झारखंड में हेमंत सोरेन सरकार पर लगातार ईडी की तलवार लटक रही है, सवाल भी लगातार उठ रहे हैं कि हेमंत सोरेन अगर जेल चले गए तो राज्य सरकार की बागडोर क्या उनकी पत्नी कल्पना सोरेन संभालेंगी? लेकिन इन्हीं कयासों के बीच राज्य के गवर्नर सीपी राधाकृष्णन छुट्टियों पर अपने गृह राज्य तमिलनाडु चले गए हैं, सोमवार से पहले उनके रांची लौटने की संभावना बेहद क्षीण है। इसी 31 दिसंबर को हेमंत सोरेन के अतिविश्वासी विधायक सरफराज अहमद ने अपनी विधानसभा सीट से अचानक इस्तीफा दे दिया, कयास लगाए जा रहे हैं कि उन्होंने यह सीट कल्पना सोरेन के चुनाव लड़ने के लिए रिक्त की है। पर यह एक सामान्य सीट है। वैसे भी झारखंड में चुनाव दिसंबर 2019 में संपन्न हुए थे और विधानसभा की पहली बैठक 6 जनवरी 20 को हुई थी। अब उप चुनाव भी उसी सूरत में हो सकते हैं जब विधानसभा का कार्यकाल एक साल से ज्यादा का बचा हो। 80 सदस्यीय झारखंड विधानसभा में सोरेन को 47 विधायकों का बहुमत हासिल है। साथ ही यह संवैधानिक तौर पर कहीं उद्दृत भी नहीं कि अगर कोई सीएम किसी वजह से जेल चला जाता है तो जेल से अपना काम काज नहीं चला सकता है। कल्पना सोरेन एक गैर आदिवासी हैं, मूलतः ओडिशा की रहने वाली हैं, उन्हें मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ दिलाना या नहीं दिलाना पूरी तरह से राज्यपाल के विवेक पर निर्भर करता है, सो हेमंत सोरेन ने क्या सोच कर सरफराज अहमद से इस्तीफा दिलवाया है यह तो बेहतर वही बता सकते हैं।
फितरतों के समंदर में दोनों ने साथ डुबकी लगाई है’इन पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजों ने भगवा पेशानियों पर गुमान की वो चंद रेखाएं खींच दी हैं जिससे मिल कर 2024 का चुनावी चेहरा आकार पाने लगा है, भाजपा रणनीतिकारों ने अपने पराक्रम से ‘मंडल‘ व ‘कमंडल’ दोनों ही राजनीति को एक साथ साधने की बाजीगरी दिखाई है। तीनों राज्यों में मुख्यमंत्री व उप मुख्यमंत्रियों के ऐलान में जहां जातीय संतुलन को साधने की बाजीगरी हुई है, वहीं आने वाले नए वर्ष को भक्ति रस में सराबोर करने की पुरजोर तैयारी है। इस 22 जनवरी को अयोध्या में पीएम के करकमलों से ऐतिहासिक राम मंदिर का उद्घाटन होना है, वहीं इसके अगले ही महीने यानी फरवरी में पीएम आबूधाबी में बन रहे भव्य हिंदू मंदिर का उद्घाटन करेंगे। संयुक्त अरब अमीरात की राजधानी आबूधाबी से लगे इस भव्य मंदिर के निर्माण में ही 700 करोड़ रूपयों का खर्च आया है। इस मंदिर का निर्माण ’बोचासनवासी अक्षर पुरूषोतम स्वामिनारायण संस्था’ के द्वारा किया गया है। 10 फरवरी से यहां ’फेस्टिवल ऑफ हारमनी’ की शुरूआत होगी और फिर 14 फरवरी को पीएम मोदी द्वारा इस मंदिर का उद्घाटन किया जाएगा। इसके अलावा अयोध्या के राम मंदिर का प्रसाद घर-घर वितरित करने की भी बड़ी योजना है, भाजपा विरोधी दलों के समक्ष भक्ति की शक्ति का नज़ारा प्रस्तुत करने का इरादा रखती है।
