तूने एक चेहरे पर लगा रखे हैं हजार चेहरे पर तू मेरी ओर क्यों है’
जम्हूरियत के सबसे बड़े महापर्व की समापन बेला आ पहुंची है। लोकतंत्र के तोरणद्वार से जनादेश की धीमी-धीमी आहटें भी सुनाई देने लगी हैं, कोई अब भी सड़क पर है तो कोई विवेकानंद शिला पर नई सियासी भंमिगाएं गढ़ने में व्यस्त हैं। इस 1 जून को पंजाब की 13 और चंडीगढ़ केंद्र शासित सीट पर मतदान संपन्न हुआ। मजे की बात तो यह कि पंजाब में भाजपा ने 13 सीटों पर जो अपने प्रत्याशी उतारे इनमें से 11, अन्य पार्टियों से आयातित थे। इस दफे चूंकि शिरोमणि अकाली दल भी भाजपा से अलग होकर चुनाव लड़ रहा था तो उसकी कोई खास वक्त देखी नहीं गई। अकाली पूरी तरह इन चुनावों में दरकिनार होते दिखे सो, उन्होंने ’ऑपरेशन ब्लू स्टार’ का पुराना राग अलापना शुरू कर दिया। 1 जून को ही ’ऑपरेशन ब्लू स्टार’ की चालीसवीं बरसी थी। सो, इस मौके को भुनाने के लिए अकालियों ने पंजाब के गुरूद्वारों के बाहर पोस्टर लगा दिए, ताकि राज्य में कांग्रेस की संभावनाओं को कम किया जा सके। रही बात चंडीगढ़ की तो यहां शुरूआत में कांग्रेसी दिग्गज मनीष तिवारी कमजोर पिच पर खेलते नज़र आए, पर 20 मई के बाद धीरे-धीरे उन्होंने अपने पक्ष में माहौल बना लिया। उन्होंने चंडीगढ़ के ’गर्वनेंस मॉडल’ को परिभाषित करने के लिए अपना एक विजन डॉक्यूमेंट ’सिटी स्टेट मॉडल’ भी रिलीज किया जो खासा चर्चा में रहा। मनीष को चंडीगढ़ के ग्रामीण इलाकों में आप-कैडर का भरपूर साथ मिला। आप सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल भी उनके पक्ष में चुनावी अलख जगाने के लिए चंडीगढ़ पधारे। आईं तो प्रियंका गांधी भी, जब वो राजीव शुक्ला के साथ हेलिकॉप्टर से चंडीगढ़ उतरीं तो हेलीपैड पर उनकी निगाहें किसी और को ढूंढ रही थीं वे थे कांग्रेस के सीनियर नेता पवन बंसल। प्रियंका को जैसे ही मनीष ने रिसीव करते हुए फूलों का गुलदस्ता भेंट किया तो प्रियंका ने एक झटके में मनीष से पूछ लिया, ’पवन बंसल जी नहीं आए?’ तो मनीष ने किंचित भावुक होते हुए कहा-’मैंने उनसे रिक्वेस्ट की थी, उनसे फोन पर भी रोजाना बात हो जाती है, पर चुनाव में वे मेरे साथ नहीं आए।’ इस पर प्रियंका ने अपने सचिव से बंसल को फोन लगाने को कहा, जैसे ही बंसल लाइन पर आए प्रियंका ने छूटते ही उनसे कहा, ’मैं एक जनसभा को संबोधित करने जा रही हूं, आप भी मंच पर उपस्थित रहिएगा।’ यह सुनने भर कि देर थी कि बंसल भागे-भागे सभा स्थल पर जा पहुंचे और मंच पर अवतरित हो गए। इस घटना के बाद ही बंसल चंडीगढ़ के अलावा हिमाचल प्रदेश में भी सक्रिय दिखे।
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’बड़े जोर की आंधियां चलीं इस बार कि ऊंचे दरख्तों के तोड़ गई गुमां
इस चक्कर में टूटे वे पेड़ भी जो कभी छांवों को दिया करते थे पनाह’
