सूत्र बताते हैं कि लोकसभा चुनाव में टिकटों के बंटवारे में इस बार संघ की कुछ खास चली नहीं। आम परिपाटी के मुताबिक ही संघ के प्रांत प्रचारकों और प्रचारकों ने अपनी ओर से कुछ संभावित उम्मीदवारों के नामों की लिस्ट भाजपा शीर्ष को सौंपी थी। लेकिन जब उम्मीदवारों की घोषणा हुई तो इनके द्वारा सुझाए गए गिनती के ही नाम घोषित उम्मीदवारों की लिस्ट में शामिल थे। कुछ नाराज़ प्रचारकों ने संघ के एक शीर्ष नेता के समक्ष अपनी व्यथा रखी, जिन संघ नेता का काम भाजपा और संघ में समन्वय का है। इन नाराज़ प्रचारकों का कहना था कि ’जब हमारी कोई सुनता ही नहीं है तो फिर दिन-रात हम इनके लिए काम क्यों करते हैं।’ इसके बाद ही मोदी जब चुनाव प्रचार के लिए विदर्भ गए तो इस सिलसिले में वे नागपुर रुके और वहां वे सीधे संघ मुख्यालय गए। माना जाता है कि नागपुर संघ मुख्यालय में पीएम की संघ के शीर्ष नेताओं से इस बाबत एक लंबी बातचीत हुई जिसमें संघ व भाजपा के आपसी समन्वय बढ़ाने पर जोर रहा।
Comments Off on क्या संघ और भाजपा में सब ठीक चल रहा है?
राहुल गांधी की ’भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ शुरू हो चुकी है, पर यह यात्रा अयोध्या में भगवान राम के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम की वजह से यह सुर्खियां नहीं बटोर पा रही। वैसे भी इन दिनों देश की यह सबसे पुरानी पार्टी फंड की कमी से जूझ रही है, एक अनुमान के अनुसार राहुल की इस यात्रा के लिए ही ढाई सौ करोड़ रूपयों से ज्यादा की जरूरत है। कॉरपोरेट जगत कांग्रेस को लेकर कोई खास उत्साह नहीं दिखा रहे, सो पार्टी रणनीतिकारों ने फंड जुटाने के लिए ’क्राउड फंडिंग’ करने की जुगत भिड़ाई, इसके लिए बकायदा एक क्यूआर कोड भी जारी किया गया और क्यूआर वाले इस पेम्फलेट को जनता के बीच बांटा भी गया, कांग्रेस परिवारों से भी दान देने की अपील हुई, यह पूरी मुहिम 28 दिसंबर से शुरू होकर 10 जनवरी तक चली। पर इस बात को लेकर खासा बवाल मचा हुआ है कि क्यूआर कोड को लेकर कुछ फर्जीवाड़ा हो गया है, बकायदा इस बात को लेकर तेलांगना में मुकदमा भी दर्ज कराया गया है। सूत्र बताते हैं कि असल क्यूआर कोड ‘डोनेटआईएनसीडॉटइन’ था, पर ज्यादातर पैसा ‘डोनेटआईएनसीकोडॉटइन’ पर चला गया, यह रकम करोड़ों में बताई जाती है। कहा जाता है कि यह सारा पैसा दिल्ली में ही ट्रांसफर हुआ है, पर कहां? किसके पास? कौन हैं लाभार्थी? अभी इन बातों का कुछ पता नहीं चल पाया है या पार्टी की ही इस लाभार्थी को ढूंढने में कोई खास दिलचस्पी नहीं है।
