लाल का मलाल

July 20 2014


कई मोदी वफादारों के लिए अच्छे दिन अभी आए नहीं हैं, जैसे मोदी के आंख-नाक-कान माने जाने वाले नई दिल्ली गुजरात भवन के रेजीडेंट कमिश्नर भरत लाल यूं अनायास ही पीएमओ में कार्यरत आईएएस, आईपीएस और आईएफएस लॉबी की निशाने पर आ गए हैं। मूल रूप से यूपी से ताल्लुक रखने वाले भरत लाल का मोदी से दशकों पुराना रिश्ता है, और इस पूरे चुनावी अभियान के दौरान जब मोदी अपनी चुनावी सभाओं में व्यस्त थे तो लाल दिल्ली में रहकर विदेशी पत्रकारों और दिल्ली स्थित तमाम विदेशी दूतावासों से संपर्क साध एक ‘प्रो-मोदी’ फिाा बनाने में जुटे थे, यही वजह थी कि पहले यूरोपियन यूनियन के देश, फिर अमरीका जैसे देशों ने भी मोदी के लिए अपने स्वर बदल लिए। जब केंद्र में मोदी सरकार आई तो यह माना जाने लगा कि भरत विक्रम मिसरी और राजीव टपलू के साथ प्रधानमंत्री के निजी सचिवों की सूची में शुमार हो जाएंगे। सबसे हैरत की बात तो यह है कि पीएम के कमरे के साथ के एक कमरे में भरत लाल की नेम प्लेट भी लगा दी गई, पर अगले ही रोज उस नेम प्लेट को हटा दिया गया, दबे स्वरों में तर्क दिया गया कि चूंकि भरत फॉरेस्ट सर्विस से आते हैं इसीलिए पीएमओ में उनका एडजस्टमेंट मुश्किल होगा, क्योंकि प्रधानमंत्री के अन्य दोनों पीएस विक्रम मिसरी आईएफएस हैं, राजीव टकरू आईएएस हैं, विक्रम मिसरी को अपनी कुर्सी खाली करनी पड़ सकती है, क्योंकि वे स्पेन में भारत के राजदूत नियुक्त हो गए हैं, सो उन्हें जल्दी ही स्पेन की ठौर पकड़नी पड़ सकती है, एक प्रमुख कांग्रेसी नेता से राजीव टकरू की निकटता पीएम मोदी को रास नहीं आई है, सो उन्होंने टकरू को ठंडे बस्ते में डालने का पुख्ता इरादा बना लिया है। यहां तक कि भरत लाल के सहयोगी नीलेश को भी पीएमओ के सूचना अधिकारी जगदीश भाई ठक्कर के साथ लगा दिया गया, पर भरत लाल के लिए लालबत्ती ही रही, वे अब भी गुजरात भवन में बैठने को मजबूर हैं।

 
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