पीएम मोदी के तीसरे टर्म का राज सिंहासन सज-धज कर तैयार है, सियासत की नई बेलें भी इस पर अठखेलियां करने के लिए मचल रही हैं, पर 2024 के चुनावी परिणामों के निहितार्थ भगवा रंगमंच से जनादेश के मुखर बोल लिए नए किरदारों के लिए जगह खाली करने को कह रहे हैं। मोदी सरकार के दो अहम गठबंधन साथियों में से एक नीतीश को मनाना भाजपा के लिए किंचित आसान रहा, इसकी बानगी एनडीए की मीटिंग में भी देखने को मिली जब जदयू सुप्रीमो मोदी के सम्मान में इतने झुक गए कि उनके चरणस्पर्श को आतुर हो गए। इसके दीगर चंद्रबाबू नायडू को मनाने के लिए भाजपा शीर्ष को वाकई पापड़ बेलने पड़ गए। नायडू से बात करने के लिए पीएम ने तीन लोगों यानी अमित शाह, जेपी नड्डा व राजनाथ सिंह को अधिकृत किया था। माना जाता है कि शुरूआत में नायडू की मांगों की फेहरिस्त काफी लंबी थी, वे लोकसभा स्पीकर के साथ वित्त, नगर विकास, उड्डयन जैसे अहम मंत्रालय भी मांग रहे थे। फिर भाजपा की ओर से उनसे कहा गया कि ’वे अपने संभावित मंत्रियों की सूची अभी सौंप दें, मंत्रालय के निर्णय रविवार के बाद हो जाएंगे’ पर इस पर नायडू नहीं माने, उन्होंने अपनी ओर से एक विकल्प यह भी पेश कर दिया है कि ’अगर भाजपा चाहें तो तेदेपा केंद्र सरकार को बाहर से भी समर्थन दे सकती है,’ पर भाजपा का डर है कि चूंकि ‘इंडिया ब्लॉक’ अखिलेश व शरद पवार के मार्फत निरंतर नायडू के टच में है, सो उनका ऐसा कोई भी कदम एनडीए 3.0 सरकार के लिए आत्मघाती साबित हो सकता है।
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सियासत के विहंगम आकाश में उड़ते परिंदों के पर गिनने में सिद्दहस्त भाजपा शीर्ष ने महाराष्ट्र में अपनी हारी बाजी को जीतने का नया प्लॉन बनाया है। देश के शीर्षस्थ उद्योगपति घराना और ठाकरे परिवार की दोस्ती कोई छुपी बात नहीं है। सो, पिछले सप्ताह जब मुंबई के इस शीर्षस्थ उद्योगपति ने उद्धव ठाकरे को सपरिवार अपने घर भोजन पर आमंत्रित किया तो मेन्यू का आकार-प्रकार खासा सियासी चाशनी में डूबा हुआ था। इस उद्योगपति ने उद्धव से खास तौर पर कहा कि ’वे आदित्य को जरूर साथ लेकर आएं।’ ठाकरे परिवार जब अपने मेजबान के घर पहुंचा तो बातों की शुरूआत ही देश की राजनीति पर केंद्रित रही। इन थैलीशाह ने उद्धव को समझाते हुए कहा कि ’जब हवा का रूख एकतरफा हो तो उसके खिलाफ जाने में कोई समझदारी नहीं है।’ सूत्र बताते हैं कि इस पर उद्धव ने कहा कि ’जरा खुल कर अपनी बात रखिए।’ तब उस उद्योगपति महोदय ने कहा कि ’हमारी दिल्ली में अक्सर बातें हो जाती हैं और भाजपा शीर्ष आपको लेकर काफी फिक्रमंद है।’ उनका कहना है ’उद्धव हमारे पुराने साथी हैं, जरा सी कहासुनी क्या हो गई, रिश्तों में खटास आ गई। हम अब उसे ठीक करना चाहते हैं, क्योंकि यह हमारा परिवार है।’ भाजपा शीर्ष ने कथित तौर पर यह भी आश्वासन दिया है कि ’इस बार चुनावी नतीजे चाहे जो भी रहें, भाजपा आदित्य ठाकरे को महाराष्ट्र का नया सीएम बनाने को तैयार है। रही बात देवेंद्र फड़णवीस की तो उन्हें केंद्र में लाकर महाराष्ट्र की राजनीति से अलग कर दिया जाएगा।’ इन्हीं उद्योगपति के मार्फत से उद्धव को यह भी आश्वासन मिला है कि ’उनके साथ जो हुआ वह ठीक नहीं हुआ, उनकी पुरानी पार्टी उन्हें लौटा दी जाएगी।’ यह सारी बातें सुनने के बाद उद्धव ने दो टूक कहा-’यह तो बेहद षुभ संकेत है पर मैं अब जीवन में कभी भाजपा के साथ नहीं जाऊंगा। रही बात पार्टी की, तो हमारे कार्यकर्ता आज भी हमारे साथ है और हमें उन पुराने नेताओं की कोई जरूरत नहीं जो मुश्किल वक्त में हमारा साथ छोड़ कर चले गए थे।’ उद्धव के साफ संदेश के बाद भगवा ‘कमल ताल’ में फिलहाल लगाम सी लग गई है।
’बड़े सुर्ख हैं तेरे इरादे दीवारों पर इबारत से पढ़े जाएंगे
निकल पड़ा जिस दिन तूफानों सा तुमसे हम संभालें न जाएंगे’
क्या यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का नव स्नाध्य ठाकुरवाद भाजपा शीर्ष को रास नहीं आ रहा है? वैसे तो यह बात जगजाहिर है कि देश भर में मोदी के बाद योगी ही ऐसे भगवा नेता हैं जिनकी चुनावी रैलियों और सभाओं में सबसे ज्यादा डिमांड होती है। मौजूदा चुनाव में भी भाजपा कैडर ने देश भर में योगी की 200 से ज्यादा देश भर में रैलियों की मांग की थी पर योगी ने हामी भरी बस 100 रैलियां यूपी के बाहर कीं, यह कहते हुए कि ’यूपी की 80 सीटों पर भी उन्हें अपना ध्यान फोकस करना है।’ पर विडंबना देखिए कि चुनाव का पांचवां चरण आ पहुंचा है पर योगी अब तक यूपी में मात्र 26 रैलियां ही कर पाए हैं। क्या भगवा सियासी ताने-बाने की आड़ में भीतरखाने से योगी की रैलियों को कम किया गया है? वैसे भी यूपी में ठाकुर समाज को साधने का जिम्मा भाजपा चाणक्य अमित शाह ने उठा रखा है। सूत्र बताते हैं कि यूपी के बाहुबली ठाकुर नेता धनंजय सिंह को साधने में इस बार शाह की महती भूमिका रही। जौनपुर के भाजपा प्रत्याशी कृपा शंकर सिंह को समर्थन देने के लिए धनंजय सिंह को स्वयं शाह ने मनाया। धनंजय की पत्नी श्रीकला जो एक वक्त जौनपुर से बसपा की अधिकृत उम्मीदवार थीं कहते हैं उनसे भी शाह ने मुलाकात की इसके बाद ही बसपा ने जौनपुर से अपना उम्मीदवार बदल दिया। पहलवानों से कथित यौन शोषण के मामलों से चर्चित हुए बाहुबली ठाकुर नेता बृजभूषण शरण सिंह को भी शाह के दरबार का एक महत्वपूर्ण नवरत्न माना जाता है। कहते हैं शाह के प्रयासों की बदौलत ही बृजभूषण शरण के बेटे करण को उनकी जगह भाजपा का टिकट मिला क्योंकि भाजपा शीर्ष किसी भी भांति बृजभूषण शरण की नाराज़गी मोल नहीं चाहता