दिल्ली के भी तमाम मौजूदा सांसदों को बदलने की तैयारी है, इन सांसदों ने भी अभी से अपने लिए नई सीटों की तलाश शुरू कर दी है। विश्वस्त सूत्र बताते हैं कि पश्चिमी दिल्ली के सांसद प्रवेश साहिब सिंह वर्मा ने हरियाणा जाने में अनिच्छा जताई है, वे हरियाणा के जगह यूपी के बिजनौर से चुनाव लड़ना चाहते हैं, मनोज तिवारी बिहार के बक्सर का रुख कर सकते हैं, तो हंसराज हंस को पंजाब भेजा जा सकता है, गौतम गंभीर जैसे नेताओं के पर कुतरे जा सकते हैं, मुमकिन है कि उन्हें लोकसभा या फिर विधानसभा चुनाव लड़ने का मौका ही न मिले, दक्षिण दिल्ली के सांसद रमेश बिधुड़ी की नज़र गौतमबुद्ध नगर की सीट पर है, इसी सीट पर एक और गुर्जर नेता नरेंद्र भाटी का भी दावा है, पर सूत्रों की मानें तो संघ यहां से महेश शर्मा को ही ‘बैक’ कर रहा है, जो यहां के मौजूदा सांसद हैं, महेश शर्मा ने गौतमबुद्ध नगर से चुनावी तैयारियां भी शुरू कर दी हैं।
’ऑपरेशन नीतीश’ को मुकम्मल करने में इस दफे दो बड़े नौकरशाहों की एक अहम भूमिका बताई जाती है। इनमें से एक नीतीश के कभी निजी सचिव और बेहद दुलारे रहे चंचल कुमार हैं, जो वर्तमान में ‘नार्थ ईस्ट क्षेत्रीय विकास मंत्रालय’ के सचिव हैं, मोदी सरकार इन्हें एक बहुत ही सुविचारित तरीके से 2022 में ही बिहार से दिल्ली लेकर आई थी और तब इन्हें नागरिक उड्डयन मंत्रालय में सचिव बनाया गया था। दूसरे अधिकारी पीएमओ में कार्यरत अमित खरे हैं, जो प्रधानमंत्री के सलाहकार भी हैं। ऑपरेशन नीतीश में इन दोनों अधिकारियों ने अपना पूरा योगदान दिया, सबसे पहले लालू के करीब जा चुके लल्लन सिंह को जदयू के अध्यक्ष पद से हटाया गया और पार्टी की कमान नीतीश ने अपने हाथों में ले ली। फिर जदयू के विधायकों को एक-एक कर समझाया गया कि ’भाजपा के साथ जाने से उन्हें आने वाले चुनाव में राम लहर पर सवार होने का मौका मिलेगा।’ वहीं पॉलिटिकल मैनेजमेंट संभालने में केसी त्यागी ने अमित शाह के समन्वयन में सारे कार्यों की पूर्णाहूति दी। केसी त्यागी नियमित तौर पर गृह मंत्री से मिल कर उनके साथ रणनीतियां बुन रहे थे।
Comments Off on ’ऑपरेशन नीतीश’ के सूत्रधार ये दो नौकरशाह
कुछ अजीबोगरीब है सियासत की रवायत मगर, मेरी हस्ती है कि मैं धूल में भी चमक जाता हूं, कुछ ऐसे ही चमके थे कांग्रेस के मौजूदा अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे भी पिछली बार, जब बात उनकी रिटायरमेंट की हो रही थी तो अपने मित्र अशोक गहलोत की मदद से उन्होंने खेल का पांसा ही पलट दिया। गहलोत ने खुद के बदले अपने मित्र खड़गे को कांग्रेस की सबसे अहम कुर्सी दिलवा दी। खड़गे ने अब धीरे-धीरे कांग्रेस के अंदर अपने खास विश्वस्तों की एक फौज जुटा ली है, इंडिया गठबंधन के क्षत्रपों से भी उनके निजी ताल्लुकात प्रगाढ़ हुए हैं लालू, तेजस्वी, नीतीश जैसे नेताओं से अब रोज-बरोज की उनकी बातचीत है। सूत्रों की मानें तो ये क्षत्रप ही 2024 में एक दलित पीएम की बात उठा सकते हैं, खड़गे एक बड़ा दलित चेहरा हैं, कांग्रेस की कमान भी उनके पास है, सो वे समां तो बांध ही सकते हैं, राहुल सार्वजनिक मंचों से कई बार कह चुके हैं कि पीएम बनने में उनकी कोई खास रुचि नहीं, अलबत्ता यह बात भी खड़गे के हक में ही जाती है। पर पिछले दिनों इनके पुत्र प्रियांक खड़गे ने मैसूर में एक सार्वजनिक बयान देकर हड़कंप मचा दिया कि ’अगर कांग्रेस नेतृत्व चाहेगा तो वे सीएम बनने को तैयार हैं।’ फिर रणदीप सुरजेवाला की ओर से उन्हें डपट दिया गया। लगे हाथ प्रदेश के गृह मंत्री डॉ. जी परमेश्वर ने भी सीएम बनने की अपनी इच्छा जाहिर कर दी, इस कार्य में उन्हें राज्य के सहकारिता मंत्री के एन राजन्ना का पूरा साथ मिला। जाहिर इन ताजा घटनाक्रमों से खड़गे की पेशानियों पर बल पड़े हैं, उनकी उम्मीदों को किंचित झटका लगा है और उनके पुत्र प्रेम का मुजाहिरा भी हुआ है, जो 24 के उनके लक्ष्य के समक्ष कुछ बाधा उत्पन्न कर सकता है।
अगर कर्नाटक कांग्रेस में भीतर ही भीतर कोई आग सुलग रही है, तो वहां भाजपा में कहां सब चंगा है। प्रदेश भाजपा में बेतरह गुटबाजी है, इसके चलते ही कांग्रेस के हाथों भगवा पार्टी को शिकस्त झेलनी पड़ी। प्रदेश में पार्टी की गुटबाजी का कुछ ये हाल है कि अब तक वहां ‘लीडर ऑफ ऑपोजिशन’ यानी नेता प्रतिपक्ष व विधायक दल के नेता का चुनाव नहीं हो पाया है, भाजपा अपना नया प्रदेश अध्यक्ष भी नहीं बना पाई है। वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष नलिन कुमार कतील का कार्यकाल पिछले वर्ष ही समाप्त हो गया था, पार्टी में उनको लेकर भी खासा असंतोष है, बावजूद उन्हें तब तक पद पर बने रहने को कहा गया है जब तक कि पार्टी अपना नया अध्यक्ष नहीं ढूंढ लेती। नेता विधायक दल की रेस में बासव राज बोम्मई और आर अशोक के नाम शामिल हैं। वैसे भी ओबीसी उभार और जातीय जनगणना यहां भाजपा के गले की फांस बना हुआ है। सूत्र बताते हैं कि नेता विपक्ष की कुर्सी भाजपा अपने नए गठबंधन साथी एचडी कुमारस्वामी के लिए छोड़ने को तैयार है। इस बार जदएस के 19 और भाजपा के 66 विधायक चुन कर आए हैं। वहीं प्रदेश अध्यक्ष के लिए राज्य के कद्दावर नेता येदुरप्पा अपने बेटे विजयेंद्र का नाम आगे कर रहे हैं। अगर किसी प्रकार विजयेंद्र नहीं बन पाते हैं तो येदिुरप्पा की विश्वासपात्र रहीं शोभा करंदलजे का भी नंबर लग सकता है। शोभा वोक्कालिगा समुदाय से आती हैं जो राजनैतिक रूप से बेहद प्रभावशाली जाति है, सीटी रवि भी प्रदेश अध्यक्ष बनने की रेस में शामिल हैं।
महात्मा गांधी के जन्म दिवस 2 अक्टूबर से उनकी जन्म स्थली गुजरात के पोरबंदर से राहुल गांधी अपनी भारत जोड़ो यात्रा के दूसरे चरण की शुरुआत करेंगे। इस दूसरी चरण की यात्रा के संयोजन के कार्य में केसी वेणुगोपाल और जयराम रमेश पिछले काफी समय से जुटे हुए हैं। पहली यात्रा में दिग्विजय सिंह की भी बड़ी भूमिका थी, पर इस बार उनके रोल को कांट-छांट कर छोटा कर दिया गया है। इसकी वजह बताई जा रही है कि मध्य प्रदेश के आसन्न विधानसभा चुनाव को, जिसमें दिग्विजय एक्टिव रहना चाहते हैं, वे अपने खास लोगों के लिए टिकट भी चाहते हैं और घूम-घूम कर प्रदेश में चुनाव प्रचार भी करना चाहते हैं। हालांकि आयोजकों के लिए इस दूसरी यात्रा का प्रबंधन कार्य कोई चुनौतीपूर्ण नहीं, क्योंकि पहली यात्रा का पूरा खाका उनके समक्ष हाजिर है। पहली यात्रा में