर यह बात उठा रहे हैं कि ’जहां जिन राज्यों में चुनाव होने होते हैं वहीं थोकभाव में ईडी के छापे क्यों पड़ते हैं? और अब तक जिन नेताओं को ईडी ने छापे के बाद जेल भेजा है उन पर वह आरोप क्यों नहीं सिद्द कर पायी है?’
’मेरे घर को अब तलक रौशन करने के लिए तेरा बहुत शुक्रिया
अब वक्त है तेरे जाने का मुझे मिल गया है दीया एक नया’
क्या भाजपा नेतृत्व को राजस्थान में अपने देदीप्यमान आस्थाओं की एक नई देवी मिल गई हैं? ’वसुंधरा नहीं तो भाजपा नहीं’ का खटराग अलापने वाले महारानी के समर्थक क्या सकते में हैं? क्या इस दफे के राजस्थान के चुनाव में भगवा आस्थाओं में उसके घर के चिराग से ही आग लग सकती है?’ इस बार जब अमित शाह जयपुर आए तो उनकी राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया के साथ कोई चालीस मिनट तक वन-टू-वन बातचीत हुई। अगर भाजपा शीर्ष की भंगिमाएं बदली हुई थी, तो तेवर वसुंधरा के भी कहीं तल्ख थे। शाह ने महारानी के समक्ष स्पष्ट कर दिया कि ’भाजपा नेतृत्व चुनावी राज्यों में नया नेतृत्व उभारना चाहता है।’ कहते हैं कि इसके जवाब में वसुंधरा ने कहा-’दो बार मैंने प्रदेश में पार्टी को बड़ी जीत दिलाई, मेरे चेहरे के बगैर न तो कार्यकर्ताओं में जोश आएगा और न ही पार्टी चुनाव में जोरदार प्रदर्शन कर पाएगी।’ शाह ने वसुंधरा की बातों को धैर्यपूर्वक सुना और कहा-’ठीक है हम इस पर विचार कर सकते हैं अगर आप झालरापाटन की जगह इस बार अशोक गहलोत के खिलाफ सरदार शहर से चुनाव लड़ जाएं।’ यानी कि शाह का इशारा साफ था, एक तीर से दो शिकार, वसुंधरा की गलहोत से दोस्ती भी खत्म हो जाएगी और उनकी सीएम पद की चुनौती भी। वहीं भाजपा का शीर्ष नेतृत्व बड़े सुविचारित तरीके से जयपुर की राजकुमारी दीया कुमारी के नाम को आगे बढ़ा रहा है। हालांकि दीया लोकसभा की सांसद हैं, फिर भी उन्हें विधानसभा चुनाव लड़वाने की तैयारियां हो रही है। क्योंकि अगर राजस्थान में इस दफे कमल खिला तो सीएम पद के लिए सबसे मजबूत दावेदारी दीया कुमारी की ही रहने वाली है। रही बात वसुंधरा की तो अगर वह बागी हुई तो केंद्र सरकार के पास ‘ईडी’ है न!
