सियासत चालू आहे

November 28 2021


अभी भले तीनों कृषि कानूनों के निरस्त होने में वक्त लगेगा, पर भाजपा ने इसके विस्तार की राजनीति पर कार्य करना अभी से शुरू कर दिया है। पंजाब में तो कैप्टन अमरिंदर खुल कर भाजपा के पाले में आ गए हैं तो वहीं यूपी की किसानों के प्रभाव वाले सौ-सवा सौ सीटों पर भगवा पार्टी का डैमेज कंट्रोल अभियान भी शुरू हो चुका है। इनमें से ज्यादातर सीटें पश्चिमी यूपी की हैं जो जाटों के प्रभुत्व वाला क्षेत्र है। वैसे भी जाट शुरू से भाजपा के परंपरागत वोटों में शुमार होते हैं, याद कीजिए अमित शाह का 40 मिनट का वह लीक ऑडियो क्लिप जिसमें दावा हुआ था कि जाट भाई तो हमारे अपने हैं। एक ओर अब जहां भाजपा के जाट नेता पश्चिमी यूपी के गांव-गांव घूम कर नाराज़ जाटों को मनाने का काम करेंगे कि ‘देखो प्रधानमंत्री जी ने आपकी बात मान ली है, अब गुस्सा छोड़ो, साथ आओ।’ वहीं जाटों के एक प्रमुख नेता चौधरी चरण सिंह के पौत्र जयंत चौधरी की ओर भाजपा अब दोस्ती का हाथ बढ़ा रही है। भाजपा रणनीतिकार जयंत को यह समझाने के प्रयासों में जुटे हैं कि रालोद को सपा या कांग्रेस से मित्रता कभी रास नहीं आई है, इन पार्टियों से गठबंधन कर 2014 और फिर 2019 के आम चुनावों में रालोद की झोली बिल्कुल खाली रही। 2017 में सपा से गठबंधन कर इन्हें मात्र एक विधानसभा सीट पर ही जीत का मुंह देखने को मिला, वहीं अटल के जमाने में जब 2009 में पार्टी ने भाजपा से गठबंधन कर 7 सीटों पर चुनाव लड़ा तो पार्टी ने उसमें से 5 सीटों पर जीत दर्ज कर ली। जयंत फिलवक्त जनता का मूड भांपने में लगे हैं कि क्या सचमुच जाटों ने भाजपा को माफ कर दिया है? इसके अलावा भाजपा रणनीतिकारों ने लगातार बसपा सुप्रीमो मायावती से भी अपने तार जोड़ रखे हैं, चुनावी नतीजों के बाद अगर भाजपा बहुमत से 15-16 सीटें पीछे रह जाती है तो यह कमी मायावती पूरी कर सकती हैं।

 
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