रूढ़ी का दर्द |
September 25 2017 |
निर्मला सीतारमण को उनकी चुप्पी और वफादारी का ईनाम मिला है। दरअसल केंद्रीय मंत्रिमंडल के इस हालिया फेरबदल से पहले जिन मंत्रियों को इस्तीफा देने को कहा गया था उनमें से एक नाम निर्मला का भी था। इसके बाद शाह की कोर टीम ने इस बात का जायजा लिया कि मंत्रिपद से हटाए जाने के बाद किस नेता की क्या प्रतिक्रिया रही। सूत्र बताते हैं कि सबसे असहज प्रतिक्रियाएं राजीव प्रताप रूढ़ी और फग्गन सिंह कुलस्ते की थीं। टीम शाह ने पाया कि रूढ़ी न केवल बेहद आक्रोशित थे, बल्कि उन्होंने कई अनर्गल प्रलाप भी किए। मसलन रूढ़ी का यह कहना था कि अगर परफॉरमेंस को आधार बनाकर मंत्रिमंडल से उनकी छुट्टी की गई है तो उन्हें अपनी बात कहने का मौका क्यों नहीं मिला? सूत्रों की मानें तो वे पिछले आठ महीनों से लगातार पीएम से अलग से मिलने का समय मांग रहे थे, पर उन्हें पीएमओ की ओर से यह समय ही नहीं दिया गया। यहां तक कि मंत्रालय के काम-काज की भी जब समीक्षा की बारी आती थी तो पीएमओ सिर्फ मंत्रालय के सचिव को तलब कर उनका प्रेजेंटेशन ले लेता था, ऐसे में मंत्री की जवाबदेही कब तय हुई और कब उन्हें अपनी बात कहने का मौका मिला? यह बात चाहे सोलहो आने सही हो पर रूढ़ी जैसे राजनेताओं को यह भूलना नहीं चाहिए कि सत्ता की शीर्ष के कान हमेशा छोटे होते हैं और नाक लंबी! |
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