Posted on 29 September 2013 by admin
दिल्ली के कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान यहां के बस शेल्टर्स का काम फ्रांस की एक मशहूर आउटडोर कंपनी को दिया गया था। तब विपक्षी दलों ने इस बात पर खासा हंगामा भी मचाया था। भाजपा नेताओं ने तो यहां तक आरोप लगाए थे कि इस कंपनी में मुख्यमंत्री के एक नजदीकी रिश्तेदार का भी हिस्सा है। यह बात आई-गई हो गई और इस फ्रांसीसी कंपनी को धीरे-धीरे दिल्ली के 900 बस शेल्टर का काम हासिल हो गया। यह कंपनी दिल्ली सरकार को प्रति बस शेल्टर 8-9 हजार रूपयों का भुगतान करती है और बदले में विज्ञापनदाताओं से 90 हजार से 50 लाख प्रति बस शेल्टर के दर से किराया वसूलती है। अभी इस चुनावी मौसम में दिल्ली सरकार केवल मद में 4 करोड़ रूपयों से ज्यादा प्रतिमाह खर्च कर रही है। इस राशि का सबसे बड़ा हिस्सा बस शेल्टर पर विज्ञापन देने में खर्च कर रही है।वहीं प्रमुख विपक्षी पार्टी भाजपा ने अपने विज्ञापन अभियान के केंद्र में आउटडोर होर्डिंग्स को रखा है और उसने दिल्ली के प्रमुख स्थानों के ज्यादातर सभी होर्डिंग्स अपने विज्ञापन अभियान के लिए अभी से किराए पर ले लिए हैं।
Posted on 22 September 2013 by admin
मोदी के प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी को लेकर ऐन वक्त पार्टी के वयोवृद्ध नेता लाल कृष्ण अडवानी के सियासी यू-टर्न के पीछे संघ के कुछ नेताओं की एक महती भूमिका है, नहीं तो अडवानी कैंप ने मोदी की उम्मीदवारी को लेकर बगावत की पूरी पटकथा तैयार कर ली थी। सूत्रों के अनुसार अडवानी कैंप ने अपनी भावनाओं और योजनाओं से पहले ही संघ को अवगत करा दिया था कि जैसे ही 13 सितंबर को मोदी के नाम की घोषणा होगी, अडवानी से जुड़े और उनसे सहानुभूति रखने वाले पार्टी के केंद्रीय व स्टेट यूनिट से जुड़े 100 से ज्यदा पदाधिकारी और दो राज्यों के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और रमण सिंह अपने-अपने पदों से इस्तीफे दे देंगे। यानी भाजपा में एक बड़ा भूचाल लाने की तैयारी थी। इस $खबर की भनक मिलते ही भैय्याजी जोशी के नेतृत्व में संघ के प्रमुख नेताओं की वृंदावन में दो दिनों की मैराथन बैठक हुई और इस बैठक की बात पूरी तरह से गुप्त रखी गई। इस बैठक में हालांकि स्वयं संघ प्रमुख मोहन भागवत उपस्थित नहीं थे पर कृष्ण गोपाल से लेकर सुरेश सोनी तक की इस बैठक में मौजूदगी देखी गई। संघ की इस बैठक से निचोड़ निकला कि अडवानी मुद्दे पर संघ सख्त स्टैंड लेगा, पहले उन्हें समझाने की चेष्टïा की जाएगी फिर भी अगर वे नहीं माने तो पार्टी अपने दायरे के अंदर उन पर और उनके अनुयाइयों पर अनुशासनात्मक कार्यवाही कर सकती है। संघ की इस बैठक का वनलाइनर था कि ‘मैसेज टू द मॉसेज़ देट वी आर वन’ यानी आम जनता में हमारी एकता का संदेश पहुंचे और पार्टी में कत्र्ता व कार्यकत्र्ता के बीच कोई फासला नहीं है।
Posted on 16 September 2013 by admin