यात्रियों के ठहरने के लिए कांग्रेस ने आधुनिक वातानुकूलित कंटेनर खरीद लिए थे, अब बस उन्हीं कंटेनर को झाड़ पोंछ कर बस चमकाया जा रहा है। राहुल ने अपनी पहली भारत जोड़ो यात्रा में 3,500 किलोमीटर से ज्यादा की यात्रा तय की थी, उसकी तुलना में पोरबंदर से पूर्वोतर की यह यात्रा थोड़ी छोटी रहेगी, और कमोबेश यह पांच चुनावी राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान व मिजोरम से गुजरेगी, राहुल तेलांगना भी जाना चाहते हैं, पर वहां की तैयारियों को लेकर अब भी असमंजस की स्थिति है। पहले यह यात्रा असम के कामाख्या देवी मंदिर में समाप्त होनी थी, पर मणिपुर के ताज़ा हालात को मद्देनज़र रखते इसे अरूणाचल प्रदेश के लोहित जिले के परशुराम कुंड में समाप्त किया जा रहा है, जहां जनवरी माह में एक बड़ा मेला लगता है, जिसे नार्थ ईस्ट का कुंभ भी कहा जाता है। सनद रहे कि राहुल ने अपनी पहली भारत जोड़ो यात्रा 136 दिनों में पूरी की थी।
केंद्र सरकार ने प्रिंट मीडिया, टीवी न्यूज़ चैनल और सोशल मीडिया को तमाम कड़े कानूनों के दायरे में ला खड़ा किया है। पर अब तक वह डिजिटल मीडिया पर नकेल नहीं कस पाई है। सो, डिजिटल मीडिया पर अंकुश लगाने के लिए केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्रालय एक नया कानून लाने की तैयारी कर रहा है। शुरूआत में पीआईबी ने ’फैक्ट चेक’ करना शुरू किया, इसके बाद सूचना प्रसारण मंत्रालय ने खबरों के फैक्ट चेक के लिए एक और यूनिट का गठन कर दिया। केंद्र सरकार के नक्शे कदम पर चलते कर्नाटक सरकार के आईटी-बीटी विभाग ने पिछले दिनों राज्य में एक ’फैक्ट चेक’ यूनिट का गठन किया है, इस यूनिट का काम सोशल मीडिया पर आ रही फर्जी खबरों की पड़ताल का है। सबसे दिलचस्प तो यह कि कर्नाटक सरकार में यह मंत्रालय मल्लिकार्जुन खड़गे के पुत्र प्रियंक खड़गे के अधीनस्थ आता है। कर्नाटक के मुख्यमंत्री ने इस यूनिट के गठन पर सफाई देते हुए कहा है कि ’ऐसी फर्जी खबरों से ही समाज में ध्रुवीकरण होता है।’ अब कर्नाटक की इस ’फैक्ट चेक’ अभियान के निशाने पर भाजपा की सोशल मीडिया इकाई के प्रमुख अमित मालवीय आ गए हैं, यूनिट का मानना है कि ’इनके हेंडल से ही राहुल गांधी के खिलाफ अपमान जनक पोस्ट डाली जाती है।’
’हर नई ईंट पर बस तेरा ही नाम है इन ख्वाबों के मकानों में
कभी ख्वाहिशें बिकती थीं, अब वक्त बिकता है, इन दुकानों में’
जब भगवा आलोक में 18 से 22 सितंबर तक संसद के विशेष सत्र आयोजित करने की घोषणा हुई तो विपक्षी दलों को इस बात का किंचित भी इल्म नहीं था कि इस विशेष सत्र में आखिरकार होगा क्या? क्योंकि जब भी ऐसा कोई विशेष सत्र आहूत होता है तो तमाम पार्टियों से बात कर सत्तारूढ़ दल की ओर से एक कार्य सूची तैयार की जाती है। सो, नाराज़ होकर सोनिया गांधी ने पीएम को एक पत्र लिख डाला, और इसमें उन्होंने महंगाई, बेरोजगारी, चीन, अदानी जैसे 9 प्रमुख मुद्दों पर चर्चा की मांग कर दी। इस पर त्वरित कार्यवाई करते सरकार ने पोस्ट ऑफिस बिल, मीडिया संस्थानों के रजिस्ट्रेशन बिल, वरिष्ठ नागरिक कल्याण विधेयक, अधिवक्ता बिल समेत आठ विधेयकों की लिस्ट जारी की, जिन विधेयकों को इस विशेष सत्र में लाया जाना था। पर मोदी सरकार के तुरूप का इक्का महिला आरक्षण बिल का इसमें कोई जिक्र नहीं था। 