बंगला किसका? चिराग या पारस का?

July 28 2021


जिस मोदी और भाजपा के लिए चिराग पासवान ने अपना सब कुछ यानी पूरी राजनीति दांव पर लगा दी वहां से छले जाने पर वे खुद को बेहद ठगा महसूस कर रहे हैं। उनके पास तेजस्वी का खुला प्रस्ताव है कि वे राजद में आ जाएं और वे चाहे तो अपनी पार्टी को भी राजद में मिला दें। एक तो चिराग अभी भी अधर में है, उन्हें नहीं मालूम कि उनके पिता द्वारा बनाई गई ‘लोक जनशक्ति पार्टी’ के बारे में चुनाव आयोग क्या फैसला लेगा, पर उन्हें लगता है कि चूंकि पार्टी संगठन मजबूती से उनके पीछे खड़ा है, सो पार्टी तो वापिस उन्हीं के पास आएगी। चिराग जानते हैं कि तेजस्वी के साथ जाने से उन्हें सियासी रूप से नुकसान उठाना पड़ सकता है, क्योंकि कालांतर में उनके पिता ने भी जब-जब लालू का थामन थामा था, लोक जनशक्ति का चुनावी प्रदर्शन अपने निचले स्तर पर पहुंच गया था। क्योंकि राज्य में यादव और पासवान दोनों ही मार्शल कौमें हैं जिनकी आपस में कभी बनती नहीं। चिराग अब भी मोदी की ओर उम्मीद भरी निगाहों से देख रहे हैं कि वही उनको इस सियासी झंझावत से उबार सकते हैं। चिराग जानते हैं कि उनकी पार्टी के चार सांसद यानी पशुपति पारस, वीणा देवी, चंदन सिंह और महबूब अली कैसर कभी भी जदयू ज्वॉइन कर सकते हैं। पर उनके चचेरे भाई प्रिंस पासवान लौट के उनके पास आ सकते हैं। फिलहाल तो चिराग का 12 जनपथ का उनका बंगला भी अधर में लटका है। सुनने में आ रहा था कि सरकार ने यह बंगला उनके चाचा पशुपति पारस के केंद्रीय मंत्री बनने के बाद उन्हें आबंटित कर दिया था, पर लोक-लाज के भय से पशुपति पारस ने वह बंगला लेने से मना कर दिया। अब जदयू कोटे से केंद्रीय इस्पात मंत्री आरसीपी सिंह इस बंगले के लिए कोशिश कर रहे हैं ताकि नीतीश कुमार के अहं पर मरहम लगाया जा सके, गेंद फिलहाल मोदी के पाले में है कि क्या वे अब भी चिराग को अपना हनुमान मानते हैं?

 
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