Posted on 13 November 2017 by admin
आम तौर पर गुजरात से जुड़े सियासी मसलों पर एकछत्र वर्चस्व रखने वाले कांग्रेसी दिग्गज अहमद पटेल का तिलिस्म क्या टूट रहा है? नहीं तो क्या वजह थी कि पाटीदार नेता हार्दिक पटेल से पंचायत फरियाने का जिम्मा राहुल ने कपिल सिब्बल को सौंप दिया है। यह कोई छुपी बात नहीं कि ऐसे मामलों में सिब्बल का ट्रैक रिकार्ड सिफर ही रहा है, लोग भूले नहीं होंगे जब जून 2011 में अन्ना आंदोलन के दौरान कथित रूप से नई दिल्ली स्थित क्लेरिजेज होटल में यूपीए सरकार में पॉवरफुल मंत्री कपिल सिब्बल ने सरकार और कांग्रेस की ओर से बाबा रामदेव, बालकृष्ण और देवेंद्र शर्मा के साथ पंचायत करनी चाही, पर वह बातचीत भी तीखे मोड़ पर आकर टूट गई थी, क्योंकि सिब्बल ने कथित तौर पर तब बाबा रामदेव को अपने वकीली अंदाज में डपट दिया था, नाराज़ बाबा और उनके लोग फौरन यह बातचीत अधबीच छोड़ कर चले गए थे, और इसके बाद उसी रात को रामलीला ग्राउंड में पुलिसिया कहर कैसे बाबा पर टूटा यह सबने देखा। नहीं तो हार्दिक व राहुल के बीच गुजरात चुनाव को लेकर एक निर्णायक सहमति बन चुकी थी, पेंच सिर्फ आरक्षण के प्रतिशत को लेकर फंसा था, पर जब से सिब्बल ने इस बातचीत की कमान संभाली है हार्दिक शिवसेना से छूट चुके अपने पुराने रिश्तों को भी खंगाल रहे हैं।
Posted on 07 November 2017 by admin
कर्नाटक बीजेपी ने भी अपना नया योगी आदित्यनाथ ढूंढ लिया है। मंगलोर के वज्रादेही मठ के राजा शेखर नंद स्वामी ने भी पिछले काफी समय से कर्नाटक में घर वापसी, लव जेहाद व स्लॉटर हाउस के खिलाफ अभियान छेड़ रखा है। इस वर्श जब इस स्वामी ने दक्षिण के ईसाइयों की घर वापसी करा उनका धर्मांतरण करवाया तो वे काफी चर्चा में आ गए। यह स्वामी हार्डलाइन हिंदुत्व के नए ब्रांड एंबेसडर बनकर उभरे हैं। उड्डुपी, मंगलोर और इसके आस पास के इलाकों में इस स्वामी का खासा प्रभाव देखा जा सकता है, जिनके राजनीति में आदर्श ही योगी आदित्यनाथ हैं और वे अपने आदर्श के पदचिन्हों पर चलते एक दिन कर्नाटक का मुख्यमंत्री बनने का सपना देख रहे हैं।
Posted on 07 November 2017 by admin
हिमाचल प्रदेश में भगवा आकांक्षाएं कुलांचे भर रही है, पार्टी इस चुनाव में अपनी जीत के प्रति आश्वस्त जान पड़ती हैं, पर यहां कुछ तो है जो पार्टी सिरमौर अमित शाह को लगातार परेशान कर रही है। वह है भाजपा के अंदर भीतरघात और गुटबाजी की बढ़ती प्रवृत्ति। अब से पहले तक भाजपा यहां तीन खेमों में स्पष्ट तौर पर बंटी नज़र आ रही थी। धूमल, नड्ढा और शांता कुमार के खेमों में। शांता कुमार पार्टी नेतृत्व की उपेक्षाओं से खासे आहत हैं, उनके करीबियों के थोकभाव में टिकट कट गए हैं। जेपी नड्ढा को पूरी उम्मीद थी कि हिमाचल के अगले सीएम वही होंगे, पर ऐन वक्त भाजपा के सीएम कैंडिडेट के तौर पर प्रेम कुमार धूमल का नाम अनाऊंस होने से वे सकते में हैं। पर सूत्र बताते हैं कि उन्हें मना लिया गया है। धूमल