चीन हमसे चाहता क्या है?

July 01 2020


चीन आखिरकार भारत से शत्रुता क्यों पालना चाहता है? एक बदले हुए परिदृश्य में सुपर पॉवर बनने की होड़ भी नए सिरे से परिभाषित हो गई है, पूरी दुनिया का चलन और इसका शेप भी बॉयोपोलर हो गया है। और ये बेहद स्पष्ट तौर पर चीन और अमेरिका के बीच बंट गया है। पहले पाकिस्तान अमेरिका का ही एक पिट्टू था और अफगानिस्तान के खिलाफ जंग में अमेरिका ने पाक को ही अपना बेस बनाया हुआ था। अमेरिका से ठोकर खाने के बाद, बाद के दिनों में पाकिस्तान चीन के पाले में आ गया। चीन की नज़र भारत को भी अपना शागिर्द बनाने पर टिकी थी। पिछले 6 वर्षों में मोदी से हुई चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की 18 मुलाकातों से भी चीन ने कुछ ऐसा ही अंदाजा लगाया हुआ था। वैसे भी भारत का राजनैतिक इतिहास उसे हमेशा से रूस के ज्यादा करीब बताता है, पर एक दौर आया जब नरसिंह राव के नेतृत्व वाली सरकार में भारत आर्थिक उदारवाद का नया प्रर्वतक बन कर उभरा और अमेरिका से उसकी नजदीकियां बढ़ने लगी, अटल बिहारी वाजपेयी के काल में भी यह ट्रेंड बना रहा, भारत अमेरिका के करीब और ज्यादा करीब आता गया। चीन भी चुपचाप यह सब देखता रहा कि मोदी पहले अमेरिकी राष्ट्रपति से मिलते हैं, इसके पश्चात चीनी राष्ट्रपति से। पर जब मोदी ने खुल कर ‘नमस्ते ट्रंप’ किया तो चीन की बौखलाहट बढ़ गई और रही-सही कसर निकाल दी भाजपा के आईटी सेल ने जिसने कोरोना का जिम्मेदार चीन के वुहान शहर को ठहरा दिया और इसके बाद चीन हमारे पीठ में छुरा घोंपने की अपनी पुरानी नीति पर अमल करने लग गया।

 
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