कांग्रेस में एक बड़े फेरबदल की आहट है। सुना जा रहा है कि राहुल गांधी राज्यों के बड़े क्षत्रपों को दिल्ली लाना चाहते हैं और उनकी जगह अपेक्षाकृत युवा नेताओं को वहां की बागडोर सौंपना चाहते हैं। माना जाता है कि इस कड़ी में अशोक गहलोत व भूपेश बघेल जैसे स्थापित नेताओं को दिल्ली लाया जा सकता है और इन्हें पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव बनाया जा सकता है। आने वाले कुछ समय में अशोक गहलोत को पार्टी के राष्ट्रीय कोशाध्यक्ष की जिम्मेदारी भी मिल सकती है। कमलनाथ फिलवक्त दिल्ली आने को तैयार नहीं है, पर राहुल मध्य प्रदेश में भी पार्टी की कमान अपेक्षाकृत किसी युवा नेता को सौंपना चाहते हैं। दिग्विजय सिंह खड़गे की ओर उम्मीद भरी निगाहों से देख रहे हैं, वे खड़गे को याद दिलाना चाहते हैं कि ’उन्होंने खड़गे की अध्यक्षीय उम्मीदवारी के खिलाफ अपना पर्चा नहीं भरा था, अब दिग्विजय इसका इनाम चाहते हैं।’
सियासी बियावां में डाले जाने के बावजूद गांधी परिवार के एक और देदीप्यमान चिराग वरुण गांधी भी नेपथ्य के धूलकणों से अपने ललाट पर सुर्खियां लिखना और बटोरना जानते हैं, भाजपा के सांसद होने के बावजूद भी वह किसानों व नौजवानों के लिए खुल कर अपनी बात रखने के जाने जाते रहे हैं। अभी पिछले दिनों पीलीभीत की कई जनसभाओं में उनका एक शेर सुर्खियों की सवारी गांठता रहा, अर्ज किया है-
’तेरी मोहब्बत में हो गए फ़ना
मांगी थी नौकरी, मिला आटा, दाल चना’। सोशल मीडिया पर उनका यह शेर कुछ इस कदर वायरल हुआ कि आनन-फानन में इसे 19 करोड़ इम्प्रेशन मिल गए, तेलांगना से लेकर राजस्थान की चुनावी सभाओं में इस शेर का जम कर इस्तेमाल हुआ, तेलांगना में कांग्रेसी नेताओं ने इसे चंद्रशेखर राव के खिलाफ इस्तेमाल किया वहीं राजस्थान में इसे सीएम गहलोत के खिलाफ इस्तेमाल किया गया। विद्रोही स्वर की तान छेड़ने वाले वरुण का यह षेर क्या दिल्ली के निज़ाम की ओर भी इशारा कर रहा है? (एनटीआई-gossipguru.in)
बिहार में राजद व जदयू दोनों ही दल इन दिनों ओबीसी जातियों के प्रेम में आकंठ डूबे हैं, इसे देखते हुए प्रदेश की अगड़ी जातियों में स्वतः ही एक नाराज़गी पनपने लगी थी, यह ग्राउंड रिपोर्ट जैसे ही बिहार के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को मिली उन्होंने आनन-फानन में पटना स्थित अपने आवास पर पार्टी के अगड़े नेताओं की एक अहम बैठक बुला ली और उन्होंने उनके उग्र तेवर को शांत करने के लिए अपनी ओर से कुछ अहम प्रस्ताव रखे। माना जाता है कि तेजस्वी ने इन अगड़े नेताओं से वादा किया है कि ’2024 के चुनाव में वे अगड़ी जातियों को पर्याप्त महत्व और टिकट देंगे।’ उन्होंने कहा कि ’यह पहली बार होगा जब राजद किसी भूमिहार नेता को जहानाबाद से मैदान में उतारेगा, दरभंगा से किसी ब्राह्मण नेता को टिकट मिलेगा और राज्य के कम से कम 4 लोकसभा सीटों पर राजपूत उम्मीदवार उतारे जाएंगे।’ तेजस्वी ने जोर देकर इन अगड़े नेताओं से कहा कि ’राजद व जदयू दोनों ही दल अगड़ी जातियों को साथ लेकर चलेंगे क्योंकि ये जातियां चाहे संख्या बल में कम ही क्यों न हो, ये अन्य जातियों के मतदाताओं को भी प्रभावित करने का माद्दा रखते हैं।’ वहीं लालू व नीतीश में बिहार की 40 लोकसभा सीटों के अनौपचारिक बंटवारे ने कांग्रेस का धर्मसंकट बढ़ा दिया है। सूत्रों की मानें तो लालू व नीतीश ने तय कर लिया है कि ’राजद व जदयू 17-17 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे। चार सीट वे कांग्रेस के लिए छोड़ेंगे, एक सीट भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी के लिए और एक सीट माले के लिए होगी।’ वहीं कांग्रेस के कम से कम 8-10 नेता टिकट के लिए प्रबल दावेदारी पेश कर रहे हैं।
भाजपा के बड़े चाणक्य व चंद्रगुप्त को भी सियासी ककहरा कंठस्थ कराने वाले शिवराज सिंह चौहान की बातें ही अलहदा है। कहां तो उन्हें ’कट टू साइज’ करने की तैयारी थी, पर प्रदेश में जरा हवा क्या बदली शिवराज का हेलिकॉप्टर रुकने का नाम नहीं ले रहा। सुबह सवेरे ही शिवराज अपने हेलिकॉप्टर पर सवार होकर चुनाव प्रचार के लिए निकल जाते हैं जिस भाजपा प्रत्याशी के यहां उनकी सभा होनी होती है उसे वे अपने साथ बिठा लेते हैं, रास्ते भर क्षेत्र का गणित-भूगोल समझते हैं और अपने भाषण में उन्हीं स्थानीय मुद्दों का पुट दे देते हैं। सभा समाप्त होती है, अगली सभा जहां होनी है वहां का प्रत्याशी अब शिवराज के बगलगीर हो जाता है, फिर कहानी रिप्ले होती है। अपने प्रत्याशी को सीएम के हेलिकॉप्टर से उतरते देख आम जनता अभिभूत हो जाती है कि ’सीएम के कितना करीबी है हमारा नेता, हम जिताएंगे तो वह मंत्री जरूर बनेगा।’ और बार-बार इसी पटकथा की पुनरावृति होती है, इससे शिवराज की सभाओं में भीड़ भी जुट जाती है और लोगों में जोश भी बना रहता है।
सेक्स एजुकेशन के नए टीचर बन कर अभ्युदित हुए नीतीश कुमार भले ही अभी 72 साल के ही हुए हों पर उन्हें भूलने की बीमारी खूब लग गई है। ऐसा ही एक वाक्या अभी पिछले दिनों घटित हुआ। नीतीश कुमार के एक पुराने सहयोगी और उनके सरकार में मंत्री रहे एक नेता का हाल में निधन हो गया। भावुक हो गए नीतीश अपने प्रिय नेता की श्रद्धांजलि सभा में पहुंचे, जहां उस नेता की एक बड़ी सी तस्वीर रखी थी और नीतीश को तस्वीर पर फूल अर्पित करने थे। नीतीश ने हाथों में फूल उठाए और उन फूलों को तस्वीर पर अर्पित करने के बजाए तस्वीर के साथ खड़े नेता पुत्र पर अर्पित कर दिया।
भाजपा की 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए उम्मीदवारों की सूची को अंतिम रूप दिए जाने का कार्य जारी है। मथुरा संसदीय सीट की सांसद हेमा मालिनी पिछले दिनों 75 वर्ष की हो गई हैं और भाजपा की नीति है 75 पार के लोगों को सक्रिय राजनीति से रिटायर कर मार्गदर्शक मंडल में शामिल करने की, सो कयास लग रहे हैं कि इस बार मथुरा से हेमा मालिनी का टिकट कट सकता है। भाजपा से जुड़े सूत्रों की मानें तो 2024 के चुनाव में कंगना रनौत मथुरा से हेमा की जगह ले सकती हैं। भले ही कंगना ने अबतलक भाजपा ज्वॉइन न की हो पर वह हिंदुत्व के मुद्दे पर प्रखर रही हैं, संघ के लाइन को आगे रखती हैं और पीएम मोदी की अनन्य प्रशंसकों में से हैं। पिछले दिनों कंगना का वह बयान भी सुर्खियों की सवारी गांठता रहा, जब उन्होंने कहा कि-’भगवान श्रीकृष्ण की कृपा रही तो वह चुनाव जरूर लड़ेंगी।’ कुछ दिनों पहले वह योगी आदित्यनाथ व उत्तराखंड के सीएम पुष्कर धामी को अपनी हालिया फिल्म ’तेजस’ दिखातीं नज़र आई थीं। भाजपा में उनके तेज के सब पहले से ही कायल हैं।
मध्य प्रदेश का चुनावी महासमर इस दफे ‘आंसू’ और ‘इमोशंस’ के हाई वोल्टेज ड्रामा से तरंगित है। शिवराज इस दफे अपने राजनैतिक कैरियर की सबसे मुश्किल लड़ाई लड़ रहे हैं, घर व बाहर दोनों ही फ्रंट पर। वे जानते हैं कि इस दफे के चुनाव में महिला और आदिवासियों के वोट निर्णायक रहने वाले हैं। सो, शिवराज जब भी महिला वोटरों को संबोधित कर रहे होते हैं तो वे अतिशय भावुक हो जाते हैं, वे महिला वोटरों से आंखों में आंसू भर कर कहते हैं-’आप सबको ऐसा भैया नहीं मिलेगा, बताओ तो आपके भैया से ऐसी क्या गलती हुई जो आपने बिसरा दिया…।’ कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार कमलनाथ अब भैया की जितनी एक्टिंग तो नहीं कर सकते, फिर भी वे अपनी ओर से भरपूर कोशिश कर रहे हैं, कमलनाथ भावुक होने का स्वांग भरते हुए सभाओं में कह रहे हैं कि ’मैं पूछना चाहता हूं जनता से कि कौन सा पाप मैंने किया है, चाहो तो आप कमलनाथ का साथ मत दो, कांग्रेस का साथ भी मत दो, पर सत्य का साथ तो दो।’ यशोधरा राजे सिंधिया भले ही इस दफे का विधानसभा चुनाव नहीं लड़ रही हैं, पर वो शिवपुरी के इलाके में थोकभाव में चुनावी सभाओं को संबोधित करते हुए भावुक हुई जा रही हैं और अपनी स्वर्गीय राजमाता विजयाराजे सिंधिया को याद कर भावुक हो रही हैं और मां के नाम पर एक तरह से भाजपा के पक्ष में वोट देने की अपील कर रही हैं।
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महाराष्ट्र में भी निरंतर जातीय जनगणना की मांग उठ रही है, वहीं केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि यह राज्य सरकार की मर्जी है कि वह जातीय जनगणना कराना चाहती है कि नहीं। महाराष्ट्र में भी भाजपा नीत सरकार है। जबकि देश के सबसे बड़े सूबे यूपी में भाजपा की डबल इंजन की सरकार है। वहां के सीएम योगी ने डंके की चोट पर कहा है कि वे किसी भी कीमत पर जाति आधारित जनगणना नहीं कराएंगे। जबकि केंद्र नीत मोदी सरकार के मन में कहीं न कहीं है कि ’यूपी में कम से कम कास्ट सेंसस होना ही चाहिए।’ योगी आदित्यनाथ इन दिनों राजपूतों के सबसे बड़े नेताओं में शुमार होते हैं, उन्होंने अपने शौर्य बल से इस रेस में राजनाथ सिंह को भी काफी पीछे धकेल दिया है, योगी अपने पूर्ववर्ती गुरू महंत अवैद्यनाथ की जगह नाथ संप्रदाय के सबसे बड़े महंत हैं और उन्हें संघ का पूरा समर्थन भी हासिल है।