ममता के सुर क्यों बदले

August 06 2022


ममता बनर्जी और पश्चिम बंगाल के तत्कालीन गवर्नर जगदीप धनखड़ के बीच छत्तीस का आंकड़ा कोई छुपी बात नहीं रह गई थी। पर दार्जिलिंग में जब इस दफे असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सरमा और ममता बनर्जी के बीच एक अहम मुलाकात हुई तो इसके बाद से भाजपा और एनडीए को लेकर ममता के तेवर किंचित ढीले पड़ गए, इस अहम मुलाकात के बाद ही तृणमूल ने ऐलान कर दिया कि ’वह उप राष्ट्रपति पद (जिसमें धनखड़ बतौर एनडीए उम्मीदवार मैदान में हैं) की मतदान प्रक्रिया से दूर रहेगी यानी टीएमसी मतदान में हिस्सा नहीं लेगी।’ जबकि गवर्नर रहते धनखड़ ने बंगाल में ममता की नाक में दम कर रखा था, बतौर गवर्नर उन्होंने दीदी पर अत्याधिक तुष्टिकरण, सांप्रदायिक संरक्षण और माफिया सिंडिकेट द्वारा जबरन वसूली का आरोप भी लगाया था। वहीं ममता लगातार पिछले काफी समय से विपक्षी एका मजबूत करने का स्वांग भर रही हैं। दीदी ने आरोप लगाया कि ’कांग्रेस ने उप राष्ट्रपति पद के लिए मारग्रेट अल्वा का नाम तय करने में उनकी राय नहीं ली।’ वैसे भी पिछले साल दिसंबर में ममता ने यूपीए के पूरे अस्तित्व पर ही प्रश्नचिन्ह लगाते हुए पूछा था कि ’यह यूपीए क्या है?’ फिर इसका जवाब भी उन्होंने स्वयं दे दिया था-’कहीं कोई यूपीए नहीं है।’ ममता वहीं नहीं रुकीं, उन्होंने बकायदा सोनिया गांधी पर भी निशाना साधा और तल्ख लहज़ों में पूछा-’हमें हर बार सोनिया से क्यों मिलना चाहिए, क्या यह कोई संवैधानिक बाध्यता है?’ यह तो ममता के लगातार रंग बदलते रहने की ही एक अदा है।

 
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