’तपती धूप में, भूखे अपने घरों के लिए जब वे मीलों चले होंगे
तब मन की आग भभकी होगी, संकल्प नए इरादों में ढले होंगे’
जम्हूरियत का अंदाजे़बयां भी निराला है, दोस्त कब दुश्मन बन जाए, दुश्मनों से कब हाथ मिलाने पड़ जाए, कुछ मालूम नहीं। 2010 की एक जनसभा में नीतीश कुमार कहते हैं ’जब बिहार में सुशील मोदी हैं तो यहां किसी दूसरे मोदी की जरूरत नहीं है।’ यहां तक कि अपनी मेहमानवाजी में होने वाले एनडीए के डिनर को भी उन्होंने पटना में सिर्फ इसीलिए रद्द कर दिया था क्योंकि उसमें गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी शामिल होने वाले थे। जब भाजपा ने 2013 में नरेंद्र मोदी को अपना पीएम फेस घोषित किया तो नीतीश ने भाजपा से अपने सारे रिश्ते-नाते तोड़ लिए। पर अब वही सुशासन बाबू न केवल मोदी के साथ स्टेज शेयर कर रहे हैं बल्कि मोदी की मौजूदगी वाली रैलियों में खुलेआम कह रह हैं कि ’यदि एनडीए दोबारा सत्ता में आती है तो मोदी यह सुनिश्चित करेंगे कि बिहार विकसित राज्य बने।’ भाजपा को भी कहीं गहरे यह अहसास है कि इस बार नीतीश के नेतृत्व में एनडीए के लिए बिहार की राह आसान नहीं, चुनांचे इसीलिए भाजपा रणनीतिकारों ने अभी से ’प्लॉन बी’ पर काम करना शुरू कर दिया है, इसका तात्पर्य यह है कि बिहार में एनडीए हारे या जीते पर नीतीश कुमार बिहार के सीएम नहीं होंगे। लेकिन भाजपा नीतीश को ठंडे बस्ते में भी नहीं डालना चाहती, क्योंकि उसे इस बात का भी इल्म है कि नीतीश के बगैर बिहार में 2024 का चुनाव आसान नहीं होगा। भाजपा से जुड़े विश्वस्त सूत्र खुलासा करते हैं कि बिहार चुनाव का अंजाम चाहे कुछ भी हो, पर नीतीश का केंद्रनीत सरकार में मंत्री बनना तय है, और उन्हें रेल जैसे किसी महत्वपूर्ण मंत्रालय से नावाजा जा सकता है जिससे वे एनडीए छोड़ कर कहीं तेजस्वी से गलबहियां न कर बैठें।