हुजूर बड़ी देर लगा दी रेल चलाते-चलाते |
May 20 2020 |
लॉकडाउन के कोई 50 दिनों बाद जब तक सरकार की तंद्रा टूटी तब तक बहुत सारे प्रवासी मजदूर पैदल ही हजारों किलोमीटर के सफर पर निकल चुके थे, भूख, धूप या गर्मी की परवाह किए बगैर। कुछ गतंव्य तक पहुंचे, कुछ कोरोना शिविर के आइसोलेशन में अटक गए, कुछ ऐसे भी थे जिन्हें मंजिल की चाह में रास्तों ने निगल लिया। एक अनुमान के मुताबिक देश में इस वक्त कोई 8 करोड़ ऐसे प्रवासी मजदूर हैं जो रोजी-रोटी की तलाश में दर-बदर होकर अपने घर से दूर निकले थे। रेलवे ने प्रति दिन 300 ट्रेन चलाने का फैसला लिया है, एक ट्रेन में सोशल डिस्टेंसिंग को मद्देनज़र रखते 1200 मजदूर आ रहे हैं। तो अगर हिसाब लगाएं तो 8 करोड़ मजदूरों की घर वापसी के लिए रेलवे को 66 हजार 666 रेल गाड़ियां चलानी होंगी। अगर एक दिन में 300 ट्रेनें चल रही है तो इस हिसाब से इस कार्य में 182 दिन लगेंगे। रेलवे का दावा है कि वह मजदूरों पर कुल खर्च का मात्र 15 फीसदी ही श्रमिक या राज्य सरकार से वसूल रही है। क्योंकि ये स्पेशल ट्रेन बस वन वे का ही सफर तय कर रही हैं, आना उसे खाली ही होता है। सोशल डिस्टेंसिंग को मद्देनजर रखते मिडिल बर्थ को हटा लिया गया है, श्रमिक यात्रियों को रास्ते में भोजन व पानी भी प्रदान किया जा रहा है। इस हिसाब से रेलवे को प्रति मजदूर 6-8 हजार रूपए का खर्च आ रहा है जिसका वे 15 फीसदी ही टिकट के मद में चार्ज कर रहे हैं। सनद रहे कि श्रमिकों को घर पहुंचाने के मद में सरकार ने रेलवे को कुल एक लाख करोड़ रूपयों का बजट आबंटित किया है, सूत्रों की मानें तो रेलवे का दावा है कि उसे एक ट्रेन चलाने में 50 लाख तक का खर्च आ रहा है। |
Feedback |