पार्टी में अपने विरोधियों को कैसे चित्त किया हरीश रावत ने

January 03 2022


’जब से तेरा ऐतबार किया है
एक ही जुर्म सौ बार किया है’

हरीश रावत की सियासी बाजीगरी ऐन वक्त काम आ गई, कभी दर्देदिल को जुबां देते उन्होंने अपने हाईकमान से शिकायत की थी कि ‘उनके हाथ-पैर बांध कर समुद्र में उनसे तैरने को कहा जा रहा है। जिस समुद्र में तैरना है, सत्ता ने वहां कई मगरमच्छ छोड़ रखे हैं, जिनके आदेश पर तैरना है।’ दरअसल, उनके निशाने पर पार्टी के ही अपने मित्र सखा थे जो उनकी राहों में कांटे बिछा रहे थे, मसलन यशपाल आर्य, देवेंद्र यादव आदि-आदि। उत्तराखंड के कांग्रेस प्रभारी देवेंद्र यादव उन्हें भरोसे में लिए बगैर बड़े फैसले ले रहे थे, जब पानी सिर से ऊपर गुजरने लगा तो वे नाराज़ होकर घर बैठ गए। तब जाकर हाईकमान की तंद्रा टूटी, उन्हें मनाने का जिम्मा प्रियंका गांधी ने उठाया, प्रियंका ने रावत से बात की, उन्हें दिल्ली तलब किया। यही वजह थी कि राहुल से मुलाकात के ऐन पहले रावत और प्रियंका की बंद दरवाजे में दो घंटे की मुलाकात हुई और बीच का रास्ता निकाला गया। पार्टी की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी पहले से ही रावत की तरफदारी कर रही थीं। रावत से मुलाकात के बाद प्रियंका ने मां और भाई से बात की और इसके बाद ही आगे का ‘रोड मैप’ तय कर दिया गया। यह भी तय हो गया कि उत्तराखंड चुनाव की बागडोर हरीश रावत के हाथों में होगी और उनका नेतृत्व पार्टी में सबको मान्य होगा, अगर प्रदेश में कांग्रेस का बहुमत आया तो मुख्यमंत्री का फैसला निर्वाचित विधायक गण करेंगे। एक सीनियर नेता पूरे हालत पर नज़र रखेगा और वह प्रदेश में समन्वय का भी कार्य भी देखेगा। इस काम के लिए पार्टी के दो सीनियर नेताओं अंबिका सोनी और आनंद शर्मा के नाम की चर्चा है। प्रियंका राहुल से मिलने के बाद रावत स्वयं अंबिका से मिलने पहुंचे जो इन कयासों को बल देता है। सोनिया का मानना था कि उत्तर भारत के ज्यादातर बड़े चेहरे पार्टी के असंतुष्ट गुट जी-23 का हिस्सा हो गए हैं सो ऐसे में रावत की निष्ठा गांधी परिवार से जोड़े रखना जरूरी है। रावत के एक विरोधी आर्येंद्र शर्मा जो एक साथ दो पदों पर काबिज थे यानी उपाध्यक्ष और कोषाध्यक्ष, तो उनसे एक पद छोड़ने को कहा गया है। देवेंद्र यादव से जुड़े हजारों करोड़ के जमीन घोटाले के कथित कागजात राहुल तक पहुंचा दिए गए हैं, चुनाव के बाद गांधी परिवार इस पर संज्ञान ले सकता है। रावत के पार्टी छोड़ने की अटकलों के बीच उनके प्रबल प्रतिद्वंदी हरक सिंह रावत भाजपा छोड़ कांग्रेस में आने को तैयार बैठे थे और अपनी बहु के लिए लैंसडाउन की सीट चाहते थे और उमेश शर्मा काऊ भी हरक सिंह की राह चलने को तैयार थे। भाजपा ने जैसे ही देखा कि उमेश काऊ और हरक सिंह पलटी मारने वाले हैं, आनन-फानन में कोटद्वार में मेडिकल कालेज खोलने की घोषणा कर दी गई। पर फिलहाल तो हरीश रावत की बल्ले-बल्ले है, उन्होंने अपने सियासी स्वांग से पार्टी में अपने विरोधियों को वाकई धूल चटा दी है।

 
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