’तेरी हर दलील मंजूर है मुझे, तेरी हर बात कुबूल है मुझे
फिर भी आइने में मेरा मुझे क्यों अक्स नज़र नहीं आता’
यूपी चुनावी महासंग्राम का आगाज़ पहले फेज के 58 सीटों पर मतदान से हो चुका है। वोट प्रतिशत, मतदाताओं की प्रतिक्रियाएं और अंदरूनी सर्वेक्षणों के नतीजों के बाद इस निष्कर्ष पर तो पहुंचा ही जा सकता है कि जहां शहरी क्षेत्रों में सत्तारूढ़ भाजपा को कम नुकसान उठाना पड़ा है, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में भगवा किला ढहता नज़र आया। पहले चरण के मतदान में किसान आंदोलन का भी व्यापक असर दिखा और योगी के उन बयानों से मसलन ’चर्बी निकाल देंगे, गर्मी उतार देंगे’ आदि-आदि पर मतदाताओं का रोश जाहिर तौर पर दिखा। सूत्रों की मानें तो भाजपा का अपना आकलन है कि उसे इस फेज में 18-21 सीटें मिल सकती है जबकि 2017 के चुनाव में भाजपा ने इन 58 में से 53 सीटों पर जीत दर्ज करायी थी। यानी पहले ही फेज़ में भाजपा को 32-33 सीटों का नुकसान दिख रहा है। आइए अब आगे बढ़ते हैं 14 फरवरी को आहूत होने वाले दूसरे दौर के चुनाव की ओर, जहां 52 सीटों पर औसतन हर सीट पर 35 से 50 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं, जो इन चुनाव में एकतरफा वोटिंग कर रहे हैं। यानी दूसरे या तीसरे चरण में भी भाजपा की हालत कोई बहुत अच्छी नहीं रहने वाली, पर चौथे और पांचवें चरण में जब बुंदेलखंड से लेकर अवध का नंबर आएगा तो भाजपा वहां अच्छा कर सकती है। पर जैसे-जैसे मतदान का चरण पूर्वांचल की ओर बढ़ेगा वहां सपा गठबंधन की बांछें खिलती दिख रही हैं। किसानों पर लखीमपुर में गाड़ी चढ़ाने वाले मंत्री पुत्र को जमानत मिल चुकी है, भाजपा को लगा था इससे ब्राह्मण खुश होंगे पर कई इलाकों में इसकी जबर्दस्त प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। भाजपा के लिए एक चिंता की बात और है कि ग्रामीण इलाकों के लोग वोट देने के लिए भारी संख्या में बाहर निकल रहे हैं, इसीलिए शहरी इलाकों के मुकाबले उनके मतदान का प्रतिशत दस से पंद्रह ज्यादा है, ये व्यवस्था विरोधी वोट हो सकते हैं, भाजपा की चिंता की असली वजह भी यही है। वैसे भी तीसरे चरण के मतदान को लेकर अखिलेश आश्वस्त हैं, क्योंकि ये इलाके मुलायम सिंह के गढ़ माने जाते हैं।