Posted on 20 November 2017 by admin
पीएमओ में कार्यरत एक दक्षिण भारतीय आईएएस अधिकारी की पुत्री के विवाह के मौके का एक वीडियो सोशल मीडिया पर बेहद वायरल हुआ था, जिसमें यह दावा हुआ था कि इस मौके पर भारत के माननीय राष्ट्रपति की अवहेलना हुई है और उन्हें प्रधानमंत्री की मौजूदगी में उनका उचित सम्मान नहीं दिया गया। जैसे ही यह वीडियो आप नेता आशुतोष को प्राप्त हुआ उन्होंने एक चुभते हुए कमेंट के साथ इस वीडियो को ट्वीट कर दिया, ऐसा ही कुछ आप नेता सोमनाथ भारती ने भी कर दिया। बाद में इस बारे में राष्ट्रपति भवन से भी स्पष्टीकरण जारी हुआ कि इस तस्वीर में जिन्हें राष्ट्रपति बताया जा रहा है, वे माननीय कोविंद जी नहीं है। इस मामले की पड़ताल आगे बढ़ी तो पता चला कि यह कारस्तानी कांग्रेस के डर्टी ट्रिक्स डिपार्टमेंट की है। दरअसल उस विवाह समारोह में तमिलनाडु के राज्यपाल बनवारी प्रधानमंत्री मोदी के साथ शामिल हुए थे जिन्हें कोविंद बता दिया गया। मामले के तूल पकड़ते ही आशुतोष और सोमनाथ दोनों ने ही फौरन अपने ट्वीट डिलीट कर दिए। पर लोगों के जेहन में डर्टी ट्रिक्स की छाप जिंदा रह गई।
Posted on 20 November 2017 by admin
जिन लोगों ने हार्दिक पटेल की सेक्स सीडी कांड की ऑरिजनल सीडी देखी है, उनका दावा है कि मूल सीडी में तीन लड़कों में से एक हार्दिक की शक्ल से मिलता जुलता लड़का था और इस सीडी में जिस लड़की को दिखाया गया है वह भी भारतीय मूल की लड़की न होकर पूर्वी एशियाई चेहरे वाली एक लड़की है। यानी हार्दिक से जुड़े लोगों का यकीनी तौर पर दावा है कि जो सीडी बाद में जारी की गई है उसमें हार्दिक के चेहरे को भी मॉर्फ किया गया है। (एनटीआई-gossipguru.in)
Posted on 20 November 2017 by admin
गुजरात में केसरिया ताने-बाने के समक्ष महती चुनौती उछालने वाले तीन युवा लड़ाकों हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मवानी को साधने की बाजीगरी में अब भाजपा को संघ का भी साथ मिलने लगा है। भले ही भाजपा का शीर्ष नेतृत्व गुजरात में केसरिया आंधी का दिवास्वप्न दिखा रहा हो, पर सच तो यह है कि पिछले कुछ दिनों में कांग्रेस बेहद मजबूती से उभरकर चुनावी लड़ाई में शामिल हुई है, और जो सर्वेक्षण एजेंसियां आज से दो माह पूर्व भाजपा और कांग्रेस के वोट शेयर में 12 फीसदी से ज्यादा अंतर रहने की बात बता रही थी, इनके ताजे आंकड़े चौंकाने वाले हैं। गुजरात चुनाव में भाजपा की बढ़त अब घटकर 5 से 6 फीसदी रह गई है। सनद रहे कि भाजपा के समक्ष महती चुनौती उछाल रहे इन तीन युवाओं में से हार्दिक पटेल पाटीदार समाज से, अल्पेश ठाकोर (जो अब कांग्रेस में शामिल हो गए हैं) ओबीसी वर्ग से और जिग्नेश मवानी दलित समाज से ताल्लुकात रखते हैं। इतिहास साक्षी है कि गुजरात में अब तक दो मुद्दों पर ही चुनाव हारे या जीते जाते रहे हैं। वह है धर्म और जाति। जाति को तोड़ने, जोड़ने व साधने में अमित शाह की उस्ताद राजनीति से सब वाकिफ हैं। चुनांचे अब संघ को लग रहा है कि गुजरात चुनाव में ’हिंदुत्व कार्ड’ ही निर्णायक साबित होगा, सूत्रों के मुताबिक इस तथ्य को मद्देनजर रखते संघ ने अपने 12 विभागों को राज्य के हिंदुओं को एकजुट करने का जिम्मा सौंपा है। सूत्र बताते हैं कि संघ के इन 12 आनुषांगिक संगठनों में समन्वय बनाए रखने के लिए एक ’कोऑर्डिनेशन कमेटी’ का भी गठन हुआ है। इन संगठनों ने गुजरात के अलग-अलग भौगोलिक क्षेत्रों में बकायदा काम करने शुरू कर दिए हैं कि कैसे अपने-अपने समुदाय व वर्गों की सरपरस्ती कर रहे इन युवाओं के प्रभाव को कम किया जा सके। अब तक के चुनाव गवाह हैं कि जब-जब मोदी पर कोई संकट आया है या उनकी चुनावी लड़ाई दुर्गम या भीषण हुई है, संघ ने अपनी पूरी ताकत मोदी के पीछे झोंक दी है, गुजरात के मौजूदा विधानसभा चुनाव में भी इस बात की झलक मिलने लगी है।