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2024 के आम चुनाव के लिए भाजपा ने अभी से कमर कस ली है। नए चुनावी मुद्दों को झाड़ पोंछ कर चमकाया जा रहा है। अब भाजपा रणनीतिकार दो नए चुनावी मुद्दों को धार देने में जुटे हैं-पहला ’हर घर नल योजना’ और दूसरा ’स्वदेशी कोविड वैक्सीन’। कोविड वैक्सीन को लेकर जो प्रचार बुना गया है उसमें कहा गया है-’कोविड वैक्सीन-कॉज फॉर ग्लोबल गुड’ इस विज्ञापन में यह कहने की तैयारी है कि ’योग और भारत में निर्मित दो वैक्सीन से दुनिया ने मजबूती से कोविड महामारी का सामना किया। यही है न्यू इंडिया!’ दूसरा विज्ञापन ’हर घर नल’ को लेकर है, जिसका नारा है-’मिली कष्टों से मुक्ति, हर घर जल की शक्ति- नया भारत।’ पर इन दोनों प्रचार अभियानों को लेकर भाजपा के अंदर ही बहस छिड़ी हुई है, पार्टी का एक वर्ग कह रहा है कि ’जब कोविड को लोग भूल चुके हैं तो उसे फिर याद दिलाने की क्या जरूरत है? जिन घरों ने कोविड में अपनों को खोया है उनके घाव फिर से हरे हो सकते हैं।’ वहीं ’नल जल’ के विज्ञापन में केंद्र सरकार दावा कर रही है कि जहां 70 सालों में सिर्फ 3.2 करोड़ भारतीय घरों में नल लगे, हमने महज़ चार सालों में 5 करोड़ घरों में नल लगवा दिए। पर लोग कहते हैं कि ’हर घर नल’ मूलतः नीतीश कुमार की योजना थी जिसे बिहार सरकार ने बखूबी अपने राज्य में लागू किया था। क्योंकि केंद्र सरकार की देशव्यापी शौचालय योजना लुढ़क गई थी क्योंकि उसमें शौचालय निर्माण की बात तो थी, पर शौचालय को पानी भी चाहिए इस बारे में सोचा ही नहीं गया था। तब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शौचालय स्कीम में ही अपना ’हर घर नल’ योजना को जोड़ दिया। अब नीतीश कुमार विपक्षी ’इंडिया’ गठबंधन के हिस्सा हैं, सो केंद्र सरकार की ओर से अगर इस नई योजना का षोर मचा तो नीतीश खुद इसका श्रेय लेने की कवायद तेज कर देंगे।
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2024 के चुनाव के आलोक में जहां तमाम विपक्षी दल ओबीसी-इबीसी जातियों की राजनीति को साधने में जुटे हैं, वहीं मोदी सरकार देश भर के कामगारों के लिए एक नई योजना लेकर आई है-’ विश्वकर्मा श्रम सम्मान योजना’। पीएम मोदी खुद घूम-घूम कर इस योजना का प्रचार कर रहे हैं। इस योजना के तहत पारंपरिक कारीगरों, दस्तकारों, शिल्पकारों सहित 18 पारंपरिक कार्यों व व्यापारों से जुड़ी जातियों के लोगों को फायदा मिलने की उम्मीद है, इन जातियों में बढ़ई, लोहार, कुम्हार, दर्जी, सुनार, नाई, राजमिस्त्री, मोची, टोकरी बुनने वाले लोग शामिल हैं। जहां यह योजना इन कारीगरों को सस्ती दर पर 3 लाख रुपयों तक का लोन देती है, वह भी बिना किसी गारंटी के। 2023-24 से शुरू होकर 2027-28 तक के वित्तीय वर्ष तक इस योजना में 13 हजार करोड़ रुपयों से ज्यादा खर्च का प्रावधान है। इन जातियों के लोगों को विकास की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए 500 रुपए दैनिक भत्ते के साथ 7 दिनों की ‘स्किल ट्रेनिंग’ का प्रावधान है। टूल किट खरीदने के लिए अतिरिक्त 15 हजार की राशि का भी प्रावधान है। सरकार को उम्मीद है कि इस योजना के पहले वर्ष में ही 5 लाख परिवारों को इसका लाभ मिलेगा। और आगे के 5 वर्षों में इससे 30 लाख परिवार और जुड़ेंगे। आपको याद हो तो पिछले लोकसभा चुनाव के वक्त भी किसानों के खातों में 4 हजार रूपए गए थे, ठीक उसी तर्ज पर इस स्कीम में भी लाभार्थियों के खातों में (जिन्होंने सरकारी पोर्टल पर अपने को रजिस्टर्ड करा लिया है) भी 4-5 हजार रूपयों की रकम सीधे जा सकती है। यानी केंद्र सरकार की सोच साफ है कि जिसको मिलेगा, वह भाजपा से जुड़ेगा।
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