मोदी के जाल में फंस गईं ममता

March 31 2021


अगर आपको याद हो तो अभी तीन-चार रोज पूर्व ही पीएम ने अपनी बंगाल की रैली में एक नया शिगूफा उछाला था कि ’पिछली दफे 3 मार्च को बंगाल चुनाव की घोषणा हुई थी, लगता है इस दफे 7 मार्च को चुनाव की अधिसूचना जारी होगी’ क्या मोदी जैसे अनुभवी नेता इस बात से अनभिज्ञ थे कि उनके अनुमान के कोई 10 दिन पहले ही विधानसभा चुनावों की अधिसूचना जारी हो सकती है, या उन्होंने बेहद चतुराई से अपना सियासी दांव चला और इस दांव में ममता जैसी पकी-पकाई नेत्री उलझ गईं। सूत्रों की मानें तो पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के पास लोक लुभावन घोषणाओं की एक लंबी फेहरिश्त थी और पीएम के भाषण से दीदी के लोगों ने यह गलत कयास लगा लिया कि अभी उनके पास 10 दिनों का और वक्त बचा है। पर शुक्रवार को जैसे ही चुनाव आयोग की प्रेस वार्ता आहूत हुई ममता के रणनीतिकारों के पसीने छूट गए, चुनाव आयोग ने उन्हें कुछ सोचने का मौका ही नहीं दिया। बंगाल में 8 चरणों में मतदान का ऐलान केंद्रनीत सरकार के कठोर मंसूबों का ऐलान है। यानी बंगाल में चरण दर चरण चुनाव संगीनों के साए में होंगे, चौकसी इतनी होगी कि परिंदा भी पर ना मार सके। यानी तृणमूल कैडर के बेलगाम मंसूबों पर ब्रेक लगाने की पूरी तैयारी है। वैसे भी बंगाल चुनाव को भाजपा ने अपनी नाक का सवाल बना लिया है, सूत्रों की मानें तो केंद्र असम चुनाव खत्म होते ही यानी 6 अप्रैल के बाद कभी भी नागरिकता संशोधन कानून के नियमों को नोटिफाई कर सकती है यानी पश्चिम बंगाल के बचे हुए 5 चरणों के चुनाव में ’का’ बड़ा मुद्दा हो सकता है। असम में भी भाजपा को भरोसा है कि वहां उसकी दुबारा सरकार बन सकती है, क्योंकि वहां विपक्ष काफी बिखरा हुआ है। कांग्रेस और बदरूद्दीन अजमल के एआईयूडीएफ में समझौते के बाद भाजपा को भरोसा है कि वहां बड़े पैमाने पर वोटों का ध्रुवीकरण हो सकता है और हिंदू वोट थोकभाव में यहां भाजपा को मिल सकते हैं। वहीं कांग्रेस के पास तरूण गोगोई जैसा कोई करिश्माई नेता भी नहीं बचा है, उनके पुत्र गौरव गोगोई अभी बेहद युवा हैं और उनमें अनुभव की भी कमी है। इसके अलावा बोडो पीपुल्स फ्रंट, असमगण परिषद, आसू जैसे तमाम दलों के मैदान में होने से विपक्षी वोटों के बंटने का खतरा बना हुआ है, भाजपा इसका फायदा उठा सकती है।

 
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