Archive | November, 2020

… और अंत में

Posted on 09 November 2020 by admin

अगर भाजपा बिहार हारती है तो इसका सीधा असर पश्चिम बंगाल चुनाव पर भी पड़ सकता है, क्योंकि पिछले चुनाव में भाजपा बंगाल की अधिकांश वे सीटें जीत गई थी, बंगाल के जो क्षेत्र बिहार से लगते थे, गोरखा जनमुक्ति मोर्चा भी अलग गोरखालैंड की मांग फिर से बुलंद करते भाजपा का साथ छोड़ गए हैं यानी दार्जिलिंग की तमाम सीटों पर भी भाजपा को अब नाको चने चबाने पड़ सकते हैं। अगर भाजपा बिहार के बाद बंगाल में भी मुंह की खाती है तो इसका सीधा असर यूपी के 2022 के चुनावों पर भी पड़ सकता है।

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घर का भेदी कांग्रेस में

Posted on 09 November 2020 by admin

ऐसा होना क्या महज़ इत्तफाक है कि जब भी कोई महत्वपूर्ण चुनाव हो रहा होता है तो कांग्रेस के किसी बड़े नेता का बेतूका बयान चुनाव की धारा बदल देता है, गुजरात विधानसभा चुनाव में भी तब तक भाजपा की हालत पतली थी जब तक कि मणिशंकर अय्यर का वह बेतुका बयान सामने नहीं आया था, 2014 के आम चुनावों में भी अय्यर और जयराम रमेश ने मिल कर यही काम किया था। अब जबकि बिहार में सुप्तप्रायः कांग्रेस को तेजस्वी का साथ पाकर एक नया जीवन मिला है, गांधी परिवार के वफादार पी चिदंबरम बिहार चुनाव के ऐन दौर में अपना मुंह खोल देते हैं और कहते हैं कि ’जम्मू-कश्मीर में धारा 370 की पुनर्बहाली हो।’ यह एक आत्मघाती बयान है, जिसका सीधा कनेक्शन हिंदू भावनाओं से जुड़ा है। सनद रहे कि ये वही चिदंबरम हैं जो रामसेतु मुद्दे पर हिंदू आस्था के प्रतीक भगवान राम को एक काल्पनिक चरित्र बता गए थे। अब खुलासा हो रहा है कि चिदंबरम ने जांच एजंसियों के दबाव में आकर ऐसा भड़काऊ बयान दिया है। वैसे भी चिदंबरम की कुछ अहम फाईलों पर सीबीआई, ईडी और आईबी कुंडली मार कर बैठीं हैं, शायद इसीलिए चिदंबरम भगवा आकांक्षाओं के हाथों में खेल रहे हैं।

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95 का हुआ संघ, पर जवां हैं रंग

Posted on 09 November 2020 by admin

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पिछले सप्ताह 95 वर्ष का हो गया है, पर उसकी उम्मीदें, चेहरा-मोहरा इतना जवान कभी नहीं दिखा। आप यूं भी कह सकते हैं कि संघ का यह स्वर्णिम काल है। इसकी स्थापना 1925 के दशहरा में, नागपुर की धरती पर एक पूर्व कांग्रेसी डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने किया था। आज संघ दुनिया के सबसे बड़े स्वैच्छिक संगठनों में शुमार हो गया है, क्योंकि आज की तारीख में इसके सदस्यों की संख्या 80 लाख से ज्यादा बताई जाती है, देश और देश से बाहर लगने वाली इसकी शाखाओं की संख्या 60 हजार पार कर गई है। इसके आनुशांगिक संगठनों की संख्या भी 30 है, इसका एक अंग विद्या भारती भी देश में 14 हजार से ज्यादा स्कूल चलाता है, वहीं सरस्वती शिशु मंदिर के अंतर्गत 25 हजार से ज्यादा स्कूल चलते हैं, संघ एक नई परिकल्पना ’एकल विद्यालय’ के साथ सामने आया था, जिसमें एक अकेला शिक्षक ऐसे स्कूलों को चलाता है, देश भर में एकल विद्यालय की संख्या 1 लाख के आंकड़े को पार कर गई है। असम और त्रिपुरा जैसे राज्यों में भाजपा की जड़ें जमाने में संघ का एक महत्वपूर्ण योगदान माना जाता है। इस वक्त संघ के कई प्रचारक मुख्यमंत्री और विभिन्न राज्यों के राज्यपालों की गद्दी पर काबिज हैं, स्वयं प्रधानमंत्री मोदी संघ के पुराने प्रचारकों में शुमार होते हैं। कहा जाता है कि इस दफे के बिहार विधानसभा चुनाव में दर्जनों भाजपा प्रत्याशियों को संघ की अनुशंसा पर टिकट मिले हैं। भाजपा के हालिया सांगठनिक फेरबदल में नए पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा की टीम बनाने में संघ प्रचारक और पार्टी के संगठन महामंत्री बीएल संतोष की सबसे अहम भूमिका मानी जा रही है। पश्चिम बंगाल के आसन्न विधानसभा चुनाव को देखते हुए संघ का कैडर वहां वर्षों पहले से सक्रिय हो गया था, शायद इसीलिए संघ से बाहर के लोगों के लिए भाजपा में टिके रहना इतना आसान नहीं।

