किसानों से किनारा, महिलाओं का आसरा

March 06 2018


चुनावी नतीजों की तपिश ने शिवराज को भी पैंतरे बदलने पर मजबूर कर दिया है, वैसे भी पिछले कई महीनों से शिवराज अपनी किसान हितैषी छवि से बाहर आने की कोशिश में जुटे थे, शिवराज इन दिनों ’राग नारी’ गाने में जुट गए हैं। पुरूशों के मुकाबले राज्य में महिलाओं का लिंग अनुपात 49 फीसदी के आसपास है, इतिहास गवाह है कि यहां की महिलाओं के वोट भी एकतरफा थोकभाव में पड़ते हैं, जो किसी सरकार को गिराने या बनाने में अहम भूमिका निभाते हैं। सो, इस बात को भांपते हुए कि महिलाएं किंचित धार्मिक प्रवृत्ति की होती हैं, शिवराज पिछले कुछ समय से धर्म-कर्म की बातें ज्यादा करने लगे हैं। धार्मिक अनुष्ठानों में पहले भी वे बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे, पर अब तो जैसे शिवराज ने रामनामी दुशाला ही ओढ़ ली है। किसानों से अपना दामन बचाने के पीछे शिवराज का यह तर्क हो सकता है कि जब से केंद्र ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना लागू कर दी है तब से किसानों की फसल क्षतिपूर्ति व ऋण माफी का मसला भी राज्य सरकार के अधीन न रहकर अब सीधा केंद्र के पास चला गया है। वैसे भी शिवराज सरकार के ऊपर किसानों का पिछला ही करीब 2600 करोड़ रुपयों का बकाया है, और किसानों को देने के लिए राज्य सरकार का खजाना खाली है, एपेक्स बैंक के पास पैसा नहीं है, सिर्फ वर्ष 2016 की ही बात करें तो इस साल तकरीबन 18 लाख किसानों का फसल बीमा योजना के अंतर्गत बीमा हुआ था, त्रासद रहा कि फसल क्षतिपूर्ति की किसानों को उतनी रकम भी नहीं मिल पाईं, जितनी की उन्होंने अपनी बीमा की प्रीमियम राशि अदा की थी, अब किसानों की नाराज़गी का ठीकरा शिवराज पर फूट पड़ा है, सो अब वे महिलाओं की शरण में चले गए हैं, शायद यह भी भूल गए हैं कि किसान परिवारों में भी महिला वोटरों की अच्छी खासी तादाद होती है।

 
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