भाजपा में मिल सकते हैं कई दल

March 19 2022


‘सवालों के झुरमुठ हैं, अनिश्चय की धुंध है
जहां सत्य नहीं उगते, ये उन आत्माओं की ठूंठ है
जब से तेरी अंतरात्मा उनकी हुई है गला अवरुद्ध है
भले राह कितनी भी मुश्किल है, चलना जरूर है’

इस बदलते मौसम में जैसे पीली धूप ने भी अपना लिबास बदल कर गेरूआ कर लिया हो, 10 तारीख को जब मतों का डिब्बा खुला तो कई पार्टियों की उम्मीदें भी डब्बा हो गईं, भाजपा ने अपनी दुलकी चाल से भले ही अपने विरोधियों को धूल चटा दी हो, पर कई सवाल अब भी अनुतरित रह गए हैं। जैसा कि कांग्रेस के एक नेता कहते हैं कि ’नरेंद्र मोदी की यह जीत भीतर से भुरभुरी है, क्योंकि पांच राज्यों के ताज़ा चुनावी नतीजे आने से पहले इन कुल 690 सीटों में से भाजपा के पास पहले से 399 सीटें थीं, अब नतीजों के बाद यह 356 रह गईं हैं यानी 43 सीटें कम हो गई हैं।’ पर पूछा तो यह भी जाना चाहिए कि कांग्रेस के अपने नैतिक बल का क्या हुआ? पंजाब की जीती-जिताई बाजी उसने आप के हाथों सौंप दी, उत्तराखंड में जीत का आह्वान हार के हाहाकार में कैसे तब्दील हो गया? यूपी में ’लड़की हूं लड़ सकती हूं’ के प्रियंका की हुंकार को जनता ने क्यों अस्वीकार कर दिया? लिहाजा आज आत्ममंथन की जरूरत भाजपा को नहीं कांग्रेस को है, जिसके कई बड़े नेता अब भी टूटने को तैयार बैठे हैं। इन पांच में से चार राज्यों में विपक्षी पताका लहराने के बाद भगवा हौंसले बम-बम है, भाजपा की योजना इस साल के आखिर तक कम से कम तीन दलों का विलय भगवा पार्टी में कराने की है। बहन मायावती तो इस बात के लिए तैयार बताई जाती हैं, जिन्होंने डंके की चोट पर इस दफे के चुनाव में अपना 70 से 80 फीसदी कोर वोट बैंक सीधे भाजपा में ट्रांसफर करा दिया, उनकी नज़र राजनीति से एक सम्मानजनक विदाई पर है, उनकी निगाहें राष्ट्रपति पद पर हैं, पर अगर वह नहीं मिला तो बहिन जी उप राष्ट्रपति पद पर भी मान सकती हैं, तमाम मुकदमों से पीछा छूटेगा और एक चैन की संवैधानिक जिंदगी बसर कर पाएंगी। अगर ऐसा होता है तो वह अपनी पार्टी बसपा का विलय भी भाजपा में करने को तैयार हो सकती हैं। कमोबेश यही हाल नीतीश कुमार का है, उनकी पहली कोशिश तो केंद्र में विपक्षी एका का चेहरा बनने की थी, उन्होंने दुबारा इस बाबत पीके से संपर्क भी साधा, अपने लिए संभावनाएं भी टटोली, पर दाल अगर गली नहीं तो वे भी भगवा समर्पण के लिए सहज़ तैयार हो सकते हैं, यानी अगर वे राष्ट्रपति या उप राष्ट्रपति बनाए जाते हैं तो वे अपनी पार्टी जदयू का विलय भाजपा में करने को तैयार हो सकते हैं, जिसका प्रभाव अब बस बिहार तक सीमित रह गया है। एक पुरोधा और हैं वीआईपी पार्टी वाले मुकेश सहनी, इनकी चर्चा आगे है।

 
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