5 दिन का यह विशेष सत्र चार दिनों में ही समाप्त हो गया, सत्र की शुरूआत 18 को पुराने संसद से हुई और अगले दिन 19 को कार्यवाई नए संसद भवन में शिफ्ट हो गई। इसी संसद में ’नारी शक्ति वंदन विधेयक’ पेश हुआ, 20 सितंबर को यह पारित भी हो गया। भाजपा इसे अपनी एक बड़ी जीत मान रही है, पर अब भाजपा के अंदर से ही महिला बिल में ओबीसी महिलाओं को आरक्षण दिए जाने की मांग उठने लगी है। यह मांग भी भाजपा की उस नेत्री उमा भारती ने उठा दिया है जिसे ’जन आशीर्वाद यात्रा’ का न्यौता ही नहीं भेजा गया। जिन्हें पार्टी ने न तो 2019 का चुनाव लड़ाया और न ही विधानसभा का। राहुल गांधी की ’भारत जोड़ो यात्रा’ का दूसरा चरण ज्यादातर हिंदी पट्टी से होकर गुजरने वाला है, जहां ओबीसी राजनीति का सिक्का चलता है, कांग्रेस ने हैदराबाद की अपनी सीडब्ल्यूसी की बैठक में खुल कर ओबीसी राजनीति का अलख जगा दिया है, पार्टी ने कहा है कि ’वह 50 फीसदी आरक्षण सीमा पर विचार करेगी।’ देश भर में 45 फीसदी के आसपास ओबीसी वोटर हैं, हिंदी पट्टी में तो यह प्रतिशत बढ़ कर 54 फीसदी तक जा पहुंचता है। जैसे बिहार में 61 प्रतिशत, राजस्थान में 48 प्रतिशत, छत्तीसगढ़ में 45 फीसदी और मध्य प्रदेश में ओबीसी वोटरों की तादाद 43 फीसदी है। राहुल गांधी ने इसीलिए कर्नाटक चुनाव में जातिगत जनगणना की मांग उठाई थी, अब राहुल कह रहे हैं कि ’भारत सरकार के 90 सचिवों में से मात्र 3 ही ओबीसी समुदाय से आते हैं,’ यानी विपक्ष ने भविष्य की राजनीति के ’रोड मैप’ का अभी से खुलासा कर दिया है।
Comments Off on विशेष सत्र का ’विशेष एजेंडा’ सब पहले से तय था
राहुल गांधी जब अपनी भारत जोड़ो यात्रा को लेकर मध्य प्रदेश पहुंचे तो वहां पहले से एक प्रेस कांफ्रेंस आहूत थी। जयराम रमेश ने पत्रकारों से जैसे ही कहना शुरू किया कि ’हमने बड़ी मेहनत कर यात्रा का रूट बनाया है’, राहुल ने उन्हें बीच में टोकते हुए कह दिया-’यह कांग्रेस की यात्रा नहीं है और न ही मेरी यात्रा राजनैतिक है।’ इस पर महाराष्ट्र कांग्रेस के अध्यक्ष नाना पटोले का दर्द था कि ’जब हम राजनीति में हैं तो हमारी यात्रा गैर राजनीतिक कैसे हो सकती है? कुछ सिविल सोसाइटी वाले लोग राहुल जी को भ्रमित कर रहे हैं।’ यात्रा की फोटो में भी राहुल आम लोगों के साथ नज़र आ रहे हैं, पर राहुल नेताओं कों अपने मंच पर भी स्थान नहीं दे रहे। मसलन सचिन पायलट ने मध्य प्रदेश में यात्रा ज्वॉइन की तो राहुल उन्हें देख कर चौंके-’अच्छा आप भी आए हुए हैं?’ पर पायलट को मंच पर जगह नहीं मिली। आष्चर्य है कि यूपी के बड़े नेता लगातार यात्रा से दूरी बना कर रख रहे हैं, इसका आशय क्या है?