था, कैसरगंज के अलावा गोंडा, बस्ती, फैजाबाद में भी बृजभूषण का अच्छा-खासा असर है और बृजभूषण और योगी में छत्तीस का आंकड़ा किसी से छुपा भी नहीं है। हालांकि यूपी के एक और ठाकुर नेता राजा भैय्या से योगी के अतिशय मधुर संबंध हैं बावजूद इसके शाह ने राजा भैय्या से स्वयं बात कर उन्हें भाजपा के पक्ष में कदमताल करने के लिए मनाया ताकि प्रतापगढ़ और उसके आसपास के क्षेत्रों में भाजपा की राह आसान हो सके। वैसे भी शाह दुलारे बृजभूषण तो योगी को कोई ठाकुर नेता मानते ही नहीं हैं।
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मंडी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ही भाजपा उम्मीदवार कंगना रनौत की तारणहार होकर उभरी है जहां उनका मुकाबला कांग्रेसी उम्मीदवार विक्रमादित्य सिंह से है। सूत्र बताते हैं कि हिमाचल के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खु समेत 5 बड़े कांग्रेसी नेताओं की नाराज़गी विक्रमादित्य से है। इन्हें लगता है कि विक्रमादित्य समर्थकों ने ही सुक्खु सरकार गिराने की साजिश रची थी। सूत्र बताते हैं कि सुक्खु और उनके समर्थक नेता अंदरखाने से भाजपा प्रत्याशी कंगना रनौत की पूरी मदद कर रहे हैं। यहां तक कि स्थानीय प्रशासन भी कंगना के पक्ष में कदमताल करता नज़र आ रहा है।
’ये दौरे फिज़ा भी क्या खूब है, मौसम सुहाना है और सिर पर कड़ी धूप है, जिन बागवां पर पहले वे इतराते थे, आज उसकी खुशबुओं से ये चेहरा विद्रूप है’
नए सियासी मिथक गढ़ने के उस्ताद बाजीगर नरेंद्र मोदी से क्या वाकई इस दफे कोई चूक हो गई? आखिरकार क्यों भरी जनसभा में उन्हें अदानी और अंबानी पर सीधा हल्ला बोलना पड़ा। आइए इस मामले की सूत्रधार कांग्रेस की ओर लौटते हैं, जिनके तमाम खाते फ्रीज़ हैं और इस चुनाव में वो भारी आर्थिक तंगी से जूझ रही है। कांग्रेस से जुड़े एक बेहद भरोसेमंद सूत्र के दावे पर यकीन करें तो कांग्रेस कोषाध्यक्ष अजय माकन ने देश के सबसे शीर्ष उद्योगपति मुकेश अंबानी को फोन कर उनसे चुनावी मदद की गुहार लगाई थी। कहते हैं इस मांग पर मोटा भाई उबल पड़े उन्होंने माकन से दो टूक कहा कि ’यह आपकी कैसी नीति है, एक ओर तो राहुल गांधी हमारे खिलाफ सावर्जनिक मंचों से आग उगलते हैं और दूसरी ओर आप हमसे मदद की अपेक्षा भी रखते हैं।’ जब बात बनी नहीं तो माकन सोनिया गांधी के पास अपनी गुहार लेकर पहुंचे। सूत्रों की मानें तो इसके बाद सोनिया के निजी सचिव माधवन ने मोटा भाई से सोनिया की बात करानी चाही पर कहते हैं मुकेश लाइन पर ही नहीं आए। इसके बाद सोनिया ने मुकेश को एक भावुक चिट्ठी लिखी, जिसमें अंबानी परिवार से गांधी परिवार के पुराने रिश्तों की दुहाई थी। जब मुकेश को यह पत्र मिला तो उन्होंने पलट कर सोनिया को फोन किया और राहुल के व्यवहार को लेकर अपनी नाराज़गी व्यक्त की। कहते हैं मुकेश ने यह भी कहा कि ’वे अनंत की सगाई पर गांधी परिवार को आमंत्रित करने के लिए अपने परिवार के साथ दिल्ली आकर सोनिया, राहुल, प्रियंका से मिलना चाहते थे, पर उन्हें मिलने का समय ही नहीं दिया गया।’ सोनिया ने बात टालते हुए कहा-’बच्चे हैं बच्चों से गलतियां हो जाती हैं।’ गिले-शिकवे दूर हुए और कहते हैं इसके बाद अंबानी ने कांग्रेस की ओर मदद का हाथ बढ़ा दिया। पर जैसे ही यह खबर भाजपा शीर्ष को लगी एक बड़े भगवा नेता का फोन मुकेश अंबानी को चला गया। जिनका दो-टूक कहना था कि ’आपको काम हमसे लेना है और मदद दुश्मनों की करनी है यह कहां का दस्तूर है?’ कहते हैं इस पर मोटा भाई ने सफाई देते हुए कहा कि ’हमने जितनी मदद आपकी पार्टी को दी है उसकी दस फीसदी मदद भी कांग्रेस को नहीं हुई है।’ मोटा भाई इस बात को लेकर हैरत में थे कि आखिरकार कांग्रेस के अंदर की खबर लीक कैसे हुई? जबकि इस बात की खबर गांधी परिवार के अलावा खड़गे, केसी वेणुगोपाल, अजय माकन और माधवन को ही थी।
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’देह के पार भी एक दुनिया है क्या तुम इसे समझ सकते हो,
मां-बहन, दोस्त जैसे खूबसूरत रिश्ते क्या तुम गढ़ सकते हो
मौजूदा दौर की सियासत छलावों, बतकहियों और जुमलों का एक ऐसा बाज़ार है जिसने सुबह की पहली धूप, थोड़ी नर्म बोसीदा हवाएं और नहायी दूब के सिर पर बैठी चमकती ओस की बूंदों की तासीर को भी मैला कर दिया है। नारी सशक्तिकरण और महिला आरक्षण के दिखावटी अलख जगाने वाले राजनेता नारी भक्षण के नए हथियार बन रहे हैं। सबसे बड़ा सवाल है कि रेवन्ना के सेक्स स्कैंडल का मामला खुला कैसे। दरअसल, एक 68 वर्षीय महिला रसोइया रेवन्ना के घर लंबे समय से काम कर रही थी पर प्रज्वल ने हैरतअंगेज़ तरीके से उसे भी अपनी यौन लिप्सा का शिकार बना लिया और साथ ही अंतरंग पलों के उसके कुछ वीडियो भी बना लिए। सूत्र बताते हैं कि इस महिला रसोइया का बेटा रेवन्ना के सुरक्षाकर्मियों में से एक था। जब बेटे को मां पर हुए अत्याचार का पता चला तो वह आपा खो बैठा। सूत्रों का दावा है कि अपने को संयत रखते उस सुरक्षाकर्मी युवक ने अगले दिन रेवन्ना का वो मोबाइल फोन ही गायब कर दिया जिससे वह वीडियो बनाता था और यह फोन लेकर वह सीधे हासन के कांग्रेस नेता के पास जा पहुंचा और उनसे कहा कि मुझे डीके शिवकुमार से मिलना है, मैं सिर्फ उन्हीं पर भरोसा कर सकता हूं। कहते हैं हासन के उस कांग्रेसी नेता ने उस सुरक्षाकर्मी को अपनी गाड़ी में बिठाया और वे दोनों उसी रात डीके से मिलने बेंगलुरू के लिए निकल गए। जब इस फोन को ’डिकोड’ किया गया तो उसमें 2976 आपत्तिजनक वीडियो मिले जो तकरीबन 1800 महिलाओं के यौन शोषण से जुड़े थे। इसी फोन में ऐसे 18 हजार फोटो भी बरामद किए गए। कहा जाता है कि इस सुरक्षाकर्मी ने फोन के एवज में अपने परिवार के लिए सुरक्षा मांगी जो कि उन्हें मुहैया कराई गई।
