राहुल हैं कि सुधरते नहीं

July 12 2014


कांग्रेस भले ही इस दफे का लोकसभा चुनाव बुरी तरीके से हार गई हो, पर कांग्रेसी युवराज राहुल गांधी की भाव-भंगिमाओं, उनकी राजनैतिक शैली और राजनैतिक निर्णयों को देखकर ऐसा नहीं लगता कि जैसे वह अपनी पार्टी की हार से सबक लेने को तैयार हैं, महाराष्ट्र के प्रभारी के तौर पर मोहन प्रकाश की नियुक्ति को लेकर पार्टी में भयंकर मतभेद थे, स्वयं सोनिया गांधी भी राहुल की इस राय से पूरी तरह इत्तफाक नहीं रखती थीं, उसी प्रकार अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी)में फेरबदल को लेकर पिछले काफी समय से उपक्रम साधा जा रहा है, पर राहुल हैं कि वे अब तक किसी अंतिम नतीजे पर पहुंचे नहीं हैं, पार्टी में ‘प्रियंका लाओ’ का खटराग अलापने वाले और इसे मौन स्वीकृति देने वाले नेता गण भी चुप हैं कि हार की समीक्षा बैठक में जब कुछ कांग्रेसी नेताओं ने राहुल की जगह प्रियंका को नेतृत्व सौंपने की बात उठाई थी तो बैठक में मौजूद प्रियंका गांधी बुरी तरह से बिफर गई थीं और उन्होंने ऐसी मांग उठाने वाले कांग्रेसी नेताओं को बुरी तरह डांट लगाते हुए कहा था कि ‘वह अब भी मजबूती से अपने भाई के पीछे खड़ी हैं और चाहती हैं कि राहुल ही पार्टी का नेतृत्व करें।’ प्रियंका के इस बदले रूख को देखते हुए बदलाव की चाहत रखने वाले नेताओं ने चुप्पी साध लेने में ही भलाई समझी है। सदन में भी कमोबेश राहुल का यही हाल है, एक तो वे सदन आते बहुत कम हैं, आते हैं तब जब सदन शुरू हो चुकी होती है और बीच में ही उठ कर चले जाते हैं ताकि लोगों से मिलना-जुलना और उनके सवाल जवाब कम हो सके, सदन में राहुल ने एक झपकी मार ली तो इतना बड़ा हंगामा खड़ा हो गया, पर ऊंघती हुई कांग्रेस को कौन जगाएगा यानी बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधेगा? सवाल यही तो सबसे बड़ा है।

 
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