संघ का सूरज सातवें आसमान पर

May 07 2018


पत्थर मार के जैसे किसी ने नारंगी सूरज के कर दिए हैं टुकड़े-टुकड़े, जमीं का ज़र्रा-ज़र्रा जैसे गेरूआ रंग से नहाया हुआ है। वक्त बदला, दिल्ली का निज़ाम बदला तो सियासी मंसूबे और दस्तूर भी बदल गए, संघ इतना शक्तिशाली कभी न था, जितना आज दिख रहा है, चुनांचे भगवा विचारकों को अब इसके ’डॉक्यूमेंटेशन’ की चिंता बेतरह सताने लगी है। जब तक दिल्ली के निज़ाम पर कांग्रेसी झंडा बुलंद रहा और कांग्रेस जाहिरा तौर पर लेफ्ट सेंटर की राजनीति करती रही, वामपंथी विचारधारा के इतिहासकारों ने मार्क्स को भारतीयता के जुमले में उतार दिया, हमारे इतिहास व साहित्य के पुस्तकों के हरफ लाल रंगी होते चले गए। जब से केंद्र में मोदी युग का अभ्युदय हुआ है, संघ और भाजपा ने लाल विचारों को भगवा रंग में रंगने के प्रयास शुरू कर दिए हैं, सनद रहे कि उस वक्त जहां केंद्र में अटल बिहारी के नेतृत्व वाली एनडीए की पहली-दूसरी सरकार बनी तो हिंदी के एक जाने-माने पत्रकार दीनानाथ मिश्र की निगरानी में इस हेतु एक कमेटी का गठन किया गया था और जाने-अनजाने मिश्र को भाजपा व संघ से जुड़े ’डॉक्यूमेंटेशन’ का कार्य सौंपा गया था। तब इस प्रोजेक्ट में करोड़ों रुपए खर्च हुए पर इसके वांछित परिणाम सामने नहीं आ सके। मिश्र के नेतृत्व व निगरानी में तब नीतीश भारद्वाज ने भगवा विचारों के प्रतिपादन के लिए एक फिल्म भी बनाई थी जिसका बकायदा दिल्ली में ’प्रिव्यू’ भी रखा गया था, पर भगवा विचारकों को इस फिल्म में कई कमिया नज़र आ रही थीं, भारद्वाज से इसे ’रीशूट’ करने को कहा गया,पर इतनी वैचारिक रफ्फूगिरी के बाद भी बात नहीं बनी और संघ की यह महत्वाकांक्षी फिल्म ठंडे बस्ते के हवाले हो गई। अब नव सांस्कृतिकवाद के नए मिथक गढ़ने के लिए संघ ने बाहुबली फिल्म के चर्चित राइटर केवी विजेंद्र प्रसाद से अपने ऊपर एक मेगा बजट फिल्म बनाने को कहा है, सूत्र बताते हैं कि इस फिल्म का बजट कोई 180 करोड़ रुपयों के आसपास रखा गया है, इसके अलावा बॉलीवुड के कई नामचीन डायरेक्टर मोदी, संघ और भाजपा से प्रेरित होकर बड़ी फिल्मों का निर्माण कर रहे हैं, जिसमें जे ओमप्रकाश मेहरा मोदी के जीवन पर जो फिल्म बना रहे हैं उसका सबको इंतजार है। कई स्वतंत्र फिल्म निर्माताओं से कहा गया है कि वे इस आशय की फिल्म बनाए, ऐसी फिल्मों की फंडिंग के लिए कई मंत्रालयों ने अपने दरवाजे खोल रखे हैं। इसके अलावा नए सिरे से इतिहास लेखन के कार्य भी प्रगति पर है। सो, आने वाले दिनों में देश की सूरतेहाल बदले न बदले इसके अंदाजेबयां का अंदाज और मिजाज तो यकीनन बदल जाएगा।

 
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