Posted on 07 May 2018 by admin
सहारा समूह से जुड़े पत्रकार उपेंद्र राय को जब से सीबीआई ने गिरफ्तार किया है, इस मामले की रोज-बेरोज नई परतें खुल रही है। माना जा रहा है कि उपेंद्र राय के बहाने कार्ति व पीसी चिदंबरम को साधने की बाजीगरी हो रही है, इस बहाने टूजी मामले के जिन्न को फिर से बोतल से बाहर निकाला जा सकता है। सूत्रों की मानें तो पत्रकार राय के पास तकरीबन 800 करोड़ की संपत्ति होने का दावा किया जा रहा है, इसमें इनकी 30 से ज्यादा लक्जरी गाडि़यों का काफिला भी शामिल बताया जा रहा है, सूत्र बताते हैं कि उपेंद्र राय के पास से सरकारी विभागों से जुड़े सैंकड़ों डॉसियर, उनकी सर्विस फाइलों की बरामदगी की गई है, वैसे भी राय पिछले काफी समय से न सिर्फ ईडी के निषाने पर थे, बल्कि उन्हें सीबीआई की अनवांटेड लोगों की सूची में भी शामिल बताया जा रहा था। (एनटीआई-gossipguru.in)
Posted on 07 May 2018 by admin
पत्थर मार के जैसे किसी ने नारंगी सूरज के कर दिए हैं टुकड़े-टुकड़े, जमीं का ज़र्रा-ज़र्रा जैसे गेरूआ रंग से नहाया हुआ है। वक्त बदला, दिल्ली का निज़ाम बदला तो सियासी मंसूबे और दस्तूर भी बदल गए, संघ इतना शक्तिशाली कभी न था, जितना आज दिख रहा है, चुनांचे भगवा विचारकों को अब इसके ’डॉक्यूमेंटेशन’ की चिंता बेतरह सताने लगी है। जब तक दिल्ली के निज़ाम पर कांग्रेसी झंडा बुलंद रहा और कांग्रेस जाहिरा तौर पर लेफ्ट सेंटर की राजनीति करती रही, वामपंथी विचारधारा के इतिहासकारों ने मार्क्स को भारतीयता के जुमले में उतार दिया, हमारे इतिहास व साहित्य के पुस्तकों के हरफ लाल रंगी होते चले गए। जब से केंद्र में मोदी युग का अभ्युदय हुआ है, संघ और भाजपा ने लाल विचारों को भगवा रंग में रंगने के प्रयास शुरू कर दिए हैं, सनद रहे कि उस वक्त जहां केंद्र में अटल बिहारी के नेतृत्व वाली एनडीए की पहली-दूसरी सरकार बनी तो हिंदी के एक जाने-माने पत्रकार दीनानाथ मिश्र की निगरानी में इस हेतु एक कमेटी का गठन किया गया था और जाने-अनजाने मिश्र को भाजपा व संघ से जुड़े ’डॉक्यूमेंटेशन’ का कार्य सौंपा गया था। तब इस प्रोजेक्ट में करोड़ों रुपए खर्च हुए पर इसके वांछित परिणाम सामने नहीं आ सके। मिश्र के नेतृत्व व निगरानी में तब नीतीश भारद्वाज ने भगवा विचारों के प्रतिपादन के लिए एक फिल्म भी बनाई थी जिसका बकायदा दिल्ली में ’प्रिव्यू’ भी रखा गया था, पर भगवा विचारकों को इस फिल्म में कई कमिया नज़र आ रही थीं, भारद्वाज से इसे ’रीशूट’ करने को कहा गया,पर इतनी वैचारिक रफ्फूगिरी के बाद भी बात नहीं बनी और संघ की यह महत्वाकांक्षी फिल्म ठंडे बस्ते के हवाले हो गई। अब नव सांस्कृतिकवाद के नए मिथक गढ़ने के लिए संघ ने बाहुबली फिल्म के चर्चित राइटर केवी विजेंद्र प्रसाद से अपने ऊपर एक मेगा बजट फिल्म बनाने को कहा है, सूत्र बताते हैं कि इस फिल्म का बजट कोई 180 करोड़ रुपयों के आसपास रखा गया है, इसके अलावा बॉलीवुड के कई नामचीन डायरेक्टर मोदी, संघ और भाजपा से प्रेरित होकर बड़ी फिल्मों का निर्माण कर रहे हैं, जिसमें जे ओमप्रकाश मेहरा मोदी के जीवन पर जो फिल्म बना रहे हैं उसका सबको इंतजार है। कई स्वतंत्र फिल्म निर्माताओं से कहा गया है कि वे इस आशय की फिल्म बनाए, ऐसी फिल्मों की फंडिंग के लिए कई मंत्रालयों ने अपने दरवाजे खोल रखे हैं। इसके अलावा नए सिरे से इतिहास लेखन के कार्य भी प्रगति पर है। सो, आने वाले दिनों में देश की सूरतेहाल बदले न बदले इसके अंदाजेबयां का अंदाज और मिजाज तो यकीनन बदल जाएगा।
Posted on 07 May 2018 by admin
दिल्ली के दयाल सिंह (सांध्य) कॉलेज का नाम बदलने को लेकर भाजपा के अंदर ही तूफान मचा है, सनद रहे कि संघ विचारक और भाजपा के पूर्व प्रवक्ता अमिताभ सिन्हा ने जो दयाल सिंह कॉलेज की गवर्निंग कमेटी के चैयरमैन भी हैं, उन्होंने इस कॉलेज का नाम बदलकर वंदेमातरम दयाल सिंह कॉलेज कर दिया। जिसका केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने तीव्र विरोध करते हुए कहा कि ’चाहे जो हो जाए इस कॉलेज का नाम नहीं बदला जाएगा।’ भाजपा व संघ के अंदर से ही सवाल उठने लगे हैं कि जावड़ेकर इस बात को लेकर इतनी हाय-तौबा क्यों मचा रहे हैं, जबकि यह कवायद कॉलेज का नाम बदलने की नहीं, बस उसके नाम के पहले वंदेमातरम जोड़ने की है। सूत्र बताते हैं कि जावड़ेकर से ऐसे बयान दिलवाने के पीछे केंद्रीय राज्य मंत्री हरसिमरत कौर बादल का हाथ माना जा रहा है जो यह नहीं चाहतीं कि दयाल सिंह कॉलेज के संस्थापक सरदार दयाल सिंह मजीठिया की विरासत से कोई छेड़छाड़ हो, सनद रहे कि सरदार दयाल सिंह अपने जमाने में एक प्रमुख समाज सुधारकों में शुमार होते थे, उन्होंने न सिर्फ शिक्षा के क्षेत्र में कई क्रांतिकारी बदलावों को परवान चढ़ाया, बल्कि कई स्कूल-कॉलेजों की स्थापना की, द् ट्रिब्यून अखबार और पंजाब नेशनल बैंक के भी वे संस्थापक थे। सूत्र बताते हैं कि हरसिमरत दयाल सिंह मामले को हवा देकर अपने भाई विक्रम सिंह मजीठिया की छवि पर आई आंच पर पानी डालना चाहती हैं, चूंकि विक्रम सिंह मजीठिया को दयाल सिंह के परिवार से बताया जाता रहा है। चुनांचे भाई-बहन इस छवि की जोत में रौषन होना चाहते हैं।