यूपी में फेल होता स्वच्छ भारत अभियान

January 28 2018


प्रधानमंत्री का महत्वाकांक्षी स्वच्छ भारत अभियान उनके संसदीय क्षेत्र से लगे इलाकों में भी सर्वनाश भारत योजना में तब्दील होता नजर आ रहा है। अमेरिका की एक प्रतिष्ठित एजेंसी इंस्टीट्यूट फॉर कांप्शेनेट इकॉनोमिक्स के शोधार्थी स्वच्छ भारत अभियान को लेकर यूपी के कई इलाकों में गहन शोध कर रहे हैं, इस एजेंसी का मानना है कि भारत में ऐसे अभियान महज नारों में सिमट कर रह जाएंगे, जब तक कि स्वच्छता को लेकर आम भारतीय का माइंडसेट नहीं बदलता है। इन शोधार्थियों ने अपने सर्वे में पाया कि सबसे खस्ता हाल तो ग्रामीण इलाकों में बने शौचालयों के हैं। एक तो सरकारी एजेंसियां ओडीएफ ( खुले में शौच मुक्त) के चक्कर में कागजों पर बड़े-बड़े आंकड़े पेश कर देती हैं, जबकि हकीकत में उससे आधी संख्या में भी शौचालयों का निर्माण नहीं होता है। यूपी में एक गांव का हवाला देती हुई यह एजेंसी कहती है कि सरकारी कागजों में दावा हुआ है कि अक्टूबर तक 576 शौचालय बना दिए गए हैं, पर जांच में पता चला है कि यहां सिर्फ 26 शौचालय यानी 4.5 फीसदी शौचालय ही काम कर रहे थे। 79 टॉयलेट के बारे में दावा किया गया है कि वे बाढ़ में बह गए। ठेकेदारों द्वारा निर्मित इन शौचालयों की गुणवत्ता के क्या कहने, एजेंसी का दावा है कि महज एक बोरी सीमेंट और खराब क्वॉलिटी की ईटों से आनन-फानन में शौचालय के निर्माण को आंकड़ो की शक्ल दे दी जाती है, जो टॉयलेट महज चंद दिनों के मेहमान होते हैं। 30 फीसदी टॉयलेट में तो कमोड ही नहीं लगे थे। लगभग 90 से 95 फीसदी टॉयलेट या तो बंद पड़े थे या फिर टूट गए थे या फिर लोग इन्हें गोदाम के रुप में इस्तेमाल कर रहे थे। कई स्कूलों में तो भयंकर गड़बडियां सामने आईं, वहां गर्ल्स टॉयलेट में पुरुषों के यूरिनल लगे पाए गए, पूछने पर स्कूल प्रशासन का कहना था कि ऐसा इसीलिए हो गया कि लड़कियां स्कूलों में बने शौचालयों का इस्तेमाल ही नहीं करती हैं, चूंकि वे इतने गंदे होते हैं और उनकी साफ-सफाई का भी स्कूल प्रशासन की ओर से कोई मुक्कमल व्यवस्था नहीं होती।

 
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