सपा से क्यों नहीं हो पाया आप का गठजोड़

October 03 2021


वैकल्पिक राजनीति की जमीन तलाशने की जद्दोजहद में जुटी आम आदमी पार्टी ने आखिरकार यूपी में सपा से किनारा क्यों कर लिया? आप और सपा के चुनावी गठजोड़ की सुगबुगाहट काफी पहले से सुनी जा रही थी, इसके सूत्रधार के तौर पर आप के यूपी प्रभारी और राज्यसभा सांसद संजय सिंह एक बदले सियासी पटल पर अवतरित हुए थे। सूत्र बताते हैं कि सपा सुप्रीमो से संजय सिंह से सीटों के तालमेल को लेकर पूर्व में कई-कई मुलाकातें हो चुकी थी, सुना यह भी जा रहा था कि जितनी सीटें अखिलेश आप के लिए छोड़ना चाहते थे उससे आप के यूपी संगठन में विद्रोह के स्वर सुनाई देने लगे थे, सियासी नेपथ्य में पल-पल शक्ल बदलती खबरों ने उस वक्त हैरान कर दिया जब यह सुना जाने लगा कि आप के पूर्वांचल प्रकोष्ठ के अध्यक्ष और यूपी के सहप्रभारी एक प्रमुख ब्राह्मण नेता अनूप पांडेय पर सपा डोरे डाल रही है और उन्हें साइकिल के चुनाव चिन्ह पर उनका मनमाफिक सीट ऑफर कर रही है। इन खबरों का भी आप ने संज्ञान लिया और दोनों दलों के बीच नई-नई दोस्ती में दरारें दिखने लगी, अखिलेश के जन्मदिन के एक दिन बाद जब संजय सिंह उन्हें बधाई देने पहुंचे तो सियासी आसमां में दोस्ती के इंद्रधनुष का रंग बदलते दिखा। आप का स्टैंड था कि सपा उन्हें कमतर आंक रही है, सपा को लगता है कि आप यूपी में अपने प्रभाव से कहीं ज्यादा सीटें मांग रही थी। आप को यह भी लग रहा था कि यूपी में सपा के समक्ष घुटने टेकने से इसका प्रभाव उत्तराखंड, गोवा, पंजाब, हरियाणा जैसे राज्यों पर पड़ सकता था, जिन राज्यों में आप मजबूती से उभर रही है। जब से आप ने यह तय किया है कि पार्टी प्रदेश की सभी 403 सीटों पर चुनाव लड़ेगी, इससे भाजपा की भी बाछें खिल गयी हैं। भाजपा को लगता है कि यूपी में सरकार से नाखुश वोटरों का रूझान सपा के बजाए आप की ओर हो सकता है। युवा और फ्लोटिंग वोटर्स भी आप की ओर मुखातिब हो सकते हैं, इससे कई शहरी और अर्द्ध शहरी सीटों पर सपा की संभावनाओं को ग्रहण लग सकता है। आप यूपी चुनाव में भी बिजली, शिक्षा और चिकित्सा को अपने प्रमुख चुनावी मुद्दे के तौर पर पेश कर सकती है, लोगों की बुनियादी आवश्यकताओं से जुड़े ये मुद्दे दिल्ली में पहले ही कमाल कर चुके हैं, अगर यूपी वालों को ’केजरीवाल मॉडल’ का यह आकर्षण किंचित भी बांध पाया तो यूपी में आप की पहली पारी का अच्छा आगाज़ हो सकता है। वैसे भी हालिया पंचायत चुनाव में आप ने कांग्रेस से बेहतर प्रदर्शन कर अपने संगठन में उम्मीदों की जोत तो जगा ही दी है।

 
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