टॉयलेट, नया राजनैतिक एजेंडा

May 11 2014


सदियों से उपेक्षित रहा एक मामूली शौचालय आम चुनाव 2014 में एक नया चुनावी एजेंडा गढ़ रहा है, इसकी शुरूआत यूपीए-ढ्ढढ्ढ के उतराद्र्ध में हुई जब केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश ने शौचालय की महत्ता को देवालय से कहीं ज्यादा बड़ा बताया। विभिन्न राजनैतिक दलों ने अपने घोषणा पत्रों में करोड़ों देशवासियों को एक अदद शौचालय देने का वायदा किया है, भाजपा के पीएम पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने तो अपनी कई चुनावी रैलियों में अपने भाषण की शुरूआत भारतीय समाज में शौचालय की उपयोगिता को रेखांकित करते हुए की है, 5 मई को जब मोदी स्मृति ईरानी के पक्ष में अमेठी में रैली करने आए तो उन्होंने गांधी परिवार को उलाहना देते हुए कहा कि ‘अमेठी की कितनी ही महिलाओं को एक अदद शौचालय मयस्सर नहीं, जो एक महिला की गरिमा बनाए रखने में बाधक है।’ मोदी ने यह भी बताया कि गुजरात के स्कूलों में लड़कियां सिर्फ इस वजह से स्कूल छोड़ दिया करती थीं, क्योंकि वहां के हजारों सरकारी स्कूलों में उनके लिए अलग टॉयलेट की व्यवस्था नहीं थी, इसी बात को मद्देनज़र रखते हुए उन्होंने स्कूलों में 70 हजार शौचालयों का निर्माण करवाया। विश्वस्त सूत्र बताते हैं कि अगर मोदी वाराणसी से निर्वाचित होते हैं तो वे बीएचयू कैंपस में अभी निर्माणाधीन एक सार्वजनिक सुलभ शौचालय के उदï्घाटन से बतौर सांसद बनारस में अपनी नई संसदीय पारी का आगाज़ करेंगे। देश में चल रहे इतनी चुनावी उथल-पुथल के बीच एक बड़ी $खबर सुर्खियां बनने से रह गई कि प्रतिष्ठिïत बीबीसी होराइज़न ने देश के एक महान सामाजिक आंदोलनकर्मी डा. विन्देश्वर पाठक द्वारा अन्वेषित उनके ‘टू पिट पोर फ्लश टेक्नोलॉजी’ से युक्त सुलभ शौचालय को विश्व के पांच बड़े अनुसंधानों में से एक करार दिया है। बीबीसी ने इस बारे में चिंता जाहिर की है कि भारत जैसे देशों में यहां की आधी आबादी के पास शौचालय की सुविधा नहीं है, उन्हें खुले में शौच के लिए बाहर जाना पड़ता है। उम्मीद है कि केंद्र में बनने वाली नई सरकार यकीनन विश्व के इन पांच महानतम खोजों में शुमार होने वाले सुलभ शौचालय की महत्ता को समझेगी।

 
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