Posted on 20 November 2017 by admin
सेक्स सीडी कांड से हार्दिक पटेल की धार कुंद करने का दावा करने वाली भाजपा अब ओबीसी नेता अल्पेश ठाकोर की काट ढूंढने में जुटी है, क्योंकि ठाकोर फिलवक्त पूरे जोर शोर से कांग्रेस के पक्ष में अलख जगा रहे हैं। सनद रहे कि गुजरात चुनाव में हमेशा से ओबीसी वोटर निर्णायक रहे हैं। गुजरात में इनकी कुल आबादी 40 फीसदी के आसपास है। इसमें से अकेले 20 प्रतिशत ठाकोर जाति के लोग हैं, अल्पेश जिनकी रहनुमाई करते हैं। ठाकोर जाति के लोग उत्तर और मध्य गुजरात के गांवों में फैले हुए हैं। जब गुजरात में रजवाड़ों का जमाना था तो ये ठाकोर लोग उनके लड़ाके थे, उनकी सेनाओं में शामिल थे, समय बदला और रजवाड़े जब अतीत बनते गए तो ये खेती बाड़ी के काम में जुट गए, इनमें से ज्यादातर के पास जमीनों की मिल्कियत नहीं थी तो वे खेतिहर मजदूर बनकर रह गए। इस वर्ग के ज्यादातर युवाओं के पास रोजगार नहीं था जब 2011 के आसपास अल्पेश परिदृश्य में आए तो उन्होंने देखा कि ठाकोर युवाओं के पास न तो अपनी पढ़ाई लिखाई है और न ही जीवन में उनका कोई लक्ष्य है, सो अल्पेश ठाकोर ने अपनी क्षत्रिय ठाकोर सेना का गठन किया, जिनसे जुड़े स्वयंसेवक बड़े पैमाने पर ठाकोर युवाओं के बेहतर भविष्य के लिए कोचिंग क्लासेस चलाने लगे। 2016 में अल्पेश ने राज्य की ओबीसी, एससी और एसटी जातियों को प्रतिनिधित्व देने और उन्हें एक स्वर मुहैया कराने की गरज से एकता मंच का गठन किया और दावा किया किया गया कि यह गुजरात की 70 फीसदी आबादी का एक मंच है, कहीं न कहीं यह मंच हार्दिक पटेल के पाटीदार आंदोलन को भी चुनौती देने का काम कर रहा था। बदले राजनैतिक परिदृश्य में अब चूंकि अल्पेश, हार्दिक व जिग्नेश भगवा लहरों के प्रतिकूल एक नाव पर सवार हो गए हैं, शायद इसीलिए अब केसरिया ताने-बानों के लिए एक बड़ा खतरा बनकर उभरे हैं।
Posted on 13 November 2017 by admin
कांग्रेस के युवा तुर्कों मनीष तिवारी और दीपेंद्र हुड्डा में छत्तीस का आंकड़ा है, यह तो सबको मालूम है, पर इन दोनों की लड़ाई यूं सार्वजनिक मंचों पर उठा पटक करने लगेगी इसका तो राहुल मंडली को भी इल्म न था। हुआ यूं कि तीन-चार रोज पूर्व दीपेंद्र हुड्डा कांग्रेस की छात्र इकाई एनएसयूआई की एक बैठक को संबोधित करने पहुंचे। इसके बाद इस छात्र संगठन की राष्ट्रीय सचिव सुरभि द्विवेदी का एक ट्वीट आया कि दीपेंद्र हुड्डा जी ने आज हमें एक नया स्लोगन दिया है-’यू एंड आई एनएसयूआई, सर आपका दिल से शुक्रिया, हमें इतना प्रेरित करने के लिए’ अचानक इस वाकये में मनीष तिवारी कूद पड़े उन्होंने बकायदा ट्वीट कर बताया कि ’यू एंड आई…’ का यह स्लोगन पुराना है, सबसे पहले सन् 1985 में इस नारे को जिस सज्जन ने आकर दिया था तब वे जवाहर नेहरू विश्वविद्यालय एनएसयूआई के प्रेसिडेंट थे और आगे चल कर ये सज्जन एनएसयूआई के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी बने। आज ये सज्जन तेलगुदेशम पार्टी में हैं और इनकी पत्नी आज देश की रक्षा मंत्री हैं। जाहिर है तिवारी का इशारा निर्मला सीतारमण के पति पराकाला प्रभाकर की ओर था, जो आज आंध्र के सीएम चंद्रबाबू नायडू के कम्युनिकेशन एडवाइजर के तौर पर कार्यरत हैं। अब ट्विटर वाली चिडि़या भी कब किसको चोंच मार दे पता नहीं चलता।
