भाजपा सांसदों के नए साल के जश्न को ग्रहण

November 28 2017


पिछले 10 वर्षों के इतिहास में यह दूसरा मौका है जब संसद के शीतकालीन सत्र की अवधि इतनी कम होगी। संसद जो कभी लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर में शुमार थी आज वह सत्ता की चेरी बनने का उपक्रम साधती हुई दिख रही है। 2014 के बाद जब से मोदी सरकार दिल्ली के निज़ाम पर काबिज हुई है, तकरीबन 10 राज्यों में विधानसभा चुनाव हो चुके हैं, पर विधानसभा चुनावों के परिपेक्ष्य में संसद सत्र को टाले जाने की इस अभूतपूर्व घटना का श्रेय गुजरात चुनाव की कश्मकश को ही जाता है। गुजरात में इस दफे भाजपा किंचित कमजोर विकेट पर खेल रही है और विरोधियों के हौंसले बम-बम है, शायद इसी वजह से शीतकालीन सत्र की अवधि सिकुड़ गई है, पर इसका फैलाव नए साल 2018 तक जा पहुंचा है। आम तौर पर संसद का शीतकालीन सत्र दिसंबर के आखिरी हफ्ते में सिमट जाया करता था, इस दफे यह परंपरा बदल गई है, चुनांचे कई सांसदों के ’हैप्पी न्यू ईयर’ के जश्न पर ग्रहण लगता नज़र आ रहा है। सूत्रों के मुताबिक पक्ष-विपक्ष के कई सांसदों ने नए साल का जश्न मनाने के लिए परिवार समेत विदेश जाने की पूरी तैयारी कर ली थीं, तो कई देश के अलग-अलग भागों में छुट्टियां मनाने जा रहे थे। प्रिंसिपल मोदी के डर से सत्ता पक्ष के कई सांसद धड़ाधड़ अपनी विदेश यात्राएं रद्द करा रहे हैं और इस मनहूस घड़ी को पानी पी-पी कर कोस रहे हैं और संसद की पाठशाला में लोकतंत्र का नया ककहरा कंठस्थ करने का उपक्रम साध रहे हैं ।

 
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