यूपी की फिजाओं में ’विजय-दिवस’ की भगवा आहटें

February 26 2017


महाराष्ट्र की बंपर जीत से यूपी में भगवा इरादों को एक नई धार मिली है। कैडर का हौसला बम-बम है और ‘विजय दिवस’ का आगाज़ कर एक तरह से भाजपा ने अपने लोगों को एक नई ऊर्जा से सराबोर कर दिया है। पहले पार्टी के अंदर ही इस बात को लेकर किंचित मतभेद उभरे कि यूपी और मणिपुर जैसे राज्यों में विजय दिवस का मनाया जाना कितना सही रहेगा, क्योंकि यूपी में अभी चुनाव चल रहे हैं और मणिपुर में 4 और 8 मार्च को चुनाव होने हैं। कई भगवा नेता ऐसे भी थे जिन्हें चुनाव आयोग का डर सता रहा था, पर अंतिम कॉल पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की रही। शाह ने तय किया कि महाराष्ट्र की जीत पर एक बड़ा उत्सव तो बनता है और इस ’विजय दिवस’ की पटकथा को तब अंतिम रूप दे दिया गया। शाह कैंप को लगता है कि यूपी में उनकी सोशल इंजीनियरिंग परवान चढ़ गई है। सबको मालूम है कि भाजपा ने यूपी की तैयारी काफी पहले से शुरू कर दी थी, अमित शाह को जमीनी जानकारी थी कि अगड़ी जातियां यूपी में भाजपा के साथ आने को एकदम से तैयार बैठी हैं, सो फोकस गैर यादव पिछड़ी जातियों पर किया गया था। केशव प्रसाद मौर्य को पार्टी अध्यक्ष बनाना शाह की इसी रणनीति का एक हिस्सा भर था। राज्य के लोध वोटरों को लुभाने के लिए पार्टी के पास कल्याण सिंह और उमा भारती का चेहरा था, छोटे दलों से तालमेल के क्रम में अपना दल से तालमेल कर कुर्मी वोटरों को लुभाया गया, राजभर वोटरों को लुभाने के लिए ओम प्रकाश राजभर जैसे नेताओं का सहारा लिया गया। इसके अलावा अन्य दलों के धाकड़ व मजबूत नेताओं पर भी भाजपा का दांव सफल जान पड़ता है, 2014 के लोकसभा चुनाव में जगदंबिका पाल समेत अनेक नेताओं पर भाजपा का यह खेल सफल रहा था। चुनांचे इस चुनाव में न सिर्फ यूपी में बल्कि महाराष्ट्र के निकाय चुनावों में भी दल बदलू नेताओं ने भगवा आकांक्षाओं के परचम को थामे रखा, महाराष्ट्र चुनाव इसकी सुखद परिणति की ओर इशारा कर रहे हैं, भाजपा को भरोसा है कि यूपी में भी उसका यही दांव फलीभूत होगा।

 
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