Posted on 07 August 2012 by admin
करूणापुत्र के बाद अब उनकी पुत्री की दास्तां। 2जी व तिहाड़ से सुर्खियों की रानी बनीं कनिमोझी की राज्यसभा टर्म अप्रैल 2013 में खत्म हो रही है। सो, पिछले दिनों वे इस बारे में बात करने अपने पिता के पास पहुंची तो पिता की ओर से उन्हें यह आश्वासन प्राप्त हुआ कि उन्हें परेशान होनी की कोई जरूरत नहीं है। उनकी प्रासंगिकता राष्ट्रीय राजनीति में बनी रहेगी। सो, अब जाकर डीएमके ने यह तय कर लिया है कि कनिमोझी अब राज्यसभा की बजाए नगरकोइल संसदीय सीट से 2014 का चुनाव लड़ेंगी। सनद रहे कि इस संसदीय सीट पर डीएमके का खासा प्रभाव है। और यहां बड़ी तादाद में नाडर जाति के वोट भी हैं, जिससे कनि की जीत ज्यादा आसान हो सकती है।
Posted on 01 August 2012 by admin
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Posted on 25 July 2012 by admin
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Posted on 09 July 2012 by admin
इस 2 जुलाई को जब भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी ने नई दिल्ली के अशोक होटल में अपने पुत्र सारंग की शादी का रिसेप्शन दिया तो यह समारोह एक बड़े शक्ति परीक्षण के शो में तब्दील हो गया। तमाम राजनैतिक दलों के दिग्गजों का जमावड़ा जुटा। सुब्रत राय और मुकेश अंबानी जैसे बड़े कारपोरेट दिग्गजों की उपस्थिति भी हैरान करने वाली थी। मुंबई के ज्यादातर बड़े उद्योगपति गडकरी पुत्र के विवाह के दिन यानी 24 जून को नागपुर में ही अपनी हाजिरी लगा आए थे। पर उस रोज मुकेश अंबानी चाहकर भी नागपुर न आ पाए क्याेंकि उन्हें नीता अंबानी के नजदीकी रिश्तेदार की शादी में शामिल होने के लिए मुंबई से कहीं बाहर जाना पड़ा था। सो 2 तारीख के रिसेप्शन में शामिल होने के लिए मुकेश अंबानी को खास तौर पर दिल्ली आना पड़ा।
Posted on 02 July 2012 by admin
छोटे कद के संगमा ने मुल्क के समक्ष हमेशा बड़ी चुनौतियां उछाली हैं, बड़े सवाल खड़े किए हैं। सो, उनका यूं प्रणब दा को चुनौती देना कांग्रेस को अब भी किंचित रास नहीं आ रहा। कांग्रेसी रणनीतिकार अब भी इस बात के लिए पूरा दम लगा रहे हैं कि येन-केन-प्रकरेण संगमा अपनी उम्मीदवारी वापिस ले लें। कांग्रेस की एक चिंता और भी है उसे माया और मुलायम में उतना भरोसा नहीं कि पलटने में माहिर ये दोनों सियासतदां आखिरी वक्त पर कुछ यूं न पलट जाएं। सो, नार्थईस्ट के तमाम कांग्रेसी नेता संगमा से संपर्क बनाए हुए हैं। अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री इन तमाम कोशिशों के सिरमौर बने हुए हैं। अरुणाचल के सीएम ने अभी पिछले दिनों संगमा से बात की और कहा, ‘अगर वे (संगमा)तैयार हैं तो सोनिया जी से बात हो सकती है कि कैसे आपको देश का अगला उपराष्ट्रपति बनाया जा सके।’
Posted on 25 June 2012 by admin
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Posted on 18 June 2012 by admin
