आखिर कर्नाटक में शाह का मास्टर स्ट्रोक क्यों चूक गया?

May 21 2018


कर्नाटक में क्या खूब सियासी ड्रामा घटित हुआ, येदुरप्पा को जाना पड़ा और संयुक्त विपक्षी सुर ने कुछ ऐसा हंगामा मचाया हुआ है कि लगता है कि जैसे दक्षिण में एकबारगी लोकतंत्र की बहाली हो गई हो। सनद रहे कि कर्नाटक के चुनावी नतीजे आने के बाद भाजपाध्यक्ष अमित शाह का फौरी बयान आया था कि यह साऊथ में हमारी ’एंट्री’ है, पर येदुरप्पा के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद क्या यह माना जाएगा कि दक्षिण में भगवा पार्टी की डगर किंचित मुश्किल है, क्योंकि भाजपा विधायकों को अपनी सरजमीं पर बिठाने या छुपा कर रखने के लिए दक्षिण का कोई राज्य तैयार नहीं हुआ। सवाल इस पर भी उठ रहे हैं कि येदुरप्पा को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करने का कर्नाटक के गवर्नर का फैसला संवैधानिक मान्यताओं पर कितना खरा उतरता है। तो इस संदर्भ में हम अपने पूर्व राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा के स्टैंड को उद्दृत कर सकते हैं जब उन्होंने एक दफे ब्रिटिश संवैधानिक परंपराओं का हवाला देते हुए कहा था कि ’सिंगल लार्जेस्ट पार्टी को ही सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया जाना चाहिए।’ डॉ. शर्मा संविधान के अच्छे जानकारों में शुमार होते थे उन्होंने कैंब्रिज से एलएलएम किया था और हावर्ड से पीएचडी। पर फिर भी न्यायालय को येदुरप्पा को बहुमत सिद्ध करने के लिए 15 दिन दिया जाना न्यायोचित नहीं लग रहा था। सुप्रीम कोर्ट के जिन तीन जजों जस्टिस सिकरी, जस्टिस बोबडे और जस्टिस भूषण की बेंच ने येदुरप्पा मामले में फैसला सुनाया, वह पहले चीफ जस्टिस के खिलाफ एक याचिका को निरस्त कर चुकी थी, सो बेंच का चुनाव सत्ताधारी दल के नजरिए से भले ही मुफीद लग रहा हो, पर इनका फैसला लोकतंत्र को मजबूती देने वाला था। कानूनी लड़ाई में भी भाजपा कहीं पिछड़ गई लगती है, कांग्रेस के पास कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी,सलमान खुर्शीद, पी.चिदबंरम से लेकर कई काबिल वकीलों की फौज खड़ी थी, वहीं भाजपा के पास ले-देकर मुकुल रोहतगी और तुषार मेहता जैसे चेहरे थे, जो फीस लेकर काम करने वाले वकील हैं, इस हार से भाजपा को कई बड़े सबक लेने की जरूरत लगती है, क्योंकि जब आप सत्ता के शीर्ष पर होते हो तो बड़ी चुनौतियां भी छोटी दिखती हैं, पर जब इन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है तो यह आपको आपकी जमीन भी दिखा देती है।

 
Feedback
 
Download
GossipGuru App
Now!!