मन से उतरे मेनन |
September 22 2013 |
क्या अमेरिका की नाराज़गी को कम करने के उद्देश्य से प्रधानमंत्री देश के राष्टï्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन के पर कतरने में जुटे हैं। नहीं तो क्या वजह है कि इन दिनों मेनन का सोनिया व राहुल गांधी से मिलना-जुलना इस कदर बढ़ गया है, जो मेनन सदैव मीडिया से एक दूरी बना कर चलते थे वे बुला-बुला कर कुछ चुनींदा पत्रकारों से मिल रहे हैं और आंतरिक सुरक्षा मसलों और विदेश नीति पर उन्हें ब्रीफ कर रहे हैं। मेनन इस बात से भी प्रधानमंत्री से नाखुश बताए जाते हैं कि पीएम ने उनके सिर पर चार ‘एनवॉय’ बिठा दिए हैं। अफगानिस्तान-पाकिस्तान मसले को पहले से ही पीएम के विशेष दूत के तौर एस.के.लांबा देख रहे थे, श्याम सरण को इंडो-यूएस न्यूक्लीयर डील फॉर क्लाइमेट चेंज का जिम्मा सौंपा गया है। पूर्व कैबिनेट मंत्री अश्विनी कुमार को जापान का जिम्मा सौंप दिया गया है, वहीं अफगानिस्तान व नेपाल में भारत के राजदूत रह चुके राकेश सूद को पीएम ने अपना विशेष दूत बनाकर ‘डिसारमेंट एंड नान प्रोलिफेरेशन’ यानी निरस्त्रीकरण और अप्रसार का जिम्मा सौंपा है। जबकि सूद को लेकर मेनन का पहले से मानना रहा है कि उन्होंने भारत-नेपाल संबंधों को बद से बदतर बना दिया था, आखिर मनमोहन उन्हें किस बात के लिए पुरस्कृत करना चाहते हैं? यही वजह है कि मेनन ने राकेश सूद के साऊथ ब्लॉक में बैठने पर एक तरह से अघोषित पाबंदी लगा दी थी और उनके लिए पटेल चौक के पास एक ऑफिस में बैठने की व्यवस्था करवा दी थी, पर बाद में प्रधानमंत्री के हस्तक्षेप के बाद यह मामला निपटा और सूद के लिए साऊथ ब्लॉक में एक ऑफिस तैयार करवाया जा सका। हालांकि मेनन प्रधानमंत्री के अमेरिकी दौरे में उनके साथ जा रहे हैं फिर भी मनमोहन सिंह अपने साथ एस. जयशंकर को भी साथ अपने साथ लेकर जा रहे हैं जो अमेरिका में भारत के अगले राजदूत होंगे। मेनन चीन में भारत के राजदूत रह चुके हैं और उन्हें चीनी भाषा और चीनी डिप्लोमेसी का भी अच्छा ज्ञान है इस नाते स्वाभाविक रूप से उनका झुकाव अमेरिका की बजाए चीन की ओर ज्यादा है, यही बात अमेरिकी लॉबी को रास नहीं आ रही है। |
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