पुत्र अनुराग ठाकुर किंचित इस बात को लेकर बेहद नाराज़ थे कि तमाम उम्मीदों के बाद भी उन्हें केंद्र में मंत्री नहीं बनाया गया। सो, लगे हाथ धूमल गुट इन कयासों को हवा दे रहा था कि भाजपा की ओर से एक राजपूत सीएम (धूमल) प्रोजेक्ट नहीं किए जाने से प्रदेश के 37 फीसदी राजपूत मतदाता कमल पार्टी से नाराज़ हैं और वे वीरभद्र सिंह यानी कांग्रेस की ओर जा सकते हैं। चुनांचे जो भाजपा हाईकमान हिमाचल में अपना कोई सीएम उम्मीदवार घोषित करने के पक्ष में नहीं था, उसे अपनी रणनीति बदलने पर मजबूर होना पड़ा।
Posted on 07 November 2017 by admin
हिमाचल की पालनपुर विधानसभा सीट एक वीआईपी सीट में शुमार हो गई है, क्योंकि इस सीट से भाजपा की प्रदेश महिला मोर्चा अध्यक्ष इंदु गोस्वामी मैदान में हैं। विश्वस्त सूत्र बताते हैं कि इंदु गोस्वामी का नाम पहली लिस्ट में नहीं था, संसदीय बोर्ड में आकर शायद इसी वजह से यह लिस्ट तीन दिनों तक अटकी रही। इसके पश्चात जब स्वयं पीएम ने प्रदेश चुनाव समिति की बैठक में हिस्सा लिया तो उन्होंने बेहद भोलेपन से यह जानना चाहा कि पार्टी ने कितनी महिला उम्मीदवारों को टिकट दिए हैं, पेंच फंस गया। और अनायास ही इंदु गोस्वामी व अन्य कुछ महिला उम्मीदवारों के नाम लिस्ट में शामिल हो गए।
Posted on 07 November 2017 by admin
अब सवाल उठता है कि बैजनाथ की मूल निवासी इंदु गोस्वामी को शांता कुमार के गृह क्षेत्र पालनपुर से टिकट क्यों दी गई? जबकि यहां से लिस्ट में शांता के बेहद खासमखास और निवर्तमान विधायक प्रवीण शर्मा का नाम पहले से था। इंदु गोस्वामी उन दिनों से नरेंद्र मोदी से जुड़ी थीं जब मोदी हिमाचल के प्रभारी थे। बागी तेवरों से लैस शांता कुमार पर नकेल कसने के इरादे से ही उनके विश्वस्त का टिकट काट कर यहां से मोदी के विश्वस्त को मैदान में उतारा गया है। और सियासी दांव-पेंच का जरा आलम देखिए कि इंदु गोस्वामी को यहां से जिताने की जिम्मेवारी भी पार्टी हाईकमान ने शांता कुमार को ही सौंपी है। क्या ऐसा कर शीर्ष पुरूष ने शांता कुमार से अपना पुराना स्कोर सैटल किया है? सनद रहे कि 2002 के गुजरात दंगों के बाद शांता कुमार ने तब मोदी का खुला विरोध करते हुए कहा था कि मोदी की जगह वे सीएम होते तो अपना त्याग पत्र दे देते। लगे हाथ शांता ने अपना यह खुला पत्र मीडिया में भी जारी कर दिया था। चुनांचे आज की तारीख में शांता के भरोसेमंद प्रवीण शर्मा अपना टिकट कट जाने के बाद बतौर निर्दलीय यहां से अपनी किस्मत आजमा रहे हैं और भाजपा उम्मीदवार इंदु गोस्वामी की राहों में कांटे बिछा रहे हैं क्योंकि इंदु को अभी भी यहां बाहरी उम्मीदवार माना जा रहा है। कांग्रेस इस सीट से 7 बार चुनाव जीत चुकी है। सो, कांग्रेस ने यहां से विधानसभा अध्यक्ष बृज बिहारी लाल बुटैल के बेटे आशीष बुटैल को इंदु गोस्वामी के खिलाफ मैदान में उतारा है। आशीष पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं, पर उन्हें हराने के लिए भाजपा ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है।