मोदी के पक्ष में माहौल बनाने और रूठे अडवानी कैंप को मनाने में नितिन गडकरी की एक महती भूमिका रही है। कुछ दिन पहले तक यही माना जा रहा था कि गडकरी मोदी की पीएम उम्मीदवारी के पक्ष में नहीं हैं। पर हवा का रूख भांपने में माहिर गडकरी संघ की आज्ञा को शिरोधार्य करते हुए मोदी के पक्ष में अलख जगाने में जुट गए। विश्वस्त सूत्राों का दावा है कि आने वाले दिनों में गडकरी को एक बड़े इनाम से नवााा जा सकता है और मोदी द्वारा रिक्त किए जा रहे कैंपेन कमेटी के चेयरमैन पद से गडकरी का तिलक किया जा सकता है।
Posted on 09 September 2013 by admin
भाजपा महासचिव व यूपी के प्रभारी अमित शाह इन दिनों कांग्रेस के दुश्मन नंबर वन बन चुके हैं। दरअसल, कांग्रेस सीधे मोदी पर हमला नहीं साधकर शाह पर निशाना साधना चाहती है ताकि इसकी आंच मोदी तक पहुंचे। फिलहाल शाह सोहराबुद्दीन मामले में जमानत पर हैं। पर सितंबर के आखिर में सीबीआई कोर्ट में उनकी जमानत को खारिज करने की अर्जी लगाने वाली है। दरअसल, शाह अपने ही बुने कानूनी जाल में उलझ गए लगते हैं। उनकी गिरफतारी सोहराबुद्दीन व कौसर बी के मामले में हुई थी, उसके बाद तुलसी प्रजापति का केस सामने आया तब तक शाह को कोर्ट से जमानत मिल चुकी थी। सो, जब उन्हें लगा कि प्रजापति मामले में वे फिर से जेल जा सकते हैं तो उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगाई कि सोहराबुद्दीन, कौसर बी और तुलसी प्रजापति यह सब एक-दूसरे से जुड़े केस हैं। इसमें अलग से एफआइआर दर्ज करने की क्या जरूरत है? यानी प्रजापति मामले में शाह दुबारा बेल के लिए एप्लाई नहीं करना चाहते थे। चुनांचे कोर्ट ने उनकी बात मान ली और इन तीनों केस को ‘क्लब’ कर दिया। पर अब उसमें नया पेंच यह आ गया है कि इन तीनों केस के एक होते ही इसमें अधिकतम सजा मृत्युदंड का प्राधान समाहित हो गया और अब सीबीआई कोर्ट में यही बात दुहरा सकती है। सो, ऐन लोकसभा चुनाव की पूर्व बेला में अगर कोर्ट ने शाह की जमानत कैंसिल कर दी तो मोदी को यूपी के लिए एक नया चेहरा ढूंढना पड़ सकता है। जैसे-जैसे देश में लोकसभा चुनाव की बेला करीब आ रही है कांग्रेस मोदी को घेरने की हर मुमकिन कोशिश करने में जुटी है। डीसीपी वंजारा की दस पेजी चि_ïी तो महज़ एक आगाज़ है, आने वाले दिनों में दो और ऐसी ही चि_िïयां लाने की तैयारी है। दूसरी चि_ïी गुजरात के पूर्व एडिशनल डायरेक्टर जनरल ऑफ पुलिस पी.पी. पांडे या आईपीएस जी.एल.सिंघल की हो सकती है। और इन तमाम ख़्ातों का मज़मून यही होगा कि मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके तत्कालीन गृहमंत्री अमित शाह को सब पता था। सनद रहे कि मोदी विरोध की अलख जगाने वाले इन तमाम ऑपरेशंस की धुरी दिल्ली में है। और कुछ लोग दिन-रात इस काम को परवान देने में जुटे हैं। चूंकि चुनाव पास हैं तो स्टिंग आपरेशंस के लिए भी यह एक मौजूं वक्त है। दिल्ली के कर्णधारों के इशारे पर अभी मोदी और उनके करीबियों से जुड़े दो और स्टिंग बाहर आने हैं और इसी सितंबर माह में आ सकते हैं। वैसे भी दिल्ली ने भुपिंदर यादव की सीडी के आधार पर सीबीआई डायरेक्टर को साफ-साफ निर्देश भेज दिए हैं कि सीबीआई कोर्ट में अमित शाह की जमानत खारिज करने वाली अर्जी तैयार कर ले। दिल्ली से जुड़े विश्वस्त सूत्र बताते हैं कि इस बारे में सीबीआई का होमवर्क पूरा हो चुका है और सितंबर माह के आखिर में कभी भी शाह की जमानत को रद्द करने की अर्जी कोर्ट में लगाई जा सकती है। अमित शाह के एक बार फिर से जेल जाने का अर्थ होगा कि मोदी की तमाम उद्दात सियासी महत्वाकांक्षाओं को एक बारगी सींखचों के पीछे खड़ा कर देना।
Posted on 08 September 2013 by admin
अडवानी कैंप व खासकर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के तमाम विरोधों के बावजूद संघ के निर्देश पर भाजपा नरेंद्र मोदी को अपना प्रधानमंत्री पद का उममीदवार घोषित करने को एकदम तैयार है। ऐसा पितृपक्ष शुरू होने से पहले यानी 19 सितंबर से पहले कभी भी हो सकता है, क्योंकि संघ की मंशा मोदी विरोधियों को एक साफ संदेश देने की है।
Posted on 08 September 2013 by admin
पार्टी सांसदों को राजनाथ सिंह द्वारा दिए गए डिनर पर बिहार के दरभंगा से भाजपा सांसद कीत्र्ति आजाद व नरेंद्र मोदी का आमना-सामना हो गया। पहले तो कीत्र्ति तपाक से मोदी के गले लगे और फिर अपनी ओजपूर्ण वाणी में जोर से बोले-‘देश के भावी प्रधानमंत्री को कीत्र्ति आजाद का सलाम।़’ मोदी ने आदतन कीत्र्ति को सुधारा-‘सलाम या प्रणाम?’ फौरन अपनी गलती सुधारते हुए कीत्र्ति ने अपने दोनों हाथ जोड़े और श्रद्धा भाव से बोले-‘प्रणाम।
Posted on 04 September 2013 by admin
भाजपाध्यक्ष राजनाथ सिंह के साढ़ू अरूण सिंह इस दफे के लोकसभा चुनाव में यूपी के मथुरा संसदीय क्षेत्र से अपनी किस्मत आजमाना चाहते हैं, और समझा जाता है कि उनकी इस मुहिम को उनके बड़े साढ़ू राजनाथ सिंह का भी पूरा समर्थन हासिल है। पेशे से चार्टर्ड अकाउंटेंट अरूण सिंह यूं तो पूर्वी दिल्ली के मयूर विहार इलाके के रहने वाले हैं। पर उनका ज्यादातर वक्त ग्रेटर नोएडा के एक मैनेजमेंट संस्थान में व्यतीत होता है। सूत्रों की मानें तो इस संस्थान की मिल्कियत भी कहीं न कहीं उनके बड़े साढ़ू से जुड़ी है, वे तो सामने बस एक चेहरा हैं। अरूण सिंह को राजनीति में लाने का श्रेय भी राजनाथ सिंह को ही जाता है। राजनाथ जब पहली दफा भाजपाध्यक्ष बने तो उन्होंने अपने इस साढ़ू भाई को पार्टी के ‘इन्वेस्टर सेल’ का कन्वेनर नियुक्त कर दिया था। जब बाद में पार्टी की कमान राजनाथ के हाथों से गडकरी के हाथों में आई तो गडकरी ने भी राजनाथ का मान रखने के लिए ‘इन्वेस्टर सेल’ में ही अरूण सिंह की कुर्सी बहाल रखी। इस दफे के 2012 यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान राजनाथ सिंह ने जो अपनी चुनावी यात्रा निकाली इसके लिए उन्होंने अरूण सिंह को यूपी के ब्रज क्षेत्र का प्रमुख नियुक्त किया था। समझा जाता है कि राजनीतिक काम-काज को आगे बढ़ाने के लिए संसाधन जुटाने में अरूण सिंह का कोई सानी नहीं है। कम से कम उन्होंने राजनाथ की इस चुनावी यात्रा में संसाधनों में कोई कमी नहीं आने दी। इसके बाद जब