अरविंद को ऐसे बचाया अरूण ने

October 25 2017


नेहरू के जमाने से लेकर अब मोदी के जमाने तक एक लोकप्रिय प्रधानमंत्री बनाम सख्त अर्थशास्त्री के बीच जंग जारी है। हालांकि वर्तमान प्रधानमंत्री मोदी अपने कड़े आर्थिक फैसलों के लिए जाने जाते हैं, पर जनता व देश के मिजाज के हिसाब से उन्हें भी अपनी रणनीति बदलने को मजबूर होना पड़ता है। नेहरू नीति की बानगी पर सदैव यह देखा गया कि कैसे उन्होंने अर्थशास्त्री व वैज्ञानिकों के मुकाबले नौकरशाहों को ज्यादा तरजीह दी, कहना न होगा कि मोदी भी कमोबेश नेहरू की राह पर चलकर अपना वह मुकाम हासिल करना चाहते हैं। मोदी नीति की इसी भेड़चाल की चपेट में आकर शायद आज अरूण जेटली अपने वित्त मंत्रालय में इतने अलग-थलग पड़ गए हैं। मौजूदा सरकार में साफ तौर पर दिख रहा है कि कैसे वर्तमान सरकार में तमाम बड़े आर्थिक फैसले आईएएस लॉबी ले रही है और अर्थशास्त्री खेमा मूकदर्शक बना हुआ है। केंद्र सरकार में भी बड़े साफ तौर दिख रहा है कि आर्थिक नीतियों का निर्धारण पीएमओ कर रहा है और राजस्व सचिव व पीएम के बेहद भरोसेमंद हंसमुख अधिया के हस्ताक्षर से ये नीतियां परवान चढ़ रही हैं। अर्थशास्त्री बनाम आईएएस लॉबी की इसी टकराव की वजह से रघुराम राजन चले गए। मोदी नीति की परम वकालत करने वाले अरविंद पनागढि़या ने हावर्ड की ठौर पकड़ ली। ताजा मामला अर्थशास्त्री अरविंद सुब्रह्मण्यन का है जिन्हें अक्टूबर 2014 में राजन की जगह मोदी सरकार ने उन्हें अपना चीफ इकोनॉमिक एडवाइजर बनाया। पर धीरे-धीरे सुबुह्मण्यन भी नेपथ्य की भेंट चढ़ते गए। नोटबंदी को लेकर सुब्रह्मण्यन का वह चर्चित बयान आज भी याद किया जाता है जिसमें उन्होंने नोटबंदी को एक अबूझ पहेली करार दिया था। आईआईएम अहमदाबाद से दीक्षित सुब्रह्मण्यन के 3 वर्षों का कार्यकाल इस 16 अक्टूबर को खत्म हो रहा था और इन्होंने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में जाने की पूरी तैयारी कर ली थी कि वित्त मंत्री जेटली ने इन्हें एक साल का एक्सटेंशन दिए जाने की जानकारी ट्वीट करके दी। फिलवक्त तो जेटली का यह दांव चल गया पर आगे क्या होगा इसे कौन जान सकता है?

 
Feedback
 
Download
GossipGuru App
Now!!