Posted on 13 November 2017 by admin
हिमाचल में पहले फेज के चुनाव के बाद भगवा हौंसलों में एक नई चमक देखी जा सकती है, भगवा नजरिए से देखा जाए तो प्रेम कुमार धूमल हिमाचल के अगले मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ले सकते हैं। पर नड्ढा समर्थकों ने अभी भी हौंसला नहीं खोया है, इनका दबे-छुपे तौर पर मानना है कि धूमल बमुश्किल डेढ़ साल के लिए सीएम बनेंगे, इसके बाद जब वे 75 के हो जाएंगे तो अडवानी जी तरह इन्हें भी मार्गदर्शक मंडल में जगह मिल जाएगी और नड्ढा को सीएम की कुर्सी। पर जिस राज्य में 37 फीसदी ठाकुर मतदाता हों क्या वे बतौर सीएम नड्ढा को स्वीकार करेंगे? इसका जवाब भाजपा के ही एक नेता की ओर से मिला,’जब हम जाटलैंड में (हरियाणा) में एक पंजाबी (खट्टर) बिठा सकते हैं, आदिवासी बहुल्य झारखंड में एक गैर आदिवासी रघुवर दास को बिठा सकते हैं और मराठों के राज्य महाराष्ट्र में एक गैर मराठा (फड़नवीस) को गद्दी दे सकते हैं तो हिमाचल तो बहुत छोटा सा राज्य है। दरअसल, हिमाचल में धूमल को प्रोजेक्ट करने के पीछे भाजपा की मजबूरी थी क्योंकि जिस तरह वीरभद्र सिंह की पुत्री के ब्याह के दिन उनके यहां पुलिस भेजी गई इसको लेकर केंद्रनीत मोदी सरकार से हिमाचल का ठाकुर मतदाता नाराज़ बताया जा रहा था। उनकी इस नाराज़गी को अगर राज्य के नाराज दलित मतदाताओं का साथ मिल जाता तो कमल की उम्मीदें मुरझा सकती थीं, सो आनन-फानन में जेटली के प्रयासों से धूमल का नाम सीएम कैंडिडेट के तौर पर प्रोजेक्ट किया गया।
Posted on 13 November 2017 by admin
एक वक्त था जब यह माना जा रहा था कि हार्दिक पटेल गुजरात में शिवसेना को सपोर्ट दे सकते हैं। इस बात के कयास कोई 6 माह पूर्व तब से लगाए जा रहे थे जब पूर्वी मुंबई में हार्दिक पटेल और शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे की एक गुप्त मुलाकात हुई। सूत्र बताते हैं कि यह मुलाकात कई घंटों तक चली। इस बैठक में उद्धव ने हार्दिक से गुजरात में शिवसेना का नेतृत्व करने को कहा। हार्दिक ने इस प्रस्ताव पर सोचने के लिए थोड़ा वक्त मांगा और वे गुजरात लौट गए। तब तक अहमद पटेल राज्यसभा में आधे वोट के चमत्कार के साथ जीत गए और गुजरात का सियासी समीकरण बहुत हद तक बदल गया। हार्दिक को शिवसेना के बजाए कांग्रेस का साथ ज्यादा मुफीद लगने लगा और उनकी कांग्रेसी नेताओं से मुलाकातें शुरू हो गईं। जब इस बात की भनक शिवसेना को लगी तो उसने हार्दिक को खरी खोटी सुना दी। जैसे-जैसे हार्दिक व कांग्रेस में नजदीकियां बढ़ने लगीं भाजपा ने हार्दिक के कोर ग्रुप में सेंध लगानी शुरू कर दी। अब हार्दिक के कई खास लोग कमल के निशान पर चुनावी मैदान में उतर रहे हैं, भाजपा की पूरी रणनीति हार्दिक को अलग-थलग करने की है।
Posted on 13 November 2017 by admin