गडकरी अपना अध्यक्षीय कार्यकाल पूरा कर रहे थे उस मुहाने पर अरूण सिंह ने नई दिल्ली के ‘कांस्टिट्यूशन क्लब’ में एक बड़ा कार्यक्रम आयोजित किया और इस कार्यक्रम में उन्होंने चीफ गेस्ट की हैसियत से भाजपा के एक प्रमुख नेता अरूण जेटली को आमंत्रित किया, तब राजनाथ और जेटली के रिश्ते इतने मधुर नहीं थे। सो, राजनाथ को अपने इस साढ़ू की यह हरकत तब बेहद नागवार गुजरी थी पर आदत के मुताबिक वे चुप्पी साध कर बैठ गए। इसके बाद ही एक नाटकीय घटनाक्रम में पार्टी की बागडोर गडकरी के हाथों से राजनाथ को शिफ्ट हो गई। अरूण सिंह ने इस मौके का बेहतर फायदा उठाया और वे चंदन मित्रा के संग ओडिशा के सह प्रभारी बन बैठे। राजनैतिक तौर पर यह उनकी अब तक की सबसे लंबी छलांग थी। इस बीच अरूण सिंह और अरूण जेटली की दोस्ती भी गहराती रही। और जब राजनाथ की बतौर राष्टï्रीय अध्यक्ष दुबारा ताजपोशी हुई तो जेटली व राजनाथ के संबंधों को सामान्य बनाने की दिशा में अरूण सिंह ने अपनी ओर से काफी प्रयास किए।
शुरूआत में अरूण सिंह ही जेटली व राजनाथ के दरम्यान संवादी की भूमिका अदा करते थे, पर बाद में दोनों नेताओं के रिश्ते सामान्य होते चले गए। अरूण सिंह से संबंध बनाए रखना एक तरह से जेटली की राजनैतिक मजबूरी भी बन गई थी क्योंकि वे राजनाथ के सबसे करीबी व्यक्ति और उनके राजनैतिक सलाहकार सुधांशु त्रिवेदी को फूटी आंख पसंद नहीं करते। लिहाज़ा उन्हें अपने पार्टी अध्यक्ष से संवाद स्थापित रखने के लिए यूं ही एक लिंक मैन चाहिए था। पर मथुरा को लेकर अरूण सिंह की सियासी डगर इतनी आसान नहीं, क्योंकि स्वयं नरेंद्र मोदी मथुरा लोकसभा क्षेत्र से भाजपा के टिकट पर हेमा मालिनी को उतारना चाहते हैं। मोदी का मानना है कि मथुरा जाट और ब्राह्मïण बाहुल्य सीट है, हेमा स्वयं ब्राह्मïण हैं और उनके पति धर्मेंद्र एक जट सिख, सो इन दोनों जातियों का वोट हेमा का थोक भाव में मिल सकते हैं। मथुरा में मोदी अपनी एक बड़ी राजनीतिक रैली भी करना चाहते हैं। वहीं भाजपा के मीडिया सेल के हेड श्रीकांत शर्मा जो स्वयं मथुरा से हैं और अरूण जेटली के बेहद करीबियों में शुमार होते हैं, वे भी मथुरा लोकसभा सीट से चुनाव लडऩे के इच्छुक हैं। वहीं संघ नेतृत्व देवेन्द्र शर्मा की उम्मीदवारी को लेकर गंभीर है। 2012 के यूपी विधानसभा चुनाव में शर्मा मथुरा विधानसभा सीट से बेहद मामूली वोटों के अंतर से हार गए थे। संघ के प्रमुख नेता डा. कृष्ण गोपाल भी मथुरा के ही बाशिंदे हैं, सो यहां के भाजपा उम्मीदवार को लेकर उनकी बेहद साफ प्राथमिकताएं हैं, एक तो उम्मीदवार ब्राह्मïण हो, लोकल हो और संघ की पृष्ठïभूमि वाला हो। जाहिर है अरूण सिंह इस खांचे में फिट नहीं आते हैं।
Posted on 31 August 2013 by admin
