चिंता में सरकार

June 21 2015


सबका साथ मिलता है राजा को, साधु का, प्रभु का, दु:शासन का, कभी बनना पड़ता है उसको धर्मराज युधिश्ठिर, तो कभी दुर्योधन, एक वक्त में कई-कई चेहरे होते हैं राजा के। इस दफे की कैबिनेट की मीटिंग में प्रधानमंत्री अपेक्षाकृत उद्वेलित दिखे, उन्हें कहीं न कहीं इस बात की चिंता सता रही थी कि संसद का आने वाले मानसून को विपक्ष जानबूझ कर हंगामाखेज बनाना चाहेगा, सदन चलने नहीं देगा, और सुषमा व वसुंधरा के इस्तीफे की मांग दोहराएगा। प्रधानमंत्री अपने कैबिनेट साथियों से यह जानना चाहते थे कि क्या ऐसे में लैंड बिल को लाना मुफीद रहेगा? जरूरी बिल पास कराने के लिए संसद का संयुक्त सत्र बुलाने के क्या खतरे हैं? बैठक में मौजूद सुषमा स्वराज ने पीएम की आशंकाओं को सही ठहराया, वेंकैया ने सहज़ होने का स्वांग भरते हुए कहा कि ‘वे विपक्षी दलों खास कर कांग्रेस के निरंतर संपर्क में हैं और उन्हें मनाने का यत्न करेंगे।’ वहीं स्वयं प्रधानमंत्री अपने खास सहयोगी अरूण जेटली की राय जानने को बेकरार दिखे, जेटली जिनका कहीं शिद्दत से मानना है कि ऐसे वक्त में संसद का संयुक्त सत्र बुलाए जाने में खतरे ही खतरे हैं।

 
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