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ताज बचाने में लगे हैं महाराज

Posted on 09 November 2020 by admin

मध्य प्रदेश के 28 सीटों के उप चुनाव महाराज यानी ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए परेशानियों का नए सबब बन गए हैं, एक बार तो वे रूठ कर दिल्ली स्थित अपने घर में कैद हो गए थे, अब बाहर निकले हैं और अपने वफादारों के लिए चुनाव में ऐड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं तो उनका दर्देदिल बाहर आ रहा है। अपने करीबी पत्रकार मित्रों से बातचीत में वे अपने दिल का हाल बयां करते हुए कह रहे हैं कि जब तक वे कांग्रेस में थे तमाम चुनावी पोस्टरों पर राहुल गांधी के बराबर में बस उन्हीं की तस्वीर लगती थी, कमलनाथ और दिग्विजय सिंह जैसे बड़े नेताओं की तस्वीरों के साइज भी उनकी तस्वीर से छोटे हुआ करते थे, जब से भाजपा में आए हैं एक पोस्टर पर दर्जनों अंडाकार वृत्त में तस्वीरें होती हैं, जिनमें से एक चेहरा उनका भी होता है। जबकि भाजपा के कई पोस्टरों से तो उनका चेहरा भी नदारद हो जाता है, जहां केवल मोदी, शाह और शिवराज के चेहरे पोस्टरों में प्रमुखता से छापे जाते हैं। ग्वालियर संभाग में तो उनके वफादार उनका ख्याल जरूर रख लेते हैं पर लगता है पार्टी की प्रदेश इकाई को उनकी इतनी परवाह नहीं। सूत्रों की मानें तो मध्य प्रदेश के उप चुनावों में कांग्रेस भाजपा को कड़ी टक्कर दे रही है, पर शिवराज को अपनी सरकार बचाने के लिए मात्र नौ सीटों की जरूरत है, लगता है भाजपा यह आंकड़ा आसानी से छू पाएगी। माना जाता है कि सिंधिया के अब भी राहुल और सोनिया से अच्छे ताल्लुकात हैं, उनकी असल समस्या कमलनाथ और दिग्विजय को लेकर है और वैसे भी सियासत अबूझ संभावनाओं का खेल है, कौन कब पलटी मार जाए कहना मुश्किल है।

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बिहार में बदलाव की हवा परवान पर

Posted on 09 November 2020 by admin

’तपती धूप में, भूखे अपने घरों के लिए जब वे मीलों चले होंगे
तब मन की आग भभकी होगी, संकल्प नए इरादों में ढले होंगे’

जम्हूरियत का अंदाजे़बयां भी निराला है, दोस्त कब दुश्मन बन जाए, दुश्मनों से कब हाथ मिलाने पड़ जाए, कुछ मालूम नहीं। 2010 की एक जनसभा में नीतीश कुमार कहते हैं ’जब बिहार में सुशील मोदी हैं तो यहां किसी दूसरे मोदी की जरूरत नहीं है।’ यहां तक कि अपनी मेहमानवाजी में होने वाले एनडीए के डिनर को भी उन्होंने पटना में सिर्फ इसीलिए रद्द कर दिया था क्योंकि उसमें गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी शामिल होने वाले थे। जब भाजपा ने 2013 में नरेंद्र मोदी को अपना पीएम फेस घोषित किया तो नीतीश ने भाजपा से अपने सारे रिश्ते-नाते तोड़ लिए। पर अब वही सुशासन बाबू न केवल मोदी के साथ स्टेज शेयर कर रहे हैं बल्कि मोदी की मौजूदगी वाली रैलियों में खुलेआम कह रह हैं कि ’यदि एनडीए दोबारा सत्ता में आती है तो मोदी यह सुनिश्चित करेंगे कि बिहार विकसित राज्य बने।’ भाजपा को भी कहीं गहरे यह अहसास है कि इस बार नीतीश के नेतृत्व में एनडीए के लिए बिहार की राह आसान नहीं, चुनांचे इसीलिए भाजपा रणनीतिकारों ने अभी से ’प्लॉन बी’ पर काम करना शुरू कर दिया है, इसका तात्पर्य यह है कि बिहार में एनडीए हारे या जीते पर नीतीश कुमार बिहार के सीएम नहीं होंगे। लेकिन भाजपा नीतीश को ठंडे बस्ते में भी नहीं डालना चाहती, क्योंकि उसे इस बात का भी इल्म है कि नीतीश के बगैर बिहार में 2024 का चुनाव आसान नहीं होगा। भाजपा से जुड़े विश्वस्त सूत्र खुलासा करते हैं कि बिहार चुनाव का अंजाम चाहे कुछ भी हो, पर नीतीश का केंद्रनीत सरकार में मंत्री बनना तय है, और उन्हें रेल जैसे किसी महत्वपूर्ण मंत्रालय से नावाजा जा सकता है जिससे वे एनडीए छोड़ कर कहीं तेजस्वी से गलबहियां न कर बैठें।

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