बतौर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी नहीं चाहते थे कि राष्ट्रपति चुनाव में प्रत्याशी को लेकर इतना बखेड़ा खड़ा हो जाए कि मध्यावधि चुनाव की नौबत आ जाए। समझा जाता है कि इस मुद्दे पर गडकरी की नरेंद्र मोदी से भी बात हुई और कमोबेश मोदी की भी यही लाइन थी कि गुजरात चुनाव से पहले देश में मध्यावधि चुनाव नहीं होने चाहिए। जबकि भाजपा के लौहपुरुष अडवानी और उनसे जुड़े नेतागण चाहते थे कि होना है तो अभी ही देश में मध्यावधि चुनाव हो जाएं, ताकि एक बार फिर से अडवानी के नेतृत्व में चुनाव लड़ा जा सके, क्योंकि अब तक मोदी बतौर पीएम कैंडीडेट प्रोजेक्ट नहीं हो पाए हैं और इतनी जल्दी चुनाव हो गए तो उनका पीएम कैंडीडेट प्रोजेक्ट हो पाना निहायत ही मुश्किल होगा और ऐसे में बाजी अडवानी के हाथों में होगी। पर लगता है अडवानी कैंप के इन मंसूबों की हवा निकल गई।
Posted on 22 April 2012 by admin
नरेंद्र मोदी व शरद पवार में इस बात को लेकर गजब की एकजुटता है, कि चाहे किसी भी कीमत पर हो कपास के निर्यात को खोला जाए, हालांकि ये दोनों नेता द्वय इसके लिए किसानों के हक की दुहाई दे रहे हैं, सच तो यह है कि कपास के लिए जितना निर्यात लक्ष्य रखा गया था उससे डेढ़ गुना ज्यादा निर्यात हो चुका है, वह भी एक व्यक्ति द्वारा एक ही देश को। यह व्यक्ति है एक गुजराती बिजनेसमैन भद्रेश शाह, जो मोदी व पवार के बेहद करीबी है। और वह देश है चीन। भारत के कपड़ा उत्पादक उद्योग इस बात को लेकर खासा चिंतित है कि कहीं उन्हें सूत चीन से महंगे दामों पर न खरीदना पड़ जाए।
Posted on 22 April 2012 by admin
यूपी के मुद्दे पर हुई कांग्रेस की चिंतन बैठक में राहुल गांधी ने साफ कर दिया था कि वे कांग्रेसी नेताओं की ‘अकाऊंटिबिलिटी फिक्स’ करेंगे। यानी यूपी चुनाव में जिन कांग्रेसी नेताओं के पास दायित्वों वाले ओहदे थे, उन पर सचमुच तलवार लटक रही है। इस कड़ी में दिग्विजय सिंह भी प्रभारी पद से हटाए जा सकते हैं, रीता बहुगुणा जोशी की जगह एक नए प्रदेश अध्यक्ष की तलाश जारी है। श्रीप्रकाश जायसवाल कैंपेन कमेटी तो राजबब्बर मीडिया कमेटी के प्रभारी थे, इनकी छुट्टी भी तय है।
Posted on 22 April 2012 by admin
कांग्रेस के अंदर बदलाव की बयार बहने लगी है। यूपी चुनाव ने राहुल गांधी को सियासत का एक नया ककहरा सिखा दिया है। राहुल की पुरानी राजनैतिक शैली में दो राजनैतिक विशेषज्ञों जोया हसन और सुधा पई का खासा दखल था, इनकी राजनैतिक सलाहों पर राहुल कहीं ज्यादा कान धरते थे। सारे डाटा इकट्ठा कर उसे कंप्यूटर में डाला जाता था और उसका विश्लेषण होता था। जो जमीनी नेता राहुल के समक्ष अपनी बात रखना भी चाहते थे उन्हें कह दिया जाता था कि वे राहुल कार्यालय को पहले ही बातचीत का ‘प्वाइंट’ बना कर भेज दें और उन्हें राहुल से जो भी कहना है बेहद संक्षिप्त में कहें। पहले तो ऐसे नेताओं को राहुल का समय भी बमुश्किल से मिलता था, अब राहुल ऐसे लोगों को ढूंढ-ढूंढ कर बुला रहे हैं। सोनिया-राजीव के पुराने वफादारों को भी अब राहुल तरजीह देने लगे हैं, उनकी बातों व सलाहों पर अमल करने लगे हैं। सोनिया के राजनैतिक सचिव पटेल से भी पिछले कुछ दिनों में राहुल की तीन दौर की लंबी वार्ता हो चुकी है। यानी कांग्रेस को बदलने के लिए राहुल खुद को बदल रहे हैं।