एक वक्त था जब यूपीए के मित्र और घटक दल राहुल गांधी को अपना नेता मानने को तैयार नहीं हो रहे थे। लोग भूले नहीं होंगे जब सोनिया गांधी ने कई महत्वपूर्ण विपक्षी नेताओं को अपने घर भोजन पर न्यौता था, तो उसमें सीताराम येचुरी समेत कई प्रमुख विपक्षी नेताओं ने राहुल की जगह विपक्षी एका के प्रतीक पुरूष के तौर पर नीतीश कुमार का नाम आगे रखने की सलाह दी थी, पर सोनिया इस बात पर राजी नहीं हुई थीं। पर हालिया कुछ दिनों में राहुल गांधी भारतीय राजनीति में एक नए अवतार में सामने आए हैं। लोगों में न सिर्फ उनकी स्वीकार्यता बढ़ी है अपितु उन्हें एक अलग राजनीति के सूत्रधार के तौर पर भी देखा जा रहा है। अब तो शरद पवार जैसे नेताओं ने भी सार्वजनिक मंचों से राहुल गांधी की तारीफ में कसीदे पढ़ने शुरू कर दिए हैं। अभी चंद रोज पूर्व मुंबई में टीवी पत्रकारों की एक संस्था के जलसे में पवार ने साफ कर दिया कि उनका एनडीए में शामिल होने का या भाजपा के साथ जाने का कोई इरादा नहीं है। पवार का कहना था कि राहुल गांधी अब एक बदले रूप में सामने आए हैं और लोग उन्हें मोदी के विकल्प की तौर पर देखने लगे हैं।’ सनद रहे कि अब से पहले षरद पवार राहुल के बजाए सीधे सोनिया से राजनैतिक बातें करने में दिलचस्पी रखते थे।
Posted on 13 November 2017 by admin
गुजरात में भले ही कांग्रेस ने सियासी घमासान को दिलचस्प बना दिया हो, पर राजनैतिक पंडितों का मानना है कि वहां सरकार तो एक बारगी फिर से भाजपा की ही बनेगी। सूत्र बताते हैं कि हो सकता है नए मुख्यमंत्री के तौर पर नितिन पटेल या गणपत भाई वसावा का नंबर लग जाए। एक वक्त इस रेस में शंकर भाई चौधरी को भी शामिल बताया जा रहा था, पर लगता है फिलवक्त उनका समीकरण गड़बड़ा गया है। (एनटीआई-gossipguru.in)
Posted on 13 November 2017 by admin
नई दिल्ली स्थित पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स की सालाना जनरल बॉडी मीटिंग का मौका था, यह पखवाड़े भर पहले की बात है। आयोजक गण इसमें सरकार के कुछ बड़े मंत्रियों को आमंत्रित करना चाहते थे, पर सरकार की ओर से ले देकर हाथ आए नितिन गडकरी, जिनका ट्रैक रिकार्ड आयोजकों को सकते में डालने के लिए काफी था, क्योंकि कई मौके ऐसे आए हैं चाहे वह कोई सरकारी कार्यक्रम हो या किसी मीडिया हाऊस का कॉन्क्लेव, गडकरी इसके होर्डिंग-पोस्टर में तो नजर आते हैं, पर कार्यक्रम में उनका दूर-दूर तक कोई आता-पता नहीं होता। चूंकि गडकरी को उद्घाटन समारोह में निमंत्रित किया गया था, चुनांचे आयोजकों ने समापन सत्र के लिए कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी का दरवाजा खटखटाया। दर भी खुला और दिल भी, चैंबर के तत्कालीन चैयरमैन को राहुल गांधी ने फौरन मिलने के लिए बुलाया और उनके साथ कोई 45 मिनट का वक्त गुजारा। राहुल चैंबर के इस आयोजन में शामिल हुए और वहां उपस्थित लोगों से दिल खोल कर बातें की। राहुल ने खुलकर मोदी व उनकी सरकार पर हमला बोला और कहा कि इस सरकार में सारी पॉवर एक व्यक्ति के इर्द-गिर्द कवायद करती है। इस पर सामने दर्शक दीर्घा में बैठे चैंबर के टूरिज्म कमेटी के चैयरमैन मुकेश गुप्ता ने सवाल उछाला कि ’आपके यूपीए के शासन काल में भी तो सारी पॉवर 10 जनपथ पर केंद्रित थी।’ सवाल सुनकर राहुल मुस्कराए और बोले-नहीं उस वक्त पीएमओ ही सारे निर्णय लेता था। शोर हुआ, तालियां बजीं और स्टेज लूटने का हुनर सीख रहे राहुल का सीना गर्व से चौड़ा हो गया।