यूपी को लेकर भगवा घमासान तेज

January 13 2016


भाजपा के क्षत्रपों की नियुक्तियों को लेकर पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने फिलवक्त तटस्थ रवैया अपनाया हुआ है। प्रदेश अध्यक्षों के चुनाव को लेकर रामलाल और उनकी कोर टीम ही सबसे ज्यादा सक्रिय नज़र आती है। रामलाल ही हैं जिनका इन दिनों संघ के भाजपा प्रभारी कृष्ण गोपाल के संग सबसे ज्यादा समन्वय चल रहा है। सनद रहे कि कृष्ण गोपाल का जोर एक आम स्वयंसेवक के मानिंद सामूहिक नेतृत्व और सामूहिक उत्तरायित्व पर रहता है। सो संघ और भाजपा के बीच पार्टी के प्रदेश अध्यक्षों के चुनाव को लेकर इस बात पर सहमति बनी है कि प्रदेश में कमान ऐसे नेताओं को सौंपी जानी चाहिए, जिनकी एक प्रो-एक्टिव इमेज हो और जो पार्टी के केंद्रीय कार्यालय में धूनी रमाने के बजाए राज्य में घूम-घूम कर पार्टी संगठन को मजबूत करने का काम करें। सबसे बड़ा पेंच यूपी के अध्यक्ष को लेकर फंसा हुआ है। जहां मोदी- शाह की जोड़ी दिनेश शर्मा को कमान सौंपे जाने की पक्षधर है, वहीं यूपी के भाजपा नेताओं का एक बड़ा वर्ग ब्राह्मण शर्मा की जगह किसी पिछड़े नेता को यूपी का सिरमौर बनाए जाने की हिमायती है। इस कड़ी में स्वतंत्र देव सिंह और धर्मपाल सिंह के नाम प्रमुखता से उभर कर सामने आ रहे हैं। कहते हैं पिछले दिनों शाह ने अपनी तरकश में से एक और नया नाम बाहर निकाला है, वह नाम है केंद्रीय रेल राज्य मंत्री मनोज सिन्हा का, जो पुराने स्वयंसेवक हैं और गाजीपुर से पार्टी सांसद है। इसके अलावा यूपी के भाजपा कार्यकर्त्ताओं की एक पुरानी मांग 2017 के विधानसभा चुनाव में पार्टी की ओर से कोई चेहरा पेश करने की है। अगर सब कुछ संघ की योजनाओं के अनुरूप चला तो पार्टी के युवा नेता वरूण गांधी को भाजपा अपने मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर पेश कर सकती है। हालांकि ऐसा कर पाना मोदी- शाह जोड़ी के लिए आसान न होगा, पर राजनीति तो विसंगतियों से ही तालमेल बिठाने का एक दूसरा नाम है।

 
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