आवाजें हिरासत में मौन हैं !

February 20 2017


नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन की तबियत इन दिनों नासाज़ है, चुनांचे वे स्वदेश लौट कर कोलकाता में अपनी बेटी के घर स्वास्थ्य-लाभ कर रहे हैं। देश के एक अग्रणी समाचार समूह की तेज-तर्रार बंगाली रिपोर्टर ने अपना बंग-कनेक्शन निकाल कर अमर्त्य सेन को एक एक्सक्लूसिव इंटरव्यू देने के लिए राजी कर लिया। दरअसल, इस महिला रिपोर्टर के पति एक फिल्म मेकर हैं, जिनके अमर्त्य सेन की पुत्री से घरेलू ताल्लुकात हैं। सूत्र बताते हैं कि इस इंटरव्यू के लिए इस महिला रिपोर्टर ने कोलकाता के लिए उड़ान भरी और अपनी खराब तबियत के बावजूद डॉ. सेन इस रिपोर्टर से डेढ़ से दो घंटे बतियाते रहे। उन्होंने अपने इस इंटरव्यू में नोटबंदी से लेकर मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों के बारे में अपनी बेबाक राय दी। दरअसल, डॉ. सेन का मानना था कि जिस देश में सामाजिक व आर्थिक असमानता काफी बढ़ जाती है तो वहां के लोग हताशा में अपने लिए अतिवादी नेतृत्व का चुनाव करते हैं। भारत में नरेंद्र मोदी और अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप का चुना जाना, इसी बात की गवाही देता है। डॉ. सेन ने संभवतः इस रिपोर्टर से यह भी कहा कि मुमकिन है कि उनका यह इंटरव्यू किसी प्रिंट मीडिया को दिया जाने वाला उनका आखिरी इंटरव्यू साबित हो। एक दमदार शख्सियत से इतना वजनदार इंटरव्यू करने के बाद इस रिपोर्टर के हौसले बम-बम थे। उन्होंने दिल्ली पहुंचते ही अपनी रिपोर्ट फाइल कर दी पर अगले दिन के अखबार में यह इंटरव्यू छपा नहीं। एक-एक कर दिन गुजरते गए। चौथे रोज थक-हार कर इन्होंने अपने संपादक से संपर्क कर इंटरव्यू नहीं छप पाने की वजह जाननी चाही, क्योंकि तब तक डॉ. सेन भी अपनी बेटी के मार्फत दो-तीन बार इस इंटरव्यू के बारे में पूछ चुके थे कि ’यह कब छपेगा?’ संपादक ने महिला रिपोर्टर को बताया कि डॉ. सेन का इंटरव्यू देश के शीर्ष नेतृत्व पर एक सीधा हमला है। लिहाजा, अखबार मैनेजमेंट इसे छापने के पक्ष में नहीं। हां, रिपोर्टर के यात्रा खर्चे व भत्ते का कंपनी पूरा ध्यान रखेगी ’क्योंकि आवाजें हिरासत में हैं और एक चुप्पी ने हमारे नपुंसक इरादों का हरण कर लिया है?’

 
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