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पूर्णिया लोकसभा चुनाव में भले ही लालू यादव के स्वांगों के आगे कांग्रेस चित हो गई हो पर पप्पू यादव ने वहां घुटने नहीं टेके हैं। उन्होंने निर्दलीय मैदान में उतर कर राजद की अधिकृत उम्मीदवार बीमा भारती और जदयू के निवर्तमान सांसद संतोष कुशवाहा के लिए मैदान मुश्किल बना दिया है। सूत्रों की मानें तो कांग्रेस में भी बड़ी मुश्किल से पप्पू यादव की एंट्री हुई थी क्योंकि न तो लालू यादव न ही उनके अनुचर अखिलेश सिंह चाहते थे कि पप्पू कांग्रेस ज्वॉइन करें पर प्रियंका गांधी के आश्वासन के बाद पप्पू यादव ने अपनी ’जन अधिकार पार्टी’ का विलय कांग्रेस में कर दिया और पूर्णिया से कांग्रेस के अधिकृत उम्मीदवार के तौर पर चुनावी मैदान में उतर गए। पर ऐन वक्त एक बड़ा सियासी दांव चलते हुए लालू ने कभी नीतीश के बेहद करीबी रहीं और जदयू से आई बीमा भारती को पूर्णिया से टिकट दे दिया और कांग्रेस हाईकमान से कहा कि ’यह सीट तो कभी कांग्रेस के कोटे में थी ही नहीं।’ दरअसल, लालू नहीं चाहते थे कि सीमांचल से कोई और बड़ा यादव नेता उभरे। लालू की बैचेनी की बानगी तब दिखी जब उनके पुत्र तेजस्वी यादव बीमा भारती के नामांकन के लिए हेलीकॉप्टर से उड़ कर सीधे पूर्णिया पहुंचे।
यूं तो लालू यादव राहुल गांधी की तारीफों में अक्सर कसीदे पढ़ते नज़र आ जाते हैं पर भीतरखाने से वे कांग्रेस का खेल बिगाड़ने की जुगत भिड़ा रहे हैं। दरअसल, लालू नहीं चाहते कि कांग्रेस से कोई यादव या मुसलमान नेता उभर कर सामने आए जो कल को उनके पुत्र तेजस्वी यादव के समक्ष कोई चुनौती पेश कर सके। सो, उन्होंने बड़ी तिकड़म भिड़ा कर कांग्रेस से उनकी जिताऊ सीटें लेकर उसकी जगह भागलपुर, पटना साहिब, पश्चिम चंपारण और महाराजगंज जैसी कमजोर सीटें पार्टी के समक्ष परोस दीं। सूत्रों की मानें तो लालू को उनके इस कार्य में उनके पक्के हनुमान अखिलेश सिंह का भी पूरा साथ मिल रहा है जो इत्तफाक से बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष भी हैं और उन्हें अध्यक्ष बनाने में लालू यादव की एक महती भूमिका मानी जाती है। पप्पू यादव को पूर्णिया सीट पर झटका देने के बाद लालू ने इसके साथ लगी कटिहार सीट पर भी अपनी नज़रें जमा रखीं थीं। वे नहीं चाहते थे कि इस दफे यहां से कांग्रेस के तारिक अनवर चुनाव में उतरें। तारिक की जगह लालू अपने बेहद भरोसेमंद अहमद अशफाक करीम को चुनावी मैदान में उतारना चाहते थे जिनका यहां मेडिकल कॉलेज भी है। करीम राज्यसभा सांसद भी रह चुके हैं। दुबारा जब करीम राज्यसभा जाने में कामयाब नहीं हो पाए तो लालू ने उन्हें भरोसा दिया था कि ’वे उन्हें लोकसभा का चुनाव लड़वाएंगे।’ पर कांग्रेस तारिक अनवर के नाम पर अड़ गई। कांग्रेस ने कहा कि ’पिछले चुनाव में तारिक 5 लाख से ज्यादा वोट लाए थे। सो उन्हें दुबारा मौका नहीं दिया जाना उनके साथ बड़ी नाइंसाफी होगी।’ इस मामले में सीधे सोनिया गांधी को हस्तक्षेप करना पड़ा तब कहीं जाकर लालू मानें।
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आप नीतीश कुमार को चाहे लाख ‘पलटीमार’ कह गरिया लें, पर सियासी बैरोमीटर पर उनकी अचूक पकड़ की आप अनदेखी नहीं कर सकते। सियासी स्वांग भरने में उनकी दक्षता का हर कोई उतना ही कायल है। नीतीश के करीबियों का मानना है कि ’इस 22 जनवरी को यानी अयोध्या में श्रीराम के प्राण प्रतिष्ठा समारोह के दिन नीतीश कोई नया धमाका कर सकते हैं।’ वैसे तो तेजस्वी यादव के भी सब्र का बांध टूटता जा रहा है, नीतीश लंबे समय से बिहार में मंत्रिमंडल का विस्तार टाले जा रहे हैं, अभी पिछले दिनों जब तेजस्वी ने नीतीश से इस बाबत ताजा अपडेट लेना चाहा तो चाचा ने सहजता से भतीजे को यह कह कर टरका दिया-’अभी खरमास चल रहा है, 14 के बाद देखेंगे।’ स्थितियों की नज़ाकत को भांपते हुए तब लालू यादव सक्रिय हो गए, नीतीश को मनाने की गरज से लालू ने आनन-फानन में ‘इंडिया गठबंधन‘ के सहयोगी दलों से बात कर नीतीश को गठबंधन का संयोजक बनाने की बात चलाई। शरद पवार से लेकर उद्धव ठाकरे तक मान गए, एक समय तो अरविंद केजरीवाल भी तैयार थे, पर इस प्रस्ताव पर ममता बनर्जी की सहमति हासिल नहीं हो पाई, और यह पेंच फंस गया। लालू चाहते थे कि ’नीतीश इंडिया गठबंधन के संयोजक बन कर घूम-घूम कर देश भर में भाजपा विरोध की अलख जगाएं और बिहार में अपना राज पाट तेजस्वी को सौंप दें यानी तेजस्वी सीएम तो लल्लन सिंह को राज्य का डिप्टी सीएम बना दिया जाए।’ पर नीतीश लल्लन को लेकर इन दिनों आष्वस्त नहीं है, उन्हें लल्लन की लालू यादव से नजदीकियां रास नहीं आ रही है। माना जाता है कि जदयू के कोई 15 विधायक व 6 सांसद सतत लल्लन के संपर्क में हैं। कांग्रेस के भी कोई 8 विधायक अशोक चौधरी के संपर्क में बताए जाते हैं। भाजपा व राजद दोनों ही दल इस तल्ख सच से वाकिफ हैं कि अगर बिहार में लोकसभा के साथ विधानसभा के चुनाव करा लिए जाते हैं तो इसके सबसे बड़े लाभार्थी नीतीश ही होंगे, जदयू की सीटें बढ़ जाएंगी। वैसे भी नीतीश इस दफे 125 सीटों पर विधानसभा का चुनाव लड़ना चाहते हैं ताकि बिहार की राजनीति में उनकी पूछ बनी रहे। वहीं भाजपा की राज्य इकाई का मानना है कि ’अगर इस दफे भाजपा अकेले अपने दम पर चुनाव में जाती है तो पार्टी का आधार और वोट प्रतिशत दोनों ही बढ़ जाएगा,’ भाजपा हाईकमान भी इसी थ्योरी पर कान धर रहा है।