हम चीन का नाम लेने से डरते क्यों हैं?

July 01 2020


कभी मोदी और भाजपा की आंखों के तारे हुआ करते थे प्रशांत किशोर, 2014 में भाजपा की चुनावी रणनीति बुनने में उनकी भी एक अहम भूमिका रही थी, उनके एक ताजा-ताजा ट्वीट पर जरा नज़र डालिए, पीके कहते हैं-’कोरोना से लड़ाई 21 दिन में जीती गई और चाईना से तो लड़ने कोई आया ही नहीं। अब बचा आर्थिक विकास तो इसे सरकारी डेटा वाले ही ठीक कर लेंगे… चिंता की कोई बात नहीं है क्योंकि सरकार बता रही है कि सब ठीक है। बाकी आत्मनिर्भर बनाने के लिए चुनाव प्रचार से जुड़े रहिए।’ इस तंज की तंगदिली से मुंह भी चुरा लें तो भी यह तो सच है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत-चीन तनाव पर सर्वदलीय बैठक में कहा कि ’न कोई हमारे क्षेत्र में घुसा, न ही किसी ने हमारी चौकी पर कब्जा किया। कोई हमारी एक इंच जमीन की तरफ भी आंख उठा कर नहीं देख सकता।’ पर विडंबना देखिए कि वहीं सरकार के एक मंत्री श्रीपद नायक जो रक्षा राज्य मंत्री भी हैं, नायक जब इस सर्वदलीय बैठक से चंद रोज पूर्व अपने गृह प्रदेश गोवा पहुंचते हैं तो वहां पत्रकारों से बात करते हुए दो टूक कहते हैं-’हम उन्हें बख्शेंगे नहीं, हमारे यहां घुस कर हमारे सैनिकों पर हमला किया है, यह चीन की पूर्व नियोजित साजिश है।’ वहीं पिछले एक महीने से सरकार भक्त न्यूज चैनल भी खूब बजा रहे थे और तस्वीरें दिखा रहे थे कि लद्दाख की पेगांग झील (जहां ’थ्री इडिएट्स’ फिल्म की शूटिंग हुई थी) जो 134 किलोमीटर लंबी है, चीन ने इसके दो-तिहाई हिस्से पर कब्जा जमा लिया है। यहां अब भी चीनी सेना का जमावड़ा है जिससे आम भारतीय नागरिक झील के आसपास भी नहीं फटक सकते। सवाल यह भी उठता है कि 15 जून को भारत-चीन सीमा पर खूनी झड़प किसकी जमीन पर हुई थी, हमारे जवान तो कम से कम चीन के हिस्से में नहीं घुसे थे, यानी चीन हमारे हिस्से में आकर हमारे सैनिकों पर हमला बोला था। चीन अब भी गाल बजा रहा है कि गालवान घाटी चीन की है, हम इसका माकूल जवाब क्यों नहीं देते?

 
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