मोदी के आर्थिक सलाहकार क्यों नहीं?

July 20 2014


नरेंद्र मोदी भले ही दिल्ली के निााम पर काबिज हो गए हों, पर अपने कई मित्र अर्थशास्त्रियों की आकांक्षाओं को वेर् मूत्त रूप नहीं दे पाए हैं, न तो स्वयं प्रधानमंत्री ने और न ही उनके काबिल दोस्त अरुण जेतली ने ही किसी अर्थशास्त्री को अपने सलाहकारों की औपचारिक सूची में शुमार किया है, नतीजन मोदी के अर्थ-दर्शन को अभिप्रेरित करने वाले देश के दो प्रमुख अर्थशास्त्री जगदीश एन.भगवती और अरविन्द पानागढ़िया नई सरकार से अपनी नाराागी नहीं छुपा पा रहे हैं, सनद रहे कि गुजरात में मोदी की अर्थनीति को परवान चढ़ाने में जगदीश भगवती की एक महती भूमिका रही थी, भगवती को मोदी का ‘इकोनोमिक फिलॉस्पर'(आर्थिक चिंतक) माना जाता था, ठीक वैसे ही जैसे दिल्ली की यूपीए सरकार की आर्थिक नीतियों को एक सक्षम प्रारूप देने में अमर्त्य सेन की एक महती भूमिका रही थी। वैसे भी भगवती और अमर्त्य सेन दो अलग ‘स्कूल ऑफ थॉट्स’ के जनक हैं, जहां सेन की नीति ‘गरीब केंद्रित’ है यानी ज्यादा से ज्यादा गरीबों में बांटों यानी यूपीए सरकार की सब्सिडी आधारित अर्थनीति वहीं से अभिप्रेरित है, जिसकी परिणति ‘भोजन का अधिकार बिल’ के तौर पर देखा जा सकता है, वहीं भगवती देश की आर्थिक विकास दर को बढ़ाने के पक्षधर हैं, वे मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को बढ़ावा देकर हर हाथ को काम देने की बात करते हैं ताकि सरकार अनुदान, सब्सिडी व सहायता के तरकीबों में ही न उलझ कर रह जाए। कोलंबिया यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर अरविन्द पानागढ़िया ने भी मोदी के चुनावी अभियान से लेकर उनके पीएम बनने तक के सफर में जमकर उनका साथ दिया, पर मोदी सरकार ने उन्हें भी अपना इकोनॉमिक एडवाइजर बनाने की दिशा में कोई पहल नहीं की है, निराश होकर पानागढ़िया ने इस बजट से पहले एक अंग्रेजी समाचार पत्रिका में लंबा लेख लिखा कि सरकार को अपने बजट में क्या सुधारवादी कदम उठाने की जरूरत है, कहना न होगा कि वित्त मंत्री ने उनके कई सुझावों पर अपने बजट में अमल करने की कोशिश भी की है। पर इनके मंसूबों को परवान चढ़ाने के लिए मोदी सरकार का इतना उपक्रम काफी नहीं है।

 
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