जीत कर भी हार गए शाह

August 18 2017


अगर खामोशियों की ज़ुबां होती है तो बुधवार से लेकर अब तक भाजपा कैडर और उसके वाचाल नेताओं के मौन से 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में पार्टी की अप्रत्याशित हार की याद ताजा कर दी है। गुजरात राज्यसभा चुनाव में पार्टी अध्यक्ष अमित शाह व केंद्रीय नेत्री स्मृति ईरानी की धमाकेदार जीत के बावजूद पार्टी नेताओं व कैडर में एक असहज सी चुप्पी पसरी है। सिर्फ अहमद पटेल की जीत से भगवा मंसूबों पर घड़ों पानी फिर गया है। सूत्र बताते हैं कि गांधी नगर से लेकर नई दिल्ली तक भाजपा कार्यालय में जीत के उत्सव के पूरे बंदोबस्त किए गए थे, टनों मिठाईयां थीं, आतिशबाजी के प्रबंध थे, फूल-माला व गाजे-बाजों की व्यवस्था थी, पर महज आधे वोट की एक नामाकूल जीत ने शह-मात के उस्ताद बाजीगरों को सांप सूंघा दिया। कहते हैं गांधी नगर भाजपा कार्यालय में तीन बड़ी माला मंगाई गईं थीं, और कांग्रेस से बागी हो गए शंकर सिंह वाघेला का वादा था कि जब भाजपा के तीनों उम्मीदवार शाह, स्मृति और बलवंतसिंह राजपूत जीत जाएंगे तो वे भी गाजे-बाजे के साथ भाजपा ऑफिस जाएंगे। पर आधे वोट ने पूरी भगवा सियासत को उलट पुलट कर रख दिया। भाजपा के लिए तब एक ओर दुखभरी खबर आ गई कि राजस्थान के अजमेर से उसके सांसद सांवर लाल जाट नहीं रहे, सनद रहे कि सांवर लाल जाट ने ही पिछले चुनाव में कांग्रेस के युवा तुर्क सचिन पायलट को पटखनी दी थी। अब अजमेर में उप चुनाव होगा और जाहिरा तौर पर सचिन पायलट एक बार फिर से यहां से कांग्रेस के उम्मीदवार हो सकते हैं। जनता में वसुंधरा राजे सरकार को लेकर किंचित नाराजगी है, और न ही सचिन पायलट के मुकाबले भाजपा के पास यहां से कोई मजबूत चेहरा है, चुनांचे अजमेर में फिलवक्त एडवांटेज पायलट की स्थिति नज़र आ रही है।

 
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