राजनाथ का राज आया

June 19 2015


राजनाथ सिंह और अरूण जेटली के बीच मोदी सरकार ने नंबर दो की पोजीशन को लेकर एक निणार्यक जंग का आगाा हो चुका है। अब से पहले जाने-अनजाने जेटली को पीएमओ का वीटो प्राप्त था, चुनांचे सरकार के किसी भी मंत्रालय में सिर्फ उनके चाहने से सब कुछ हो सकता है। गृह मंत्रालय से जुड़े विश्वस्त सूत्र बताते हैं कि कोई सात महीने पूर्व दिल्ली के पुलिस कमिश्नर बस्सी गृह राज्य मंत्री किरण रिजिजू से मिलने उनके दफ्तर पहुंचे और उनसे आग्रह किया कि चूंकि इस बार के गणतंत्र दिवस समारोह में अमरीकी राष्ट्रपति ओबामा मुख्य अतिथि रहने वाले हैं, चुनांचे उनकी सुरक्षा को लेकर अतिरिक्त चौकसी बरतनी होगी और कई अत्याधुनिक उपकरण लगाने होंगे। सो, पुलिस कमिश्नर ने केंद्र सरकार से इस मद में 20 करोड़ रूपए की अतिरिक्त राशि की मांग की। रिजिजू बस्सी को लेकर सीधे राजनाथ के पास पहुंचे, मामले की गंभीरता को देखते हुए राजनाथ ने सीधे वित्त मंत्री से बात करना उचित समझा, पर जेटली ने इस प्रस्ताव को यह कहते हुए सिरे से नकार दिया कि केंद्र सरकार अपने खर्चों में कटौती का अभियान चला रही है। इतना ही नहीं आने वाले वक्त में जेटली ने गृह मंत्रालय के बजट में काफी कांट-छांट भी की, यहां तक कि पुलिस मॉडर्नाइजेशन का जो बजट पहले केंद्र के पास हुआ करता था, उसे राज्यों के हवाले कर दिया। राज्य इस मद के बजट को मनमर्जी से खर्च कर सकते हैं। इस दफे राजनाथ ने भी तब नहले पर दहला चल दिया जब मारन बंधुओं के ‘सन डायरेक्ट प्राइवेट लिमिटेड’ का मामला गृह मंत्रालय में आया। इसके तहत मारन के 33 टीवी चैनलों को केंद्र से क्लीयरेंस मिलनी थी, सूचना प्रसारण मंत्रालय की ओर से इस प्रस्ताव को हरी झंडी मिल गई, पर मामला होम में आकर अटक गया है। गृह मंत्रालय से जुड़े सूत्र बताते हैं कि राजनाथ सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए इस मामले को हरी झंडी देने के पक्षधर नहीं, वहीं इस दफे पीएमओ भी राजनाथ की राय से इत्तफाक रख रहा है, मोदी को भी कहीं न कहीं ऐसा लगता है कि मारन बंधुओं पर सख्ती कर जे. जयललिता का विश्वास जीता जा सकता है, क्या अब स्वयं मोदी राजनाथ व जेटली के बीच एक शक्ति संतुलन स्थापित करना चाहते हैं।

 
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