Posted on 07 November 2017 by admin
हिमाचल चुनाव में भाजपा पिछले दो वर्षों से तन्मयता से जुटी थी। पार्टी रणनीतिकारों ने अपना सारा दांव महिला और युवा वोटरों पर लगाया था। सूत्र बताते हैं कि भाजपा ने पेड महिला कार्यकर्ताओं की एक बड़ी फौज इक्कट्ठी की थी, जिन्हें मासिक आधार पर भुगतान किया जाता था। वहीं हिमाचली युवाओं की एक बड़ी फौज को सोशल मीडिया में लगाया गया था। इस चुनाव में जाहिरा तौर पर भाजपा को इस बात का फायदा मिल रहा है, पर पार्टी के बड़े नेताओं की गुटबाजी भगवा उम्मीदों में जरूर सेंध लगा रही है। यहां के कांग्रेसी सीएम वीरभद्र सिंह पर भले ही भ्रष्टाचार के आरोप थोकभाव में लगते रहे हैं, पर सरकारी कर्मचारियों का एक बड़ा वर्ग अभी भी वहां कांग्रेस के पक्ष में दिख रहा है। हिमाचल के ऊपरी इलाके में कम्युनिस्टों ने मजबूती से पांव जमा लिए हैं, चुनांचे ये मुकाबले को त्रिकोणीय या बहुकोणीय बना सकते हैं। कई सीटों पर निर्दलीय भी मजबूत दिख रहे हैं। सो, भले ही हिमाचल में एडवांटेज भाजपा की स्थिति है, पर भगवा राह इतनी आसान भी नहीं है।
Posted on 07 November 2017 by admin
आम आदमी पार्टी की यह नियति बन गई है कि उन्हें बाहर कम, घर के अंदर ज्यादा जूझना होता है। नया मामला कुमार विश्वास का है, जो पार्टी में ओखला के विधायक अमानुल्ला की वापसी को लेकर खासे आहत हैं। कुमार इतने भरे बैठे हैं कि वे अपने पार्टी सिरमौर पर भी निशाना लगाने से नहीं चूक रहे, कुमार विश्वास भरे मन से हौले से कहते हैं-’यहां कोई लोकप्रिय नेता नहीं चाहता। पर मैं पार्टी नहीं छोड़ूंगा और इनकी छाती पर मूंग दलूंगा।’ जाहिर है कुमार योगेंद्र यादव या प्रशांत भूषण नहीं बनना चाहते, पर वे जो बनना चाहते हैं क्या अरविंद केजरीवाल उन्हें वह बनने देंगे?
Posted on 07 November 2017 by admin
पंजाब विधानसभा चुनाव में मुंह की खाने के बाद आम आदमी पार्टी ने तय किया था कि वह गुजरात का विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेगी। पर बदले परिदृश्य में आप ने गुजरात की 11 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार दिए हैं। जब इस बारे में किसी ने अरविंद केजरीवाल से उनका पक्ष जानना चाहा तो केजरीवाल का कहना था, ऐसा करना इसीलिए जरूरी था जिससे लोगों में यह संदेष न जाए कि आप और कांग्रेस में कोई मिलीभगत है।
Posted on 07 November 2017 by admin
कभी समाजवादी परचम के पर्याय माने जाने वाले अमर सिंह ने क्या अपनी राजनैतिक प्रतिबद्दता बदल ली है, समाजवाद के उनके हरे रंग पर क्या भगवा मुलम्मा चढ़ गया है? सूत्रों की मानें तो ठाकुर अमर सिंह भाजपा का दामन थामने के लिए बेकरार दिख रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक इस बार जब दिल्ली में संघ के हेडक्वाटर झंडेवालान स्थित केशवकुंज में दीपावली मिलन का कार्यक्रम आयोजित था तो अमर सिंह पूरे एक घंटे उसमें मौजूद थे, और उन्हें संघ के एक प्रमुख नेता कृष्ण गोपाल के आगे पीछे डोलता देखा जा सकता था।