ओमप्रकाश चौटाला और भाजपा के दरम्यान एक नई खिचड़ी पकने लगी है। अभी पिछले दिनों गुड़गांव के मेदांता अस्पताल में स्वास्थ्य लाभ कर रहे बड़े चौटाला को भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह का एक सरप्राइा फोन गया। राजनाथ ने इच्छा जताई कि आने वाले लोकसभा चुनाव में हरियाणा में भाजपा अपने गठबंधन में चौटाला की इनेलोद को भी रखना चाहती है। राजनाथ ने चौटाला को एक फॉर्मूला दिया है कि अगर भाजपा, चौटाला व कुलदीप तीनों मिलकर लड़ें तो प्रदेश में कांग्रेस का सूफड़ा साफ हो सकता है। इस फॉर्मूले के मुताबिक भाजपा और इनेलोद चार-चार और कुलदीप बिश्नोई दो लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ सकते हैं। चौटाला ने यह जानना चाहा कि विधानसभा चुनावों में कौन सा समीकरण काम करेगा तो राजनाथ ने एक तरह से इशारा दिया है कि विधानसभा चुनाव में भाजपा इनेलोद को अपना बड़ा पार्टनर मान सकती है।
Posted on 17 August 2013 by admin
सीबीआई और आईबी के दरम्यान तनी तलवारें यथावत हैं। दोनों ही एजेंसियां इसे वापिस म्यान में रखने को रााी नहीं। अब तो यह खींचतान कहीं नीचे के लेवल पर भी देखने को मिल रही है। आज की तारीख में आईबी के पास सीबीआई अफसरों के खिलाफ तमाम खबरों से सजे डॉसियर तैयार हो रहे हैं। वक्त-वक्त पर उन्हें अपडेट किया जा रहा है, और सीबीआई से त्रस्त और उससे नाराा लोग आईबी को सारी सूचनाएं गुपचुप तरीके से पहुंचा रहे हैं? सूत्र बताते हैं कि आईबी में इस बात को लेकर खासा गुस्सा है कि आईबी के स्पेशल डायरेक्टर राजेंद्र कुमार से पूछताछ के बहाने सीबीआई के अफसर आईबी के ‘इनक्रिप्टिंग कोड’ (कूटनीतिक भाषा) का सारा मैनुअल लेकर चले गए हैं। यानी अब तक गुजरात में फील्ड से क्या-क्या सूचनाएं आईं थीं, इंफॉर्मर कौन-कौन थे, उन्हें इन सूचनाओं की एवज में कितना भुगतान किया गया, इन तमाम बातों को, बयानों को सीआरपीसी की धारा 161 के तहत नोट कर लिया गया है। यानी अब इन्हें कोई भी देख सकता है, कोर्ट के मांगने पर इससे संबंधित बयान भी देने पड़ेंगे, यानी देश की तमाम खुफिया जानकारियां सार्वजनिक होने की कगार पर हैं। अब आईबी के एक और डीसीपी का मामला सामने आने वाला है। इन्हें हालिया दिनों में पुलिस ने सम्मन जारी कर पूछताछ के लिए बुलाया था, यानी आईबी बनाम सीबीआई की जंग इतनी जल्दी थमने वाली नहीं।
Posted on 10 August 2013 by admin
इसी कॉलम में पहली बार यह खबर ब्रेक हुई कि कैसे पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल वी.के.सिह सोनिया गांधी के खिलाफ रायबरेली संसदीय सीट से भाजपा की टिकट पर मैदान में उतरने का मन बना रहे हैं। गडकरी व राजनाथ से इस बारे में जनरल की कई दौर की बैठक हो चुकी हैं। अब इस शनिवार को जनरल सिंह की पत्नी एक विशेष विमान से लखनऊ के लिए उड़ीं और लखनऊ से हेलिकॉटर द्वारा वह रायबरेली पहुंची। मैडम सिंह के वहां जाने का घोषित कार्यक्रम एक क्षत्रिय संगठन द्वारा उन्हें सम्मानित करने का था। पर सूत्र बताते हैं कि मैडम सिंह की इस यात्रा का असली उद्देश्य रायबरेली की सियासी लहरों का उफान गिनने का था। अगर रायबरेली में सिंह परिवार को अपने लिए उपयुक्त माहौल लगेगा तब ही जनरल वहां से मैदान में उतरेंगे, नहीं तो सोनिया के खिलाफ वे अपनी पत्नी के लिए भगवा टिकट की डिमांड कर सकते हैं।