मोदी के लिए दिल्ली माकूल है

November 02 2014


अभी पिछले दिनों नरेंद्र मोदी के एक पुराने मित्र उनसे मिलने सात रेस कोर्स पहुंचे, तो उन्होंने छूटते ही अपने मित्र प्रधानमंत्री से पहला सवाल किया कि ‘गुजरात की तुलना में आप यहां (दिल्ली में) कितना वर्क-प्रेशर (काम के बोझ) झेल रहे हैं?’ मोदी मुस्कुराए और बोले-‘यहां तो कोई काम का बोझ ही नहीं है, मैं तनाव मुक्त होकर काम कर रहा हूं।’ कारण पूछे जाने पर मोदी ने बताया कि ‘जब वे गुजरात में बतौर मुख्यमंत्री काम कर रहे थे तो वे चौतरफा दबावों से घिरे थे, केंद्रनीत यूपीए सरकार का सौतेला रवैया था, तो उन्हें अपनी पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व खासकर अडवानी गुट को भी बैलेंस करके चलना पड़ता था, वहीं कांग्रेस के उकसावे पर मीडिया भी उनके प्रति सदैव हमलावर रहती थी।’ फिर मोदी ने अपने अंदाज में कहा-‘यहां(दिल्ली) आकर सब ठीक हो गया है, पार्टी-सरकार में अभूतपूर्व सामंजस्य है, और मीडिया का भी मुझे पूरा साथ मिल रहा है।’ अपने मित्र द्वारा यह पूछे जाने पर कि ‘क्या दिल्ली आकर उनकी दिनचर्या में बदलाव आया है?’ मोदी का कहना था कि वे बहुत स्ट्रांग कैरेक्टर के व्यक्ति हैं, समय व काल न तो उनके निर्णयों को प्रभावित करते हैं और न ही उनकी दिनचर्या को। मोदी को बेहद करीब से जानने वाले उनके एक सहयोगी बताते हैं कि अब भी वे सुबह 5 बजे उठ जाते हैं, दैनंदिन की क्रियाओं से निवृत्त होकर सबसे पहले वे कुछ जरूरी और पर्सनल मेल के जवाब देते हैं, फिर अपने दिनभर के प्रोग्राम का मुआयना करते हैं और उनसे जुड़े जरूरी नोट्स बनाते हैं, क्योंकि उन्हें धाराप्रवाह बोलना पसंद हैं, चुनांचे ऐसे नोट्स से उन्हें मदद मिल जाती है। इसके बाद वे कोई 30 मिनट तक योग करते हैं और साढ़े सात बजे तक तैयार होकर लॉन में बैठ जाते हैं। अकेले, हिंदी-अंग्रेजी अखबारों पर एक सरसरी निगाह डालते हैं, कोई हल्का-फुल्का नाश्ता करते हैं, और अपनी नियत मुलाकातों के लिए निकल पड़ते हैं। उनके एक निकटस्थ सहयोगी बताते हैं कि बॉस को अकेले खाना पसंद है, उन्हें डिनर टेबुल पर भी किसी की मौजूदगी पसंद नहीं। न उन्हें खाने में किसी तरह की मनुहार ही पसंद है, सादा भोजन उन्हें भाता है, गुजराती स्टाइल का, बीच-बीच में वे अन्न का त्याग कर देते हैं और केवल फल सब्जी व दूध का सेवन करते हैं। टीवी भी उन्हें अकेले देखना पसंद है। जब वे कहीं जाने के लिए गाड़ी में बैठ रहे होते हैं तो ‘ओपी’ यानी ओम प्रकाश उनकी गाड़ी में रोज की अखबारों की जरूरी ‘क्लिपिंग्स’ रख देते हैं। मुलाकातियों को समय देने का काम संजय बलसावड़ का है। जब भी प्रधानमंत्री घर से बाहर निकलते हैं तो तन्मय, दिनेश या ओपी में से एक व्यक्ति जरूर उनके साथ होता है। यानी गुजरात से दिल्ली आकर चाहे नरेंद्र मोदी का आभा मंडल एक वृहतर फलक पा गया हो, पर यहां आकर भी न उनकी आदतें बदली हैं और न ही उनके इर्द-गिर्द रहने वाले लोग ही।

 
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