(एनटीआई-gossipguru.in)
Posted on 07 November 2017 by admin
दक्षिण में तमिलनाडु की राजनीति एक दिलचस्प मोड़ पर पहुंच गई है, जयललिता के नहीं रहने से उत्पन्न एक बड़े सियासी शून्य को भरने के लिए, तमिल सिनेमा के तीन नायकों में कड़ा संघर्ष है। सबसे पहले बात करते हैं तमिल सुपर स्टार रजनीकांत की जिनकी सियासी आस्थाएं भगवा रंग में रंगी नज़र आती हैं, रजनी की आने वाली फिल्मों में उनका यह दक्षिण पंथी रूझान साफ तौर पर नज़र आ सकता है। सबसे दिलचस्प तो यह कि अभी तमिलनाडु को लेकर आईबी ने अपनी एक रिपोर्ट सौंपी है जिसमें कमल हासन और विजय के मुकाबले सीएम पद की रेस में रजनीकांत वहां के लोगों की पहली पसंद बनकर उभरे हैं। रही बात कमल हासन की तो उनका रजनी से दोस्ती व दुश्मनी का रिश्ता रहा है। रजनी को फिल्मों में लाने का श्रेय भी कमल हासन को जाता है, पर बाद के दिनों में दोनों के बीच रिश्तों में काफी तल्खी आ गई, पर एक बार फिर से दोनों पुराने दोस्त अब एक हो गए हैं। कमल हासन दक्षिण के दूसरे सबसे बड़े सुपर स्टार में शुमार होते हैं, पर उन्होंने अपनी राजनीति में भगवा विरोध को प्रमुख रखा है। कमल सियासत में अरविंद केजरीवाल जैसे जन संघर्षों से निकले नेताओं के मुरीद है, सो वे व्यवस्था विरोध का अलख जगाते आए हैं। कमल ने पर्यावरण को लेकर भी लगातार काम किया है। संघ व भाजपा पोषित राजनीति के खिलाफ आवाज उठाने में कमल हासन को प्रांत के न सिर्फ नए युवाओं का साथ मिला है, बल्कि प्रकाश राज जैसे नामचीन कलाकारों ने भी इस बारे में खुलकर उनका साथ दिया है। पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या, हिंदू टेरर और मोरल पोलिसिंग को लेकर सदैव प्रकाश राज ने केंद्रनीत मोदी सरकार पर निशाना साधा है। सो, कमल हासन जन आंदोलन व व्यवस्था विरोध की अलख जगाकर तमिलनाडु में अपनी राजनीति की शुरूआत करना चाहते हैं। तो दक्षिण के इस सियासी घमासान को एक नया चेहरा दे सकते हैं सुपर स्टार विजय, जिन्होंने अपनी हालिया रिलीज फिल्म ’मर्रिसल’ से भगवा ब्रिगेड से सीधी रार ठान ली है। इस फिल्म में नोटबंदी और जीएसटी को लेकर कुछ तीखे कमेंट हैं, यही वजह थी कि भाजपा इसको सिनेमा घरों से उतरवाना चाहती थी, पर इन तमाम भगवा विरोधों के बावजूद फिल्म ने 200 करोड़ से ज्यादा का बिजनेस कर लिया। विजय एक दशक से फिल्मों के साथ-साथ सामाजिक मुद्दों को भी उठा रहे हैं जिसमें जलिकुट्टू से लेकर मेडिकल के एंट्रेस एक्जाम के पपले भी शामिल हैं। विजय किसानों की आत्महत्याओं पर भी खुलकर बोल चुके हैं, अन्ना हजारे के आंदोलन में शामिल होने के लिए तो उन्होंने बकायदा दिल्ली की ठौर पकड़ ली थी, वे प्रांत के युवाओं में खासे पॉपुलर हैं। सो आने वाले दिनों में तमिलनाडु का सीएम कौन होगा? रजनी, कमल या विजय? थोड